जनवाणी डिजिटल डेस्क |
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 58 सीटों पर 60.71 फीसदी मतदान हुआ है जबकि 2017 में 64.56 फीसदी वोटिंग हुई थी। पिछले चुनाव में बीजेपी को 43 सीटों का फायदा हुआ था जबकि बसपा को 18 सीटें और सपा को 12 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था।
कांग्रेस अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी। हालांकि, इस बार सपा और आरएलडी एक साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पहले चरण के 11 जिलों की 58 सीटों पर 623 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम मशीन में कैद हो चुकी है। गुरुवार को पहले चरण में मतदाताओं का उत्साह पिछली बार के चुनाव की तरह नहीं दिखा।
चुनाव आयोग के मुताबिक, पहले दौर की 58 सीटों पर मतदान 60.17 फीसदी रहा जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में इन सीटों पर 64.56 फीसदी वोटिंग हुई थी। यूपी चुनाव के पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों की वोटिंग ट्रेंड को देखें तो पिछले चुनाव से तीन फीसदी वोटिंग कम हुई है।
हालांकि, 2012 के चुनाव में इन्हीं 58 सीटों पर 61.03 फीसदी वोटिंग रही थी। 2017 के चुनाव में करीब साढ़े 3 फीसदी वोटों का इजाफा हुआ तो बीजेपी को जबरदस्त फायदा मिला था और सत्ता में 15 साल के बाद वापसी की थी। वहीं, सपा, बसपा, कांग्रेस और रालोद को नुकसान उठाना पड़ा था।
2017 के विधानसभा चुनाव में पहले चरण की 58 सीटों में से बीजेपी ने 53 सीटों जीती थी जबकि सपा को 2, बसपा को 2 और एक सीट आरएलडी को मिली थी। वहीं, 2012 में इन 58 सीटों में बीजेपी को 10 सीट, सपा को 14 और बसपा को 20 सीटें मिली थीं और 4 सीटें कांग्रेस ने जीती थी। वहीं, 8 सीटें आरएलडी ने जीती थी जबकि 3 सीटें अन्य दलों ने जीती थीं। इस लिहाज से देखें तो 2017 के चुनाव में बीजेपी के 43 सीटों का लाभ मिला था।
वहीं, बसपा को 18 सीटें और सपा को 12 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था। आरएलडी को सात सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था जबकि कांग्रेस अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी और उसकी जीती हुई चारों सीटों पर बीजेपी ने कब्जा जमाया था। वहीं, 2007 के विधानसभा चुनाव में पहले चरण की इन 58 सीटों पर 48.26 फीसदी वोटिंग हुई थी और बसपा सत्ता में आई थी।
2007 के मुकाबले 2012 के चुनाव में करीब 13 फीसदी अधिक वोटिंग हुई। इसका असर यह हुआ कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की लड़ाई में सत्ता विरोध की लहर का फायदा सपा को हुआ। सपा 2012 के चुनाव में जीत दर्ज करने में कामयाब रही थी। पहले चरण की 11 जिलों में से 7 सीटों पर ही पिछली बार के मुकाबले वोटिंग बढ़ी है जबकि 4 जिलो में कम हुई है।
बागपत, बुलंदशहर, हापुड़, मथुरा, मेरठ, मुजफ्फरनगर और शामली में वोट प्रतिशत बढ़े हैं जबकि नोएडा, गाजियाबाद, आगरा और अलीगढ़ में पिछली बार से कम वोटिंग हुई है। शामली जिले में पिछली बार की तुलना में करीब 10 फीसदी ज्यादा वोटिंग हुई है तो नोएडा में 10 फीसदी कम हुई है। चुनाव में वोटिंग फीसदी के घटने-बढ़ने का सीधा-सीधा असर चुनावी नतीजों पर भी पड़ता है।
उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने के लिए पश्चिमी यूपी के सियासी दरवाजे से घुसना सबसे मुश्किल रहा है, लेकिन जिसने भी पश्चिमी यूपी में जीत का परचम लहर उसे सत्ता पाने से कोई रोक नहीं पाया। 2017 में बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया था और विपक्ष का सफाया कर दिया था।
हालांकि, सपा और आरएलडी पिछली बार अलग-अलग चुनाव लड़ रही थी जबकि इस बार दोनों साथ हैं। मुजफ्फरनगर दंगे से जाट वोटर आरएलडी, सपा से छिटककर बीजेपी के साथ चला गया था, जिसका बीजेपी को लाभ तो विपक्ष को नुकसान हुआ था। किसान आंदोलन के चलते जाट और मुस्लिम मुजफ्फरनगर की खलिश भुलाकर साथ तो आए हैं, लेकिन वोटिंग में क्या एकजुटता रही, यह 10 फरवरी में ही साफ होगा।
बीजेपी ने 2017 में अपने जीते हुए पहले चरण के 53 विधायकों में से 19 के टिकट काटकर नए चेहरे उतारे थे जबकि 34 सीटों पर पार्टी के मौजूदा विधायक चुनाव लड़ रहे थे। इसके अलावा बीजेपी के तीन ऐसे उम्मीदवारें थे, जो पिछला चुनाव बसपा के टिकट पर लड़े थे।वहीं, सपा-आरएलडी के साथ गठबंधन कर मैदान में थी। पहले चरण की 58 में से 29 सीटों पर आरएलडी, 28 पर सपा और एक सीट पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी चुनाव लड़ी हैं।
सपा-आरएलडी ने 58 में से 43 विधानसभा सीटों पर नए उम्मीदवार उतारे हैं। पश्चिमी यूपी भी बसपा का गढ़ माना जाता है। बसपा सभी 58 सीटों पर चुनावी मैदान में है। 2017 विधानसभा चुनाव जीतने वाले दो उम्मीदवारों को छोड़कर बाकी की 56 सीटों पर नए उम्मीदवारों को उतारा है।
हालांकि, बसपा पिछले चुनाव में 30 सीटों पर नंबर दो पर रही थी, कांग्रेस ने पहले चरण की 58 सीटों में से 53 सीट पर नए चेहरे उतारे थे। हालांकि, पिछले चुनाव में सपा के साथ गठबंधन होने के चलते कांग्रेस 23 सीटों पर ही चुनाव लड़ी थी। पहले चरण के शामली जिले की तीन सीटों पर चुनाव हुआ, जिनमें 2 बीजेपी और एक सपा के पास है। मेरठ की 7 में से 6 बीजेपी और एक सपा के पास है।
बागपत जिले की तीन में से 2 सीटें बीजेपी ने जीती और एक आरएलडी को मिली थी, जो बाद में बीजेपी में शामिल हो गए थे। बुलंदशहर की सभी सातों सीटों पर बीजेपी का कब्जा है। नोएडा की तीनों सीटें बीजेपी के पास हैं। गाजियाबाद की सभी 5 सीटें बीजेपी ने जीती थी।
अलीगढ़ की सभी सातों बीजेपी ने जीती थी। हापुड़ की 3 सीटों में से 2 बीजेपी और एक बसपा ने जीती थी, लेकिन बसपा विधायक सपा में शामिल हो गए हैं। मुजफ्फनगर की सभी 6 सीटें बीजेपी के पास हैं। मथुरा की पांच में चार बीजेपी और एक बसपा ने जीती हैं। आगरा की सभी 9 सीटों पर बीजेपी का कब्जा है।