फिलाडेल्फिया में फ्रैंकलिन नामक एक गरीब युवक रहता था। उसके मोहल्ले में हमेशा अंधेरा रहता था। वह रोज देखता कि अंधेरे में आने-जाने में लोगों को दिक्कत होती है। एक दिन उसने अपने घर के सामने एक बांस गाड़ दिया और शाम को उस पर एक लालटेन जला कर टांग दी। ऐसा करने से उसके घर के सामने तो रोशनी हो गई, लेकिन शेष मोहल्लाअंधेरे में ही डूबा रहा।
पड़ोसियों ने इसके लिए उसका मजाक भी उड़ाया। एक व्यक्ति बोला, ‘फ्रैंकलिन, तुम्हारे एक लालटेन जला देने से कुछ नहीं होगा। पूरे मोहल्ले में तो अंधेरा ही रहेगा।’ उसके घर वालों ने भी उसके इस कदम का विरोध किया और कहा, ‘तुम्हारे इस काम से फालतू में पैसा खर्च होगा। तुम अकेले नहीं हो, इस मोहल्ले में जो अधेरे में रहता है, और भी बहुत हैं, उन्होंने तो ऐसा नहीं किया।’
फ्रैंकलिन ने कहा, ‘मानता हूं कि एक लालटेन जलाने से ज्यादा लोगों को फायदा नहीं होगा, मगर कुछ लोगों को तो इसका लाभ मिलेगा ही।’ कुछ ही दिनों में इसकी चर्चा शुरू हो गई और फ्रैंकलिन के प्रयास की सराहना भी होने लगी। उसकी देखादेखी कुछ और लोग अपने-अपने घरों के सामने लालटेन जला कर टांगने लगे। एक दिन पूरे मोहल्ले में उजाला हो गया। यह बात शहर भर में फैल गई और म्युनिसिपल कमेटी पर चारों तरफ से दबाव पड़ने लगा कि वह मोहल्ले में रोशनी का इंतजाम अपने हाथ में ले।
कमेटी ने ऐसा ही किया। फ्रैंकलिन की शोहरत चारों तरफ फैल गई। एक दिन म्युनिसिपल कमेटी ने फ्रैंकलिन का सम्मान किया। इस मौके पर उसने कहा कि हर अच्छे काम के लिए पहल किसी एक को ही करनी पड़ती है। अगर हर कोई दूसरे के भरोसे बैठा रहे, तो कभी अच्छे काम की शुरूआत होगी ही नहीं। हम भी क्या इस भरोसे नहीं बैठे रहते कि कोई दूसरा आकर हमारा काम कर दे। पहल खुद करनी चाहिए।