कर्म योग को समझने के लिए कर्तव्य को जानना बेहद जरूरी है। अगर मैं कुछ करना चाहता हूं, तो सबसे पहले मुझे मालूम होना चाहिए कि मुझे करना क्या है, उसके बाद यह कि करना कैसे है। मुसलमान कहते हैं कि जो कुरान में लिखा है, वह उनका कर्तव्य है। हिंदू कहते हैं जो वेदों में लिखा है वह उनका कर्तव्य है। वहीं ईसाई कहते हैं कि जो बाइबिल में लिखा है, वही उन्हें करना है। ‘कर्म’ की सटीक परिभाषा किसी भी और भावात्मक विचार की तरह दे पाना लगभग नामुमकिन है। जब हमारे सामने कुछ चीजें होती हैं, तब हम अपने प्राकृतिक स्वभाव के मुताबिक ही उस पर प्रतिक्रिया देते हैं। जब यह प्रतिक्रिया होती है, तब हमारा दिमाग उस परिस्थिति के बारे में सोचने लगता है। कभी उसे लगता है कि इस परिस्थिति पर ऐसी प्रतिक्रिया देना सही होगा। लेकिन दूसरी तरफ ठीक उसी तरह की परिस्थितियों में उसे लगता है कि ऐसी प्रतिक्रिया देना सही नहीं होगा। अगर किसी ईसाई को बीफ का एक टुकड़ा मिले और वह उसे अपना जीवन बचाने के लिए न खाए या किसी और का जीवन बचाने कि लिए उसे न दे तो निश्चय ही उसे लगेगा कि उसने अपना कर्तव्य नहीं निभाया। लेकिन अगर किसी हिंदू को वह टुकड़ा खाना पड़े तो उसे लगेगा कि उसने अपना धर्म भ्रष्ट कर लिया। बीते युग में भारत में ठग नाम के लुटेरों का एक गिरोह था। वह मानते थे कि यह उनका कर्तव्य है कि वह किसी व्यक्ति को मारकर उसका पैसा लूटें। वहीं अगर कोई आम आदमी किसी दूसरे को गोली मार दे तो उसे अपने इस कृत्य पर आत्मग्लानि होगी। लेकिन अगर वही आदमी एक सैनिक हो, तो उसे एक की जगह 20 को मारने में भी गौरव महसूस होगा। वह समझेगा कि उसने अपना कर्तव्य निभाया।
कर्मयोग क्या है?
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