- निगम के 500 से अधिक पार्कों की हालत खस्ता
- कॉलोनियों के ज्यादातर पार्कों पर है अवैध कब्जे
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: किताबों से भले ही ज्ञान बढ़ता हो लेकिन स्वस्थ्य मानसिकता के लिए शरीर का स्वस्थ होना भी बेहद जरुरी है। स्वस्थ शरीर के लिए प्रतिदिन मैदान में दो घंटे खेलना कूदना बेहद जरुरी हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि खेले-कूदें कहा? शास्त्रीनगर क्षेत्र की बात करे तो वहां बड़ी-बड़ी कॉलोनियां तो बनाई गई हैं, लेकिन बच्चों के खेलने के लिए कोई जगह नहींं दी गई है। नतीजा, जिस बचपन को हंसते-खेलते बीतना था आज वह मोबाइल फोन पर चिपका हुआ है।
महानगर की अधिकांश कॉलोनियों में कहने को पार्क बहुत है, लेकिन बच्चों के लिए पार्क उपलब्ध नहीं है जिसमे बच्चे सेहत बनाने के लिए कुछ खेल सके। शहर के अधिकांश पार्कों में कब्जे हो रखे है जो थोड़ी बहुत जगह बचती है उसमें बच्चों का भला नहीं हो पाता है। शहर में अधिकृत रूप से 500 पार्क हैं, लेकिन उनमें से कुछ पार्क ही पार्क कहलाने लायक है।
एमडीए और आवास विकास परिषद ने अपनी कॉलोनियों में पार्क विकसित किए हुए है। शास्त्रीनगर के कुछ पार्कों को छोड़ दिया जाए या फिर सूरजकुंड का नगर निगम का पार्क बाकी पार्कों की हालत सही नहीं है। पार्कों में न सफाई होती है और न ही माली की व्यवस्था है। इन पार्कों में खुद कॉलोनी के लोगो ने कब्जे कर रखे है। अगर देखा जाए तो शास्त्रीनगर के ए ब्लॉक के पार्क को छोड़ दिया जाए तो ई ब्लॉक और डी ब्लॉक के पार्क के साथ ही अन्य पार्क अवैध कब्जे से जूझ रहे है।
इन पार्कों में जो झूले बच्चो के लिए लगाए गए है वो भी जर्जर हालत में पहुंच गए है। आवास विकास की माधवपुरम कालोनी के पार्कों की हालत भी अलग नहीं है। सेक्टर तीन के पार्कों में नाले का पानी भरा हुआ है। यहां बच्चे तो छोड़िए बड़ो तक ने अंदर जाना बंद कर दिया है। हर बच्चा स्टेडियम में जाकर नहीं खेल सकता। मोहल्लों में पार्क इसलिए विकसित किए जाते हैं ताकि बच्चे का विकास हो सके।
शहर के कई पार्क ऐसे भी है जहां दबंग लोगों ने सब्जियां आदि बो रखी है और वो लोग बच्चों को अंदर नहीं घुसने देते हैं। शास्त्रीनगर में रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन होने के कारण कुछ पार्कों की हालत सुधरी हुई है जबकि शहर के दूसरे हिस्से के पार्क अपनी बदहाली के आंसू बहा रहे हैं। शहर को हरा-भरा बनाने के लिए केंद्र सरकार ने अमृत योजना के तहत खूब पैसा दिया, लेकिन यह योजना कई सालों से कुछ ही पार्कों तक सिमट कर रह गई है।
नगर निगम अंतर्गत आने वाले पार्कों की बात करें तो लगभग 500 पार्क हैं। इसमें एमडीए की सात कालोनियों से हस्तांतरित पार्क भी शामिल हैं। अगर 11 पार्क अमृत योजना के और एक मॉडल पार्क के प्रोजेक्ट को छोड़ दें तो बाकी पार्कों के सुंदरीकरण के लिए नगर निगम के पास कोई योजना नहींं है। हैरानी की बात ये भी है कि अमृत योजना में गंगानगर, शास्त्रीनगर, जागृति विहार, पल्लवपुरम क्षेत्र को ही वरीयता दी गई है।
जबकि दिल्ली रोड की तरफ रेलवे रोड चौराहे से लेकर परतापुर क्षेत्र तक की कॉलोनियों का एक भी पार्क सुंदरीकरण योजना में शामिल नहींं किया गया। अगर यही हाल रहा तो शहर के पार्क न तो लोगों के घूमने के लिए रह पाएंगे और न ही बच्चों के सर्वांगीड़ विकास के लिए। शहर के जागरूक लोग जो समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझते हैं वो तो सहकारी नीति से पार्कों का सुन्दरीकरण कर रहे है बाकी सरकार के भरोसे जो लोग बैठे है वो बर्बादी के आंसू बहा रहे हैं।