Wednesday, December 11, 2024
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विपक्ष की राजनीति की कुंद हुई धार

Samvad


RAJESH MAHESHWARI 1साल 2024 में होने वाले आम चुनाव को लेकर देश की राजनीति में लगतार सक्रियता बनी हुई है। संसद के बजट सत्र में विपक्ष ने सरकार को घेरने की पूरी कोशिश की। विपक्ष विशेषकर कांग्रेस ने अडाणी मामले में सरकार की मुश्किलें बढ़ाने का काम किया। संसद से सड़क तक विपक्ष ने सरकार को घेरता दिखाई दिया।सरकार और विपक्ष के आपसी खींचतान के चलते संसद का बजट सत्र हंगामेदार रहा और कार्रवाई नाममात्र की ही हो पाई। लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्ष में आपसी एकता को लेकर मंथन हो रहा है। लेकिन अभी तक विपक्ष की एकता को लेकर कोई आम सहमति या समझ नहीं बन पाई है। इस सारी कवायद के बीच बीच उस विपक्षी एकता की परिकल्पना को एक झटका लगा है। एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने अडानी मामले में ऐसा स्टैंड लिया है जो कांग्रेस और कई दूसरे दलों से विपरीत है। उस एक स्टैंड ने विपक्षी एकता वाली मुहिम को झटका दिया है।

बीते दिनों एक समाचार चैनल को साक्षात्कार के दौरान राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने हिंडनबर्ग की उस रिपोर्ट पर निशाना साधा है जिसमें गौतम अडानी को लेकर कई आरोप लगाए गए हैं। शरद पवार ने कहा कि उस शख्स ने पहले भी ऐसे बयान दिए थे और तब भी सदन में कुछ दिन हंगामा हुआ था।

लेकिन इस बार जरूरत से ज्यादा तवज्जो इस मुद्दे को दे दी गई हैं वैसे भी जो रिपोर्ट आई, उसमें दिए बयान किसने दिए, उसका क्या बैकग्राउंड है। जब वो लोग ऐसे मुद्दे उठाते हैं जिनसे देश में बवाल खड़ा हो, इसका असर तो हमारी अर्थव्यवस्था पर ही पड़ता है। लगता है कि ये सबकुछ किसी को टारगेट करने के लिए किया गया था।

अब शरद पवार का ये बयान उस समय आया जब सदन में 19 विपक्षी पार्टियों ने अडानी मुद्दे को जमकर उठाया भी और मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए। उस समय शरद पवार का यूं अलग स्टैंड लेना कई तरह के सवाल खड़े कर गया है। इस समय एनसीपी विपक्ष की एक बड़ी पार्टी है, शरद पवार नेता हैं, ऐसे में उसकी और ज्यादा बढ़ जाती है।

महा विकास अघाड़ी में तो वो कांग्रेस के साथ खड़ी है। उस स्थिति में कांग्रेस से ही अलग स्टैंड रखना कई तरह के संकेत दे गया है। इस विवाद पर कांग्रेस की तरफ से भी एक बयान जारी किया गया है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि एनसीपी का अपना कोई स्टैंड हो सकता है, लेकिन 19 विपक्षी पार्टियां ये मानती हैं कि अडानी मुद्दा गंभीर है।

मैं ये भी साफ करना चाहता हूं कि एनसीपी और दूसरे विपक्षी दल हमारे साथ ही खड़े हैं, सभी साथ मिलकर लोकतंत्र को बचाना चाहते हैं और बीजेपी की बंटवारे वाली राजनीति को हराना चाहते हैं। अब जयराम रमेश ने ये बयान दे तो दिया है, लेकिन अडानी मुद्दा कांग्रेस के काफी करीब है, वैसे भी इसे क्योंकि खुद राहुल गांधी ने उठाया है, इसके मायने ज्यादा हो गए हैं।

विपक्षी एकता की बात करें तो शरद पवार उसकी एक अहम कड़ी हैं। वो थर्ड फ्रंट के साथ जाएंगे या कांग्रेस वाली विपक्षी एकता का हिस्सा बनेंगे, अभी तक पत्ते खोलेंगे गए हैं। लेकिन क्योंकि महाराष्ट्र में दोनों पार्टियां साथ हैं, ऐसे में कांग्रेस जरूर चाहेगी कि शरद पवार उनके साथ आएं।

लेकिन अडानी मुद्दे पर एनसीपी प्रमुख के बयान उस इच्छा को एक सियासी झटका दिया है। वहीं विपक्ष के दूसरे अहम नेता दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ऊपरी तौर पर विपक्ष के साथ अपनी सुविधा के अनुसार खड़े तो दिखाई देते हैं। उन्होंने केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है।

केजरीवाल और आम आदमी पार्टी (आप) इन दिनों प्रचार कर रहे हैं कि देश के प्रधानमंत्री मोदी ह्यअनपढ़ह्ण हैं या ‘कम पढ़े-लिखे’ हैं। यह निराशाजनक, खोखला और अनैतिक दुष्प्रचार है। किसी भी व्यक्ति या प्रधानमंत्री की शैक्षिक डिग्री ‘सूचना के अधिकार’ के बाहर है। वह एक निजी उपलब्धि और दस्तावेज है।

यदि वह सार्वजनिक नहीं है, तो कानूनन उसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। दरअसल केजरीवाल और ‘आप’ के प्रवक्ता-नेता इसे भी राजनीतिक प्रचार बना रहे हैं कि प्रधानमंत्री अनपढ़ या अल्पशिक्षित हैं, लिहाजा काम करने और नीतियां बनाने में अक्षम हैं।

वास्तव में लोकतंत्र ‘लोगों के द्वारा’ और ‘लोगों के लिए’ की एक व्यवस्था है। प्रधानमंत्री की शैक्षिक डिग्री की तुलना केजरीवाल की आईआईटी की डिग्री या आईआरएस से नहीं की जा सकती। कुलीन और उच्चतम शिक्षा वाले प्रधानमंत्री के तहत और उनके आदेशानुसार काम करते हैं, क्योंकि लोकतांत्रिक जनादेश अंतिम निष्कर्ष है।

पवार ने बीते रविवार को नासिक में संवाददाताओं से कहा, जब बेरोजगारी, महंगाई और कानून व्यवस्था की स्थिति जैसे अधिक महत्वपूर्ण मुद्दे मौजूद हैं, तो क्या देश में किसी की शैक्षणिक डिग्री राजनीतिक मुद्दा होनी चाहिए। विपक्ष ने अपनी पुरानी गलतियों से सीख लेकर बीजेपी को काउंटर करने के लिए जो नई रणनीति बनाई है, उसके लिए उसने कुछ मुद्दे चुने हैं।

सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना जैसे मुद्दे को स्थापित करना या महिलाओं को हर महीने पगार देने की लगातार घोषणा इसी का हिस्सा है, जिससे विपक्ष बीजेपी के कोर वोट बैंक में सेंध लगाना चाहता है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में इसी रणनीति के तहत कांग्रेस को कामयाबी मिली।

हालांकि बीजेपी इस बात को लेकर आश्वस्त है कि अभी अगले एक साल के लिए उसके तरकश में कई तीर हैं, जिनसे वह विपक्ष के सारे दांव नाकाम कर देगी। विपक्ष के तमाम नेता एकता की बात तो कर रहे हैं, वहीं साथ ही साथ वो अपनी राजनीति चमकाने में लगे हैं।


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