Saturday, July 27, 2024
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तत्कालीन मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी, निगम आमने-सामने

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  • निगम में 23 कर्मचारियों की फर्जी नियुक्ति प्रकरण ने पकड़ा तूल
  • दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर लगाये आरोप-प्रत्यारोप, दोषी अधिकारियों को बचाने में जुटा निगम
  • 33 करोड़ रुपये की निगम को वित्तीय हानि का आरोप
  • दो बार प्राथमिकी दर्ज हो चुकी, अब 23 कर्मचारियों के मामले में झूठी शिकायत कर निगम को कर रहे बदनाम

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: नगर निगम में 23 कर्मचारियों की फर्जी नियुक्ति निरस्त एवं वेतन वापसी एवं उनकी बर्खास्तगी को लेकर जो प्रकरण चल रहा है। वह दिनों दिन तूल पकड़ता जा रहा है। नगर निगम के तत्कालीन मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी एवं नगर निगम इस मामले में अब खुलकर आमने-सामने आ गये हैं। जहां एक तरफ तत्कालीन मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी ने 23 नियुक्तियों को पूरी तरह से फर्जी बताते हुये मुख्यमंत्री को शिकायती पत्र भेजा है।

जिसमें उन्होंने बताया कि इन फर्जी नियुक्ति के मामले में नगर निगम उन तमाम अधिकारियों को बचाने का प्रयास कर रही है। जिनके समय में इन 23 कर्मचारियों की नियुक्ति हुई और जिन अधिकारियों ने गोलमोल जांच रिपोर्ट तैयार कर उच्चाधिकारियों को भेजी है। अब तक निगम को इन 23 कर्मचारियों की फर्जी नियुक्ति के मामले में करीब 33 करोड़ रुपये की वित्तीय हानि निगम को हो चुकी है।

वहीं, निगम ने मुख्यमंत्री पोर्टल पर की गई शिकायत की जांच पर अपनी आख्या देते हुये तत्कालीन निगम के मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी पर तमाम गंभीर आरोप लगाते हुये उन पर 23 कर्मचारियों के मामले में झूठी शिकायत कर निगम को बदनाम करने का आरोप लगाया है। नगर निगम में तमाम ऐसे मामले भ्रष्टाचार से जुड़े तूल पकड़ रहे हैं। जिनकी पूर्व में शिकायत की गई, लेकिन वह जांच के नाम पर लगातार दबाये जाते रहे हैं।

जिसमें वार्ड-35 में सड़क निर्माण के मामले में बढेÞ घोटाले के आरोप की जांच में दोषी पाये गये निगम के अधिकारी जिसमें कार्रवाई की संस्तुत की गई। जिसमें एक अधिकारी के निलंबन की संस्तुति भी की गई थी। मामले की शिकायत शासन स्तर पर किसी आम व्यक्ति ने नहीं की बल्कि सांसद राजेंद्र अगवाल द्वारा की गई थी। उसके बावजूद उन अधिकारियों पर जांच में दोषी पाये जाने के बाद कोई असर नहीं पड़ा बल्कि मेला नौचंदी में लाखों रुपये के निर्माण कार्य जो कराये जाने हैं।

उस समिति में भी शामिल कर लिया गया और महत्वपूर्ण कमान उन्हे सौंप दी गई। ठीक दूसरा इसी तरह का 23 कर्मचारियों की फर्जी नियुक्ति का मामला भी जांच के नाम पर लंबित चल रहा है। जिसको लेकर मामला मुख्यमंत्री पोर्टल पर शिकायत के आधार पर मामला मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक जा पहुंचा। शासन स्तर से जांच बैठी तो मामले में सभी 23 कर्मचारियों की सेवा समाप्त कर वेतन वापसी के आदेश भी आलाधिकारियों द्वारा दिये गये, लेकिन वह भी जांच के नाम पर अधर में लटकाया जा रहा है।

23 कर्मचारियों की फर्जी नियुक्ति के मामले की शिकायत किसी और ने नहीं बल्कि नगर निगम के तत्कालीन मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी डा. प्रेम सिंह द्वारा आलाधिकारियों से की गई थी। जिसमें स्थानीय स्तर पर कार्रवाई नहीं होती देख उनके द्वारा 9/11/2021 को मुख्यमंत्री पोर्टल-आईजीआरएस पर शिकायत दर्ज कराई गई। वहीं, दूसरी ओर इस मामले में जनसूचना के माध्यम से बृजराज किशन गुप्ता के द्वारा भी सूचना मांगी गई और मानव अधिकार आयोग में मामले की शिकायत की गई।

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डा. प्रेम सिंह ने शिकायती पत्र के साथ उस शासनादेश 23 जुलाई 2012 का भी हवाला दिया गया। जिसमें फर्जी नियुक्ति के मामले में जो वित्तीय हानि निगम को होती है। ऐसी नियुक्ति को निरस्त कर निगम की हानि को रोका जाये। मामले की जांच तमाम आदेशों के बावजूद अधर में लटकी रही। मामले की जांच अब सीबीसीआईडी के पास होने की बात निगम के अधिकारियों द्वारा कही जा रही है। इस मामले में अब डा. प्रेम सिंह ने 22 मार्च 2023 को मुख्यमंत्री को फिर शिकायत भेजी और एक शिकायती पत्र कमिश्नर सेल्वा कुमारी जे. को भी भेजा।

जिसमें बताया कि जांच के लिये एक महीने का समय दिया गया था, लेकिन 18 माह बीतने के बाद भी निगम के आलाधिकारियों के द्वारा रिपोर्ट नहीं भेजी गई। तत्कालीन सेवानिवृत्त डा. प्रेम सिंह ने अपर नगरायुक्त ममता मालवीय पर जांच के नाम पर मामले में लगातार देरी की जा रही है। जिसमें करीब 33 करोड़ रुपये की अब तक निगम को वित्तीय हानि होने का भी आरोप लगाया गया है।

वहीं, दूसरी ओर नगर निगम द्वारा इस मामले में 11 अप्रैल 2020 को आयुक्त मेरठ मंडल मेरठ को एक पत्र भेजा है। इस पत्र में अपर नगरायुक्त द्वारा 23 कर्मचारियों की नियुक्ति के प्रकरण को लेकर तत्कालीन मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी नगर निगम डा. प्रेम सिंह पर गंभीर आरोप लगाते हुये कहा कि कि उनके द्वारा लगातार फर्जी शिकायतें की जा रही हैं। नगर निगम में उनका कार्यकाल विवादित रहा है।

उनकी दो बार थाने में प्राथमिकी भी दर्ज कराई थी। जिसमें पहली प्राथमिकी आउट सोर्सिंग स्वच्छता कर्मचारियों की आपूर्ति संबंधी निविदा प्रक्रिया की जांच की गई तो डा. प्रेम सिंह दोषी पाये गये। जिसके बाद उनके खिलाफ धारा 409 में रिपोर्ट दर्ज कराई गई। दूसरे मामले में रंजीत पुत्र भगत स्थाई स्वच्छता मित्र की नगरायुक्त की अनुमति के बिना मूल सेवा पुस्तिका में जन्मतिथि परिवर्तित कर दी गई थी।

इस मामले में भी वह दोषी पाये गये, जिसकी प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। उनके द्वारा झूठी शिकायत इसलिये की जा रही है, ताकि उनके खिलाफ जो मामले चल रहे हैं। उन प्रकरणों को खत्म कराया जा सके। फिलहाल इस मामले में तत्कालीन मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी एवं नगर निगम आमने-सामने हैं। देखना है कि सीबीसीआईडी की जांच व अब दोनों पक्षों द्वारा मुख्यमंत्री पोर्टल पर की गई शिकायतों के जवाब भेजे जा रहे हैं। उन पर आखिर क्या कार्रवाई होगी?

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