जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: यात्रियों को तरस रही मेरठ से लखनऊ के बीच संचालित होने वाली सेमी हाईस्पीड ट्रेन वंदे भारत को अयोध्या और बनारस जाने को ग्रीन सिग्नल नहीं मिल रहा। अयोध्या और बनारस तक संचालित होने से इस ट्रेन की आय बढ़ने की रिपोर्ट मिलने के बाद भी रेलवे ने इसके गंतव्य को नहीं बढ़ाया। स्थानीय यात्री इसकी वजह स्थानीय जनप्रतिनिधियों की कमजोर पैरवी करार दे रहे हैं।
दरअसल, मेरठ से लखनऊ के लिए 22490 और 22491 वंदे भारत का संचालन 31 अगस्त, 2024 को शुरू किया गया था। मेरठ से लखनऊ के लिए यूं तो सहारनपुर से लखनऊ जाने वाली नौचंदी एक्सप्रेस और मेरठ से लखनऊ के लिए राज्यरानी एक्सप्रेस संचालित होती है। वंदे भारत सुबह में सिटी स्टेशन से लखनऊ के लिए चलती है। इसके एक घंटा बाद राज्यरानी एक्सप्रेस चलती है। वंदे भारत राज्यरानी से मात्र एक घंटा पहले पहुंचाती है, जबकी वंदे भारत का किराया नौचंदी एक्सप्रेस से बहुत महंगा है। इसी वजह से राज्यरानी एक्सप्रेस यात्रियों से भर जाती है, लेकिन वंदे भारत में लगभग आधी से अधिक सीटें खाली रहती हैं। यात्रियों द्वारा वंदे भारत टेÑन को अयोध्या होते हुए बनारस तक संचालित करने की मांग की जा रही थी। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व राज्यसभा सदस्य डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेई ने रेलवे के डीआरएम से लेकर रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव से कई बार मुलाकात करके वंदे भारत को बनारस तक वाया अयोध्या संचालित करने की मांग की थी।
सांसद अरुण गोविल ने भी डीआरएम और रेलमंत्री से इस संबंध में आग्रह किया था। रेलमंत्री इन जनप्रतिनिधियों को शीघ्र वंदे भारत को बनारस तक संचालित करने का भरोसा देते हुए रेलवे के अधिकारियों को तमाम औपचारिकताएं पूरी करने के आदेश दिए थे। रेलवे के अधिकारियों ने वंदे भारत को बनारस तक चलाने के लिए प्रस्ताव समय सारिणी भी तैयार की। 10 माह में रेलवे ने मेरठ से संचालित वंदे भारत को बनारस तक संचालित करने को ग्रीन सिग्नल नहीं दिया। रेलवे के सूत्रों का कहना है कि वंदे भारत की जिस ट्रेन के नए रैक को मेरठ से बनारस तक संचालित किया जाना था। उसे लखनऊ भेज दिया और वहां से विशेष ट्रेन के रूप में बनारस होते हुए छपरा तक संचालित किया जा रहा। मेरठ के यात्री वेंटिंग में हैं। खास बात है कि रेलवे के अधिकारियों ने वंदे भारत को बनारस तक चलाने से इसमें यात्रियों की संख्या में वृद्धि होने के साथ रेलवे की आय भी बढ़ने की उम्मीद जताई थी, लेकिन इस उम्मीद को रेलवे के उच्च अधिकारियों ने सच में नहीं बदला।