Saturday, July 27, 2024
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मैसेंजर मूवी को भी दर्शक जरुर देखें: बिदिता बाग

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सिनेमा के हर फार्मेट में अपने बेहतर किरदान निभाने वाली इस अदाकारा ने धूम मचा रखी है। इन्होंने मुख्य रूप से बंगाली भाषा में अभिनय किया है साथ ही कई विज्ञापनों में भी काम किया है। नवाजुद्दीन सिद्दीकी के साथ बाबूमोशाय बंदूकबाज फिल्म से पहचान मिलने के बाद कई अन्य फिल्म व वेब सीरिज में काम किया है और आगे भी जारी है।इनका मानना है कि मनोरंजन के अलावा मैसेजंर मूवी भी बननी चाहिए। बीते दिनों ‘लकीरें’ फिल्म वैवाहिक दुष्कर्म जैसे बेहद महत्वपूर्ण विषय पर आधारित थी जिसमेंयह बताया गया है किआजकल के परिवेश में किस तरह रिश्ते खराब व खत्म हो रहे हैं। इस मुद्दे व अन्य तमाम बातों को लेकर बॉलीवुड की जानीमानी अदाकाराबिदिता बाग से योगेश कुमार सोनी की एक्सक्लूसिव बातचीत…

भारतीय सिनेमा में आप किस तरह के फॉर्मेट में काम करना चाहिए।

कलाकार को हर तरह के किरदार निभाना पड़ता है। जैसी स्टोरी होती है उस ही तरह के अभिनय से दर्शकों का मनोरंजन करना पड़ता है।हमारे देश में कई हर तरह के सिनेमा को देखने वाले हैं। हर किसी का अपना टेस्ट होता हैलेकिन एक कलाकार कभी विलेन तो कभी कॉमेडियन के रुप में रोल करना पड़ता है और किसी भी स्थिति में उसको अपनी उपस्थिति दर्ज ही करवानी होती है जिसके लिए वो हर किरदार को करने का अथक प्रयास करता है। मैं अपने किरदार को निभाने के लिए हर रोल चैलेंज के रुप में लेती हूं।

‘लकीरें’में वैवाहिक दुष्कम्र को दर्शाया गया है। ऐसी स्टोरी से बदलाव आ सकता है?

हर रिश्ते में एक प्यार होता है या यूं समझिये कि जहां प्यर होता है वहां रिश्ता होता है लेकिन जहां जबरदस्ती आ जाती है वहां कोई भी रिश्ता विपरित दिशा में चला जाता है। लकीरें फिल्म में रिश्तों में जबरदस्ती वैवाहिक संबंध का विरोध दर्शाया गया है। यदि आपकी वाइफ आपने शारीरिक संबंध नही बनाना चाहती तो आप जबरदस्ती नहीं कर सकते हैं क्योंकि यह भी एक अपराध माना जाता है। बात रही बदलाव की तो यदि हम किसी की गंभीरता समझते हैं तो निश्चित तौर पर बदलाव आएगा।

आजकल की पीढ़ी रिलेशनशिप में तो सालों तक रह लेती हैं लेकिन जैसे ही शादी होती है वैसे ही तलाक की नौबत आ जाती है। आपको क्या लगता है?

आज के दौर में बहुत से लोग जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते। इसके अलावा जब शादी नहीं होती तब तक एक-दूसरे की हर बात अच्छी लगती है और ऐसे लोग शादी से पहले वाले जीवन की अपेक्षा करते हैं जो किसी भी स्थिति में संभव नहीं हो पाता। शादी एक वो बंधन जिसमें आप जिंदगी से जुड़े हर पहलू को समझना होता है, लेकिन आजकल की युवा पीढ़ी इस बात से न जाने दूर भागती है। जिसकी वजह से घर बर्बाद हो रहे हैं। घर बर्बाद होने की वजह से समाज पीछे आ रहा है और समाज ऐसे ही चलता रहा तो देश पीछे आ जाएगा चूंकि हमारा देश युवाओं का देश है।

बॉलीवुड में कंपिटिशन को लेकर क्या सोचती हैं आप ?

देखिये कंपटिशिन तो हर जगह है और आपको हर जगह अपने आप को प्रूव करना पड़ता है। सिनेमा और क्रिकेट दोनों ऐसी जगह है जहां आप एंट्री अपनी प्रफोमेंस से ही कर सकते हैं। हां, लेकिन स्टार किड्स के अपेक्षा आम कलाकार को अधिक प्रयास व मेहनत करनी पड़ती है। क्योंकि उनको एक्टिंग व प्लेटफॉर्म विरासत में मिलता है, लेकिन उसमें भी टिक वही पाता है जिसकी एक्टिंग में दम होता है।

अपने प्रशंसकों व दर्शकों के लिए कोई संदेश?

मैं अपने हर रोल को बेहतर करती हूं जिससे मुझे हमेशा दर्शकों का प्यार व आशीर्वाद मिलता रहा है और ऐसे ही प्यार करते रहिए। इसके अलावा अपनी हर रिश्ते व कमिटमेंट को समझिये व निभाये चूंकि विश्वास वो चीज हैं जो एक बार बन जाए तो जिंदगी बेहद सरल हो जाती है और यदि टूट जाए तो जिंदगी व्यर्थ हो जाती है। जो लोग सिनेमा देखते हैं उन्हें ‘लकीरें’ जैसी फिल्म जरूर देखनी चाहिए। शायद किसी की बिगड़ी बात बन ही जाए या कोई गलती है तो व सुधर जाए। कॉमेडी व एक्शन के अलावा मैसेंजर फिल्म भी जरुर देखें। उसमें मनोरंज ज्यादा तो नही लेकिन सीख बड़ी मिलती है।

प्रीति सूरी के किरदार में गौरी तेजवानी की यादगार अदाकारी

कश्मीर की सुंदर घाटी की अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता के साथ प्रेम की एक खूबसूरत गाथा पेश करता टेलीविजन शो ‘पश्मीना-धागे मोहब्बत के’ में अभिनेत्री गौरी तेजवानी, पश्मीना की मां की भूमिका में हैं। इस टीवी शो में ईशा शर्मा और निशांत मलकानी ने क्रमश: पश्मीना और राघव की भूमिकाओं में जान डाल दी हैं लेकिन सबसे कमाल की अदाकारी गौरी तेजवानी की रही जिन्होंने पश्मीना की मां प्रीति सूरी की अहम भूमिका निभाई है। प्रीति एक ऐसी मजबूत महिला है जिनके विश्वास ने ही पश्मीना को आत्म विश्वास से लबरेज करते हुए आत्मनिर्भर और सशक्त बनाया। गौरी तेजवानी इस शो का हिस्सा बनने को एक अविश्वसनीय घटना मानती है। उनका कहना है कि ‘प्रेम में विश्वास करने वाली प्रीति जैसे चरित्र को पर्दे पर जीवंत करना उनके लिए एक यादगार और अनूठा अवसर रहा है। जिस तरह से दर्शक इस शो का आनंद ले रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा आनंद उन्होंने इस किरदार को निभाते हुए लिया’। गौरी तेजवानी ने इस शो में प्रीति सूरी का जो किरदार निभाया, लेखक ने अपनी लेखनी के जरिये सारा फोकस उनके इसी किरदार पर केन्द्रित किया है। वाकई वह एक ऐसा किरदार है जिसके लिए गए फैसले और कार्य, न केवल दो प्रेमियों के रिश्ते को आकार देते हैं बल्कि उन दोनों के भाग्य में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। करियर के दूसरे टीवी शो ‘कुटुम्ब’ (2001-2002) में काम करते वक्त गौरी प्रधान को अपने को-स्टार हितेन तेजवानी से प्यार हो गया। हालांकि इसके पहले भी दोनों एक एड फिल्म की शूटिंग के दौरान मिल चुके थे लेकिन ‘कुटुम्ब’ (2001-2002) में काम करते-करते दोनों बेहद करीब आते चले गए। काफी वक्त तक दोनों लिव इन में भी रहे। हितेन शादीशुदा थे लेकिन उन्होंने यह बात गौरी से छिपाई नहीं और उनकी इस ईमानदारी से प्रभावित होकर ही गौरी ने इस तरह 2004 में हितेन को हमसफर के रूप में चुन लिया। इस तरह वह गौरी प्रधान से गौरी तेजवानी बन गर्इं।


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