- हर साल 15 लाख से ज्यादा मरीज पहुंचे ओपीडी में
- सरकारी अस्पतालों में जांच करने वाले उपकरण तक मयस्सर नहीं
- पीएचसी और सीएचसी तो छोड़िए जनाब !
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: दावे भले ही कुछ भी किए जाएं, लेकिन जमीनी हकीकत की यदि बात की जाए तो जनपद की स्वास्थ्य सेवाएं इन दिनों बीमार चल रही है। हालात कितने गंभीर हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एलएलआरएम मेडिकल में अरसे से रेडियोलॉजिस्ट नहीं है। इसके अलावा बर्न वार्ड है, मगर शासन से स्टाफ नहीं भेजा जा रहा है। कमोवेश यही स्थिति रेडियोलॉजिस्ट को लेकर है।
गांव देहात में झोलाछाप के भरोसे मरीज
सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की यदि बात करें तो गांव देहात में हालात बद से बदतर हैं। यूं फाइलों में सीएचसी व पीएचसी मौजूद हैं, लेकिन इनमें इलाज व जांच के उपकरण कितने हैं। कितनी ऐसी सीएचसी हैं, जहां डाक्टर व अन्य चिकित्सकीय स्टाफ की कमी है। लोगों का कहना है कि यदि गांव में प्राइवेट डाक्टर जिन्हें स्वास्थ्य विभाग झोलाछाप बताता है वो ना हो तो हालात बेहद नाजुक हो जाएं।
इलाज के बजाय रेफर
जिला अस्पताल, मेडिकल कॉलेज, सीएचसी, पीएचसी हों या अर्बन हेल्थ सेंटर, सभी में चिकित्सकों की कमी है। दवाइयों का टोटा है। जांच करने वाले संसाधनों का अभाव है। मेरठ में सरकारी चिकित्सालयों में हर साल लगभग 15 लाख से ज्यादा मरीज आते हैं। सीएचसी-पीएचसी पर सर्जन और रेडियोलॉजिस्ट नहीं हैं। गायनिक भी गिनती की हैं। कमोबेश ऐसा ही हाल महिला जिला चिकित्सालय का है। जिला अस्पताल और मेडिकल में गंभीर मरीजों को उपचार के बजाय रेफर किया जाता है।
हालात बद से बदतर
सीएचसी व पीएचसी की यदि बात करें तो मेडिसिन, रेडियोलॉजी, न्यूरोलॉजी, ह्यूमन मेटाबोलिज्म, फोरेंसिक मेडिसिन समेत तमाम चिकित्सकों की कमी है। अल्ट्रासाउंड तक के लिए मरीजों को लंबा इंतजार कराया जाता है। मेडिकल में वर्तमान में डा. सुभाष रेडियो थेरेपी की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं, लेकिन डा. सुभाष भी अगले साल मार्च माह में रिटायर्ड हो जाएंगे। उनके बाद रेडियोथेरेपी कौन संभालेगा या फिर रेडियोलॉजी से डा. यासमीन के जाने के बाद हो हालात बने वैसा ही कुछ रेडियोथेरेपी में हो जाएगा कहा नहीं जा सकता।
जिला अस्पताल में कोई पुरसाहाल नहीं
सीएचसी और पीएचसी के इतर यदि जिला अस्पताल की बात की जाए तो वहां भी गंभीर मरीजों का इलाज करने के मेडिकल ही रेफर कर दिया जाता है। यहां भी गंभीर जले मरीजों को रेफर कर दिया जाता है। कैंसर के मरीजों के लिए रेडियोथेरेपी मशीन नहीं है। इसके अलावा न्यूरो सर्जरी, कैंसर से संबंधित आंकोलॉजी, त्वचा से संबंधित प्लास्टिक सर्जरी, गुर्दे से संबंधित नेफ्रोलॉजी, रेडियोथेरेपी, पीडियाट्रिक्स सर्जरी, हार्मोन से संबंधित एंडोक्राइनोलॉजी और एमआरआई आदि की सुविधा के लिए मरीज तरसते हैं।
महंगा इलाज कराने की मजबूरी
बदहाल सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की वजह से लोगों के पास केवल महंगा प्राइवेट इलाज कराने का ही विकल्प रह जाता है, लेकिन यह विकल्प भी कुछ गिनती के लोगों के पास है। सब मरीजों का महंगा इलाज कराना महंगाई के इस दौर में जब कमाई कम हो गयी है, संभव नहीं है। ऐसे मरीज फिर भगवान भरोसे रहने को मजबूर होते हैं।
प्रमुख सचिव को कराया अवगत
मेडिकल के कर्मचारी नेता सतीश त्यागी ने बताया कि मेडिकल में बर्न वार्ड चालू कराने के लिए प्रमुख सचिव स्वास्थ्य को भी अवगत कराया जा चुका है। मेडिकल में बर्न के मरीज बड़ी संख्या में आते हैं, लेकिन स्टाफ न होने की वजह से मरीज दूसरी जगह रेफर करने पड़ते हैं।