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नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉट कॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। मेरठ से शुरू हुई 1857 आजादी की पहली क्रांति के पहले नायक मंगल पांडेय के साथ कदम से कदम मिलाने वाले वीर योद्धा और विद्रोह में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले तात्या टोपे को आज पूरा देश नमन कर रहा है। आज ही के दिन 18 अप्रैल सन् 1859 को फिरंगी सरकार ने तात्या टोपे को फांसी की सजा सुना दी थी। आइए इस शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नायक तात्या टोपे का जन्म 1814 में महाराष्ट्र के येवला में हुआ था। इनके पिता पांडुरंग त्रयंबक भट्ट तथा माता रूक्मिणी बाई थीं। तात्या के पिता बाजीराव पेशवा के धर्मदाय विभाग के प्रमुख थे। उनकी विद्वता एवं कर्तव्य परायणता देख बाजीराव ने उन्हें राज्यसभा में बहुमूल्य नवरत्न जड़ित टोपी देकर सम्मान किया था। तब से उनका उपनाम टोपे पड़ गया।
तात्या टोपे की वीरता पर विदेशी इतिहास कोश में मालसन ने लिखा था कि, संसार की किसी भी सेना ने कभी कहीं पर इतनी तेजी से कूच नहीं किया, जितनी तेजी से तात्या की सेना कूच करती थी। तात्या की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है।
श्रीमती हेनरी ड्यूबले भी लिखती हैं कि, तात्या ने जो अत्याचार अंग्रेजों पर किए उसके लिए हम उनसे घृणा करें, किंतु तात्या के सेना नायकत्व के गुणों और देशभक्ति के कारण हम तात्या का आदर किए बिना नहीं रह सकते।
कई भूमिकाओं में रहे तात्या टोपे
बता दें कि, तात्या टोपे का असली नाम रामचंद्र पांडुरंग टोपे था। 1857 में जब मंगल पांडे ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया तो नाना साहेब, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई, अवध के नवाब और मुगल शासकों ने भी बुंदेलखंड में ब्रिटिश शासकों के खिलाफ विद्रोह कर दिया था।
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