Friday, April 19, 2024
- Advertisement -
Homeसंवादअशांत पंजाब बड़ी चिंता का विषय

अशांत पंजाब बड़ी चिंता का विषय

- Advertisement -

Samvad


RAJESH MAHESHWARI 2पंजाब की हवाओं में अशांति तैरने लगी है। बीते दिनों ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन के प्रमुख अमृतपाल सिंह के समर्थकों द्वारा अजनाला पुलिस थाने पर कब्जा कर लिया गया। जिस तरह सडक पर तलवारों, लाठियों और बंदूकों के साथ सिखों का सैलाब देखा गया और उसने अजनाला पुलिस स्टेशन पर धावा बोल दिया, तो लगा कि पंजाब पुलिस बेबस, लाचार और असहाय हो गई है! उसका मनोबल टूट चुका है। पंजाब में बेकाबू हुए हालातों ने देशभर के लोगों का दिल दहला दिया है। 1995 के बाद बाद काफी हद तक खालिस्तानी घटनाएं कम हो गई थीं, जबकि भारत से बाहर खालिस्तान की मांग को लेकर आंदोलन होते रहे। अब हाल के वर्षों में पंजाब में एक बार फिर यह सिर उठा रहा है। खालिस्तान यानी खालसाओं का अलग देश। इस आंदोलन के तार वैसे तो आजादी के 18 साल पहले 1929 में हुए लाहौर अधिवेशन से ही जुड़े हुए हैं, जिसमें शिरोमणि अकाली दल ने सिखों के लिए अलग राज्य की मांग की थी, लेकिन आजादी के बाद जब भारत और पाकिस्तान अलग हुए तो इस मांग को और हवा मिली। 1947 में ही ‘पंजाबी सूबा आंदोलन’ शुरू हुआ। 1966 में जब इंदिरा गांधी की सरकार थी, तब पंजाब तीन टुकड़ों में बंटा। सिखों की बहुलता वाला हिस्सा पंजाब, हिंदी भाषियों की बहुलता वाला हिस्सा हरियाणा और तीसरा हिस्सा चंडीगढ़ बना।

इसके बावजूद खालिस्तान की मांग जारी रही। अलग राज्य नहीं, अलग देश की मांग। 80 के दशक में पंजाब में हिंसक घटनाएं बढ़ती जा रही थीं। इसके पीछे था, जरनैल सिंह भिंडरावाले, जिसे ‘आॅपरेशन ब्लू स्टार’ में मार गिराया गया। वर्तमान में दुबई से लौटा अमृतपाल सिंह ‘दूसरा भिंडरावाला’ बनने के संकेत दे रहा है। भिंडरावाला ही उसका ‘आदर्श’ है। उसने खुद को ‘स्वयंभू खालिस्तानी’ घोषित कर दिया है।

उसने साफ कहा है कि वह ‘भारतीय’ नहीं है। पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार बनने के बाद से कानून और व्यवस्था पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। सिंगर सिद्धू मूसेवाला, डेरा सच्चा सौदा के भक्त से लेकर हिंदूवादी नेता सुधीर सूरी की हत्या की बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं। खालिस्तानी तत्व भी लगातार सिर उठा रहे हैं। खालिस्तानी तत्व भी लगातार सिर उठा रहे हैं। ऐसे में अमित शाह की हालात को कंट्रोल से बाहर न जाने देने की बात ये साफ कर रही है कि केंद्र सरकार पंजाब के हालात के प्रति उदासीन नहीं है।

अमृतपाल ने खुद को ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन का मुखिया भी घोषित कर दिया है। यह संगठन दिवंगत अभिनेता-गायक दीपसिद्धू ने बनाया था। बहरहाल अमृतपाल सिंह और उसके खालिस्तान-समर्थक सिखों, निहंगों ने जिस तरह अपने साथी लवप्रीत तूफान को जेल से रिहा कराया है और उसे तमाम आरोपों से मुक्त भी करना पड़ा है, यह पंजाब में खालिस्तान के दौर की वापसी के संकेत हैं।

केंद्रीय गृह मंत्रालय को चिंतित होकर पंजाब पुलिस और गुप्तचर ब्यूरो से रपटें तलब करनी पड़ी हैं। सुरक्षा एजेंसियों की उच्चस्तरीय बैठक भी की गई, जिसके बाद ‘नए भिंडरावाले’ पर एक डोजियर तैयार किया जा रहा है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह समेत कई नेताओं और पूर्व शीर्ष पुलिस अधिकारियों ने केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के आग्रह किए हैं।

कुछ माह पहले मोहाली में पंजाब पुलिस के खुफिया मुख्यालय में राकेट से किए गए हमले में खालिस्तानी आतंकियों का हाथ था। इसी तरह यह भी किसी से छिपा नहीं कि गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद विदेश में बैठे खालिस्तानी आतंकी पंजाब के अन्य लोगों को भी धमकियां देने में लगे हुए हैं। कई हिंदू नेताओं को भी धमकियां मिल रही हैं। शिवसेना नेता सुधीर सूरी को भी धमकियां मिल रही थीं। हालांकि उन्हें सुरक्षा प्रदान की गई थी, लेकिन इसके बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका।

पंजाब पुलिस के सामने पहले से ही कई चुनौतियां हैं। इनमें से एक पंजाब में नशीले पदार्थों का बढ़ता चलन है। पंजाब में नशे का जो कारोबार हो रहा है, उसमें भी खालिस्तानी तत्वों का हाथ दिख रहा है। वास्तव में पंजाब में जो कुछ हो रहा है, वह राष्ट्रीय चिंता का विषय बनना चाहिए। चूंकि पंजाब के माहौल को खराब करने में पाकिस्तान, कनाडा के साथ अन्य देशों में बैठे खालिस्तानी तत्वों की भी भूमिका दिख रही है इसलिए केंद्र सरकार को भी सक्रिय होना होगा।

यह शुभ संकेत नहीं कि पंजाब में ऐसे तमाम समर्थक बेलगाम होते दिख रहे हैं। इनमें से कुछ तो खुलेआम पंजाब का माहौल खराब करने में जुटे हैं, लेकिन पुलिस उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई नहीं कर पा रही है। पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगाना तो फिलहाल जल्दबाजी होगी, लेकिन अमृतपाल सिंह की नकेल कसने की कोशिश जरूर की जा सकती है। उसके सोशल मीडिया अकाउंट्स बंद करा दिए गए हैं।

दरअसल पंजाब की ‘आम आदमी पार्टी’ की सरकार को न तो इन खालिस्तानी हरकतों की परवाह है और न ही मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान रणनीतिक सोच या ज्ञान वाले राजनेता हैं। पंजाब में आजकल कई स्तरों पर अराजकता दिख रही है। किसान और युवा भी आंदोलित होकर सडकों पर हैं। यदि वे और खालिस्तान-समर्थक आपस में मिल गए, तो बेहद चुनौतीपूर्ण ताकत बन सकते हैं। पंजाब सरकार को मंथन करना चाहिए और पंजाब जैसे संवेदनशील राज्य में शांति और व्यवस्था कामय रहे इसके लिए कारगर कदम उठाने चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो पाए।


janwani address 7

What’s your Reaction?
+1
0
+1
2
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments