Monday, June 17, 2024
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यूक्रेन युद्ध और वैश्विक कूटनीति

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Samvad


PRABHAT KUMAR RAIयूरोपीय यूनियन के अनेक राष्ट्रों ने प्रारम्भ में भारत से बड़ी कूटनीतिक उम्मीद लगाई थी कि भारत वस्तुत: यूक्रेन युद्ध का समुचित निदान निकालने के लिए कोई सार्थक कूटनीतिक पहल अंजाम देगा। इस उम्मीद का सबसे अहम प्रस्थान बिंदु रहा कि भारत के रूस के साथ अत्यंत मित्रतापूर्ण संबंध रहे हैं और दूसरी तरफ नॉटो राष्ट्रों के साथ भी भारत के मधुर कूटीतिक संबंध कायम रहे हैं। अत: भारत को एकमात्र ऐसा देश समझा गया, जोकि विश्व पटल पर किसी सैन्य गुटबंदी में कभी शामिल नहीं रहा। दुर्भाग्य से यूक्रेन युद्ध पर भारत द्वारा केवल शांति और सौहार्द का पैगाम तो दिया जाता रहा, किंतु भारत द्वारा यूक्रेन युद्ध को खत्म करने की खातिर कोई कारगर कूटनीतिक पहल कदापि अंजाम नहीं दी गई। भारत को विश्वगुरु बन जाने का ख्वाब दिखाने वाली नेरेंद्र मोदी हुकूमत, वस्तुत: यूक्रेन युद्ध को खत्म कराने की कोई कूटनीतिक पहल करने की हिम्मत तक नहीं जुटा सकी।

राष्ट्रपति पुतिन ने इस उम्मीद के साथ यूक्रेन पर सैन्य धावा अंजाम दिया था कि रूसी सेना कुछ ही वक्त में यूक्रेन की राजधानी कीव पर आधिपत्य स्थापित करके, युक्रेन के राष्ट्रपति वॉल्दोमीर जेलेंस्की को घुटने टेकने पर विवश कर देगी। किंतु ऐतिहासिक नियति को कुछ और ही मंजूर था।

यूक्रेनियों के अनुपम वीरता एवं शानदार हौसले और अमेरिका के नेतृत्व में नॉटो राष्ट्रों द्वारा यूक्रेन को आधुनिकतम हथियारों की निरंतर आपूर्ति ने वस्तुत: पुतिन की यूक्रेन को जल्द फतह कर लेने की सैन्य महत्वाकांक्षा को अभी तक पूरा नहीं होने दिया।

रूसी सेना द्वारा यूक्रेन के अनेक इलाकों को पूरी तरह से तबाहो बरबाद करके रख दिया है। यूक्रेन युद्ध ने वहीं यूरोप को भी आर्थिक बरबादी के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। यूक्रेन युद्ध का समुचित निदान निकालने के लिए यूरोपीयन यूनियन के अनेक देशों ने भारत की तरफ से निराश होकर अब चीन की तरफ देखना शुरू कर दिया है।

हालांकि चीन वस्तुत: रुस का निकट सैन्य सहयोगी देश रहा है, जोकि यूक्रेन युद्ध के संपूर्ण दौर में रुस की सेना को अत्याधुनिक अस्त्र शस्त्रों की अबाध आपूर्ति करता रहा है। यहां तक नॉटो सैन्य संगठन के अग्रणी राष्ट्र अमेरिका के साथ चीन का सैन्य तनाव ताइवान के कारण चरम बिंदु पर कायम है।

चीन की इस समस्त विवादित पृष्ठभूमि के बावजूद फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लियेन चीन की तीन दिन की कूटनीतिक यात्रा पर बीजिंग पधार गए। इस कूटनीतिक यात्रा का स्पष्ट मकसद है कि विश्व पटल पर चीन को यूक्रेन युद्ध में एक शांति दूत का किरदार निभाने के लिए पूरी तरह से राजी करना।

यूक्रेन युद्ध के कारण यूरोपीय यूनियन और चीन के संबंधों में लगातार आ रही कूटनीतिक निकटता के मध्य फ्राँस के राष्ट्रपति और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष की चीन यात्रा को अत्यंत महत्वपूर्ण समझा गया है। माह फरवरी में अमरीका के वायुक्षेत्र में उड़ रहे चीन के निगरानी बैलून को मार गिराए जाने के कारणवश अमरीका और चीन के संबंधों में और भी अधिक तल्खी आ गई है।

बीजिंग रवाना होने से पहले राष्ट्रपति मैक्रों ने फोन पर अमरीकी राष्ट्रपति से बातचीत की थी और यूक्रेन युद्ध को जल्द से जल्द खत्म करने के कूटनीतिक प्रयासों में चीन को भी शामिल करने पर बाकायदा परस्पर सहमति बन गई है। फांस के राष्ट्रपति मैक्रों से पहले जर्मनी के चांसलर ओलॉफ शोल्ज और स्पेन प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज ने भी हाल में चीन की कूटनीतिक यात्रा अंजाम दी थी।

विश्वपटल पर चीन की कूटनीतिक स्थिति का यूक्रेन युद्ध में अत्याधिक महत्व बढ़ गया है। अपनी कूटनीतिक निष्क्रियता के कारण भारत यूक्रेन युद्ध को खत्म करने में अपने कूटनीतिक महत्व को तकरीबन खो चुका है।

वॉशिंगटन पोस्ट की एक ताजा रिपोर्ट में मुताबिक फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों वस्तुत: चीन की वर्तमान कूटनीतिक स्थिति तो परिवर्तित नहीं कर सकते हैं, लेकिन उम्मीद की जा सकती है कि उनके प्रयास से चीन को रूस की तरफ और अधिक झुकने से रोका जा सकेगा।

स्पष्ट है कि चीन उन चुनिंदा देशों में, जिसमें भारत भी शामिल रहा है, एक देश है जो यूक्रेन युद्ध में किसी भी दिशा में गेंम चेंजर जैसा निर्णायक प्रभाव उत्पन्न कर सकता है। अंतराराष्ट्रीय पटल पर यूक्रेन एक बड़ा सैन्य अखाड़ा बन गया है, जिसमें वैश्विक सैन्य समीकरण तय करने के प्रयास हो रहे हैं।

यूक्रेन युद्ध को रोकने की बहुत बड़ी तड़प और बेचैनी समस्त यूरोप में स्पष्ट दिखाई दे रही है और नाटो सैन्य संगठन के कुछ देश इसके लिए कुछ अलग हट कर प्रयास कर रहे हैं। चीन की यूक्रेन युद्ध का निदान करने के लिए कूटनीतिक सक्रियता कुछ यूरोपीय देशों के लिए उम्मीद की किरण लेकर लाई है।

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों की चीन यात्रा पर यूक्रेन संकट के लिहाज से पूरी दुनिया खास तौर से यूरोप की निगाहें लगी हुई हैं। क्या राष्ट्रपति मैक्रों इस दिशा में कुछ भी हासिल कर सकेंगे? राष्ट्रपति मैक्रों की कोशिश रही है कि वह राष्ट्रपति जिनपिंग को कूटनीतिक तौर पर राजी करें कि वह यूक्रेन युद्ध का समुचित निदान निकालने के लिए और अधिक सक्रिय हो जाएं तथा राष्ट्रपति पुतिन को यूक्रेन युद्ध रोकने के लिए राजी करने की कोशिश करें।

इससे पहले जर्मनी के चांसलर ओलॉफ शोल्ज और स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज भी जिंनपिंग से बाकायदा यही गुजारिश कर चुके हैं कि वे यूक्रेन जाकर व्लादिमीर जेलेंस्की से मिलें। खुद जेलेंस्की भी जिनपिंग से यूक्रेन पधारने की गुजारिश कर चुके हैं।

राष्ट्रपति मैक्रों पहले स्वयं भी पुतिन को युद्ध रोकने के लिए राजी करने की पहले ही नाकाम कोशिश कर चुके हैं, लेकिन फिर भी वह उम्मीद कर रहे हैं कि जिनपिंग संभवतया पुतिन को यूक्रेन युद्ध को खत्मा करने के लिए मना सकते हैं। फ्रांस को राष्ट्रपति का मानना है कि वे चीन को रूस की ओर अधिक नहीं झुकने के लिए तो कम से कम मना ही लेंगे।

यूक्रेन युद्ध के कारण सारे यूरोप में उर्जा संकट और महंगाई चरम बिंदु को स्पर्श कर रही है। यूरोपीय यूनियन के देशों में सरकारों के विरुद्ध जबरदस्त नागरिक प्रदर्शन जारी रहे हैं। राष्ट्रपति पुतिन यूक्रेन पर निर्णायक विजय हासिल करने पर आमादा रहे हैं।

पुतिन द्वारा परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की धमकियां दुनिया को तृतीय विश्वयुद्ध में झोंक सकती है। अभी भी वक्त शेष रहा है कि यूक्रेन युद्ध के दोनों ही सैन्य गुटों रूस और यूरोप के नॉटो राष्ट्रों का विश्वास पात्र रहा राष्ट्र भारत, यूक्रेन युद्ध पर संजीदा पहल अंजाम देकर वैश्विक कूटनीति में अपना बड़ा स्थान निर्मित और सुनिश्चित कर सकता है।


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