Sunday, June 16, 2024
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क्या सबक लेंगे रामदेव?

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CHETNADITYA ALOKबाबा रामदेव, योग-प्राणायाम,काले धन की वापसी, आयुर्वेदिक दवाओं एवं अन्य उत्पादों की लॉन्चिंग, प्रचार तथा बिक्री, विदेशी-बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विरोध, सरकार के पक्ष में खड़े रहने और कभी-कभी किसी नेता के पक्ष में वोट की अपील आदि करने के लिए मीडिया में चर्चा का विषय बनते रहे हैं। हालांकि इस बार वे देशी-विदेशी मीडिया की सुर्खियों में इसलिए छाए हुए हैं, क्योंकि अपने भ्रामक विज्ञापनों के मामले में उन्हें सर्वोच्च न्यायालय की तीखी आलोचना और फटकार का सामना करना पड़ा है। दरअसल, बाबा रामदेव वर्षों से एलोपैथ के विरोधी रहे हैं, उसे कटघरे में खड़े करते रहे हैं। देखा जाए तो एलोपैथ का विरोध कई मायनों में उचित भी हो सकता है, किंतु बाबा रामदेव कई बार ऐसा प्रतीत होता है कि वे सिर्फ अपनी कंपनी (पतंजलि आयुर्वेद) के उत्पादों को एलोपैथ की तुलना में बेहतर साबित करने और लोगों के लिए अधिक हितकारी बताने के लिए विरोध कर रहे होते हैं।

हालांकि भारत जैसे जीवंत लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी कंपनी अथवा उसके उत्पादों का विरोध अनपेक्षित नहीं माना जा सकता, लेकिन बिना किसी ठोस वजह या प्रमाण के एलोपैथ क्या, किसी भी चिकित्सा पद्धति का विरोध करना या उसके उत्पादों को गलत बताना उचित नहीं ठहराया जा सकता। वहीं, हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अब तक एलोपैथ के कारण देश में करोड़ों जिंदगियां बचाई जा सकी हैं और आज भी बचाई जा रही हैं। इस पद्धति में दुनिया भर में नित नए शोध किए जा रहे हैं, जबकि इसकी तुलना में आयुर्वेदिक पद्धति में शोध कार्य बहुत ही कम हुए हैं। यह विडंबना ही है कि आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जनक भारतवर्ष में युगों पुरानी अत्यंत समृद्ध परंपरा होने के बावजूद स्वतंत्रता के बाद भी इसे विकसित करने के उद्येश्य से शोध कार्यों को प्रोत्साहित करने का समुचित प्रयास नहीं करते हुए इसे उपेक्षित ही रखा गया।

इसमें संदेह नहीं कि इधर कुछ वर्षों में आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार में बाबा रामदेव ने बहुत कार्य किया है। योग और प्राणायाम के मामले में भी बाबा रामदेव पर कोई सवाल नहीं उठाता, लेकिन प्राय: प्रत्येक बात में एलोपैथ पर ही सवाल खड़े करना उचित नहीं होगा। देखा जाए तो बाबा रामदेव ने साइकिल की सवारी से योग गुरु की अपनी यात्रा शुरू की थी और कुछेक वर्षों के भीतर ही उन्होने पहले योग के माध्यम से अपनी फैंस फौलोइंग बढ़ाई और फिर भारतीय राजनीति में अपना प्रभाव जमाया। बाद में आयुर्वेदिक दवाओं के क्षेत्र में उतरे और महज कुछ ही वर्षों के दौरान विदेशी तथा बहुराष्ट्रज्ीय कंपनियों के विरूद्ध अभियान चलाकर पतंजलि आयुर्वेद को करोड़ों की कंपनी बना डाली। वैसे बाबा रामदेव और उनकी कंपनियों पर कई प्रकार के आरोप पहले भी लगते रहे हैं, यथा विभिन्न राज्यों में जमीनें लेने, पतंजलि आयुर्वेद की दवाओं के द्वारा घातक और प्राय: लाइलाज मानी जाने वाली बीमारियों को जड़ से ठीक कर देने के दावे करने, समय-समय पर विभिन्न उत्पादों में अशुद्धियां पाए जाने तथा अपनी दवाओं की गुणवत्ता एवं उपयोगिता को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करने के मामले आदि।

बता दें कि कोरोना जैसे दुर्घट काल में बाबा रामदेव नेयह दावा किया था कि कोरोनिल और स्वासारी से कोरोना से पीड़ित लोगों को ठीक किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त कई बार बाबा रामदेव योग और पतंजलि आयुर्वेद के उत्पादों के द्वारा बेहद घातक और प्राय: लाइलाज मानी जाने वाली एड्स,कैंसर, बीपी, डायबिटीज एवं होमोसेक्सुएलिटी जैसी बीमारियों को भी जड़ से ठीक कर देने के दावे करते रहे हैं। इनके अतिरिक्त 2015 में हरिद्वार में लोगों ने पतंजलि घी में अशुद्धियां पाए जाने की शिकायत की थी। 2015 में ही कैंटीन स्टोर्स डिपार्टमेंट (सीएसडी)ने पतंजलि आयुर्वेद के आंवला जूस पीने के लिए अयोग्य बताते हुए अपने सारे स्टोरों से इसे हटा दिया था। 2018 में एफएसएसआई ने आयुर्वेदिक दवा गिलोय घनवटी पर एक महीने बाद की उत्पादन तिथि लिखने संबंधी गड़बड़ी पकड़ी थी। इसी प्रकार लगभग तीन वर्ष पूर्व पतंजलि के एलोवेरा जूस में गाड़ियों और मशीनों में उपयोग किए जाने वाले काले रंग के ग्रीस में लिपटे प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़े पाए जाने के बाद मैंने संबंधित दुकान में इसे लौटाकर कार्रवाई करने की मांग की थी। ऐसे ही एक बार पतंजलि के शहद में सीमा से अधिक एंटीबायोटिक्स के मिलावट की बात भी खबरों के माध्यम से सामने आई थी। वैसे एक समय उनके सहयोगी के रूप में योग और आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार में जोर-शोर से लगे राजीव दीक्षित की संदेहास्पद मृत्यु को लेकर भी बाबा रामदेव के ट्रस्ट और लोगों पर उंगलियां उठी थीं।

ये तमाम बातें हैं, जो बाबा रामदेव के समर्थकों को भी जाननी चाहिए। वैसे बड़ी-बड़ी बातें बोलने के आदी और अति उत्साही प्रवृति के बाबा रामदेव ने उपलब्धियां भी काफी बड़ी-बड़ी हासिल कर ली हैं और वह भी बेहद तीव्रता से। शायद कम ही लोग जानते होंगे कि साइकिल के बाद एक बेहद उत्साही बाइकर के रूप में उभरे बाबा रामदेव अब कथित तौर पर निजी विमानों से देश-विदेश की यात्राएं करने लगे हैं। देखा जाए तो बाबा रामदेव एक अत्यंत ही महत्वाकांक्षी व्यक्ति हैं, जो दुनिया की तमाम उपलब्धियां हासिल कर लेना चाहते हैं। टाइम और स्पीड का महत्व समझने वाले बाबा रामदेव शॉर्ट-कट्स को अपनाने से भी परहेज नहीं करते। यदि ऐसा न होता तो महज कुछ ही वर्षों के दौरान वे कारोबार जगत के बड़े-से-बड़े मगरमच्छों और घड़ियालों को पछाड़कर कैसे आगे बढ़ सकते थे।

बाबा रामदेव जनता से भावनात्मक संबंध बनाकर अपनी बातों के पक्ष में उसे तैयार करना जानते हैं। पतंजलि आयुर्वेदऔर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) के बीच में जारी लड़ाई को भी वे आयुर्वेद बनाम एलोपैथी बनाने के चक्कर में थे, क्योंकि ऐसा करके वे देश भर के आयुर्वेद समर्थकों तथा राष्ट्रÑवाद के पक्ष में खड़े लोगों की सहानुभूति जुटाने में सफल हो जाते। लेकिन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुरू में ही बिल्कुल साफ शब्दों में कह दिया था कि वह इस मुद्दे को एलोपैथी बनाम आयुर्वेद नहीं बनाना चाहती, बल्कि भ्रामक चिकित्सा विज्ञापनों की समस्या का वास्तविक समाधान ढूंढना चाहती है। सुप्रीम कोर्ट बधाई और शुभकामनाओं की पात्र है कि उसने बाबा रामदेव जैसे बेहद ताकतवर व्यक्ति पर शिकंजा कसकर यह साबित कर दिया कि कानून से ऊपर सचमुच कोई नहीं है। बहरहाल, उम्मीद है कि बाबा रामदेव अपनी पूर्व की गलतियों से सबक लेंगे।


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