- नगर निगम की सरकारी लॉगिन आईडी एवं पासवर्ड के साथ नगर स्वास्थ्य अधिकारी के मोबाइल पर ओटीपी नंबर आने वाला प्रमाण पत्र ही वैध
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: नगर निगम से जन्म एवं मृत्यु प्रमाण पत्र जारी कराने वाले सवाधान हो जाएं। मंगलवार को नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग में जनवाणी की पड़ताल में बड़े फर्जीवाडेÞ का खुलासा हुआ। यदि पार्षद के माध्यम से या फिर स्वयं उपस्थित होकर आवेदन करने के बाद जन्म-एवं मृत्यु प्रमाण पत्र (सीआरएस.ओआरजीआई.जीओवी.इन) से आनलाइन जारी कराया है
तो कोई गारंटी नहीं की वह असली बना हो। जनवाणी की पड़ताल के बाद नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया। उधर, नगर स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा कि वह उनके कार्यालय में कंप्यूटर पर एक बार जारी प्रमाण पत्र की जांच आवश्य करा लें, कहीं वह भी तो दलालों के चक्कर में आकर फर्जी जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र तो प्राप्त नहीं कर रहे हैं।
नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग से यदि आप अपने किसी परिजन या परिचित का जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने जा रहे हैं तो सावधान हो जाएं। आपके द्वारा नगर निगम में जन्म एवं मृत्यु प्रमाण पत्र के लिये आवेदन करने के बाद आपको जो वेबसाइट के माध्यम से प्रमाण पत्र प्राप्त होगा वह असली है या फर्जी उसकी पहचान सामान्य व्यक्ति तो क्या कोई एक्सपर्ट भी नहीं कर सकता। यह कहना हमारा नहीं, बल्कि स्वयं नगर निगम के स्वास्थ्य प्रभारी डा. गजेंद्र सिंह का है।
इस पूरे मामले का खुलासा मंगलवार को उस समय हुआ, जब लिपिक दिनेश कुमार एवं पार्षद संजय सैनी के जन्म प्रमाण पत्र की सत्यता जाने के लिये जनवाणी संवाददाता ने नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग में तुषार पुत्र संजय के नाम से गत 18 दिसंबर को जारी जन्म-प्रमाण पत्र के लिए जांच पड़ताल की। जिसकी जांच पड़ताल के बाद डा. गजेंद्र द्वारा प्रमाण पत्र तो कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया कि यह असली है या फिर फर्जी,
लेकिन लिपिक दिनेश कुमार ने कंप्यूटर में इस नाम व तारीख डालकर वेबसाइट पर सर्च किया तो उस पर दिखाई नहीं दिया। जिस पर दिनेश कुमार ने इस जन्म प्रमाण पत्र को पूरी तरह से फर्जी करार दिया। जबकि इसी प्रमाण पत्र मोबाइल व दूसरे कंप्यूटर पर जाकर साइट पर लॉगिन करके स्क्रैन किया तो वह दिखाई दे गया। जिसके बाद दिनेश कुमार व डा. गजेंद्र सिंह से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि फर्जी असली दोनों ही दिखाई देने में एक जैसे होते हैं,
यहां तक कि डा. गजेंद्र ने बताया कि उनके डिजिटल हस्ताक्षर भी हूबहू बनाए गए हैं। केवल उनके मोबाइल पर ओटीपी नंबर के आने व कंप्यूटर में जो पासवर्ड होता है, उससे ही पता किया जा सकता है कि यह असली बना है या फिर फर्जी। सामान्य व्यक्ति की तो अलग बात है। एक बार को एक्सपर्ट भी फेल हो जायेगा कि असली कौन सा है या फिर फर्जी कौन सा है। डा. गजेंद्र सिंह ने बताया कि पूर्व में तो नगर निगम की सरकारी साइट ही हैक कर ली गई थी।
जिसको लेकर तीन वर्ष पूर्व पत्रांक संख्या-846 स्वास्थ्य विभाग नगर निगम-2020 एसएसपी को पत्र लिखकर मामले में एफआईआर दर्ज करने के लिए पत्र भी लिखा गया, लेकिन पुलिस द्वारा मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं किए जाने के चलते इस तरह के फर्जी प्रमाण पत्रों के जारी होने के मामले बढ़ रहे हैं। दिनेश कुमार ने बताया कि दर्जनभर से अधिक फर्जी प्रमाण पत्रों के मामले उनके पास आए हैं, जिनकी जांच चल रही है।
फर्जी जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र के मामले संज्ञान मेें आने पर कार्रवाई के लिए पुलिस प्रशासन को भी लिखा जाता है। एक बार नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग की साइट व पासवर्ड को हैक कर लिया गया था, जिसके संबंध में एसएसपी को भी लिखा गया, बाकी कार्य पुलिस का होता है कि वह जांच पड़ताल कर मामले में कार्रवाई करे। -डा. गजेंद्र सिंह, नगर स्वास्थ्य प्रभारी नगर निगम, मेरठ।
जिस जन्म प्रमाण पत्र को लेकर विवाद खड़ा हुआ है, वह वेबसाइट पर दिखाई दे रहा है। उनके पास नगर निगम के जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र विभाग में बडेÞ भ्रष्टाचार के सबूत मेरे पास हैं। जिसको लेकर भले ही लखनऊ जाकर शासन में मामले की शिकायत करनी पडेÞ। जिस तरह किसी भी जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र को फर्जी बता दिया जाता है, फिर दलालों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं कराई जाती है? यह एक बड़ा सवाल है। -पार्षद संजय सैनी, नगर निगम