Monday, June 17, 2024
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भाजपा विरोधी क्यों हो गए ब्राह्मण? चतरा लोकसभा चुनाव में

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Nazariya


vishnu hari sarawatiब्राह्मणों ने सनातन यानी भाजपा-कमल फूल छाप को वोट नहीं दिया। इन्होंने कांग्रेस को वोट क्यों दिया? इसके पीछे इनका तर्क देख लीजिए। इनका तर्क यह है कि कांग्रेस ने उनकी जाति के नेता केएन त्रिपाठी को उम्मीदवार बनाया था। भाजपा ने एक भूमिहार जाति से आने वाले कालीचरण सिंह को उम्मीदवार उतारा था। हालांकि भूमिहार भी अपने आप को ब्राह्मण ही कहते हैं। मैंने भाजपा के ब्राह्मणवाद और ब्राह्मणों के सनातन विरोधी जाति वाद पर शोध किया है। कई लोकसभा चुनाव क्षेत्रों को अध्ययण किया है। यहां पर चतरा लोकसभा का उदाहरण और ब्राह्मणों की जातिवाद का उदाहरण प्रस्तुत है, जहां पर सनातन गौण हो गया, ब्राह्मणों की जाति प्रमुख हो गई। जो लोग यह मानते हैं कि ब्राह्मणों ने चतरा में कांग्रेस और अपनी जाति के उम्मीदवार केएन त्रिपाठी को वोट नहीं दिया है, उन्हें कुछ तथ्य मात्र से सच्चाई मिल जाएगी। नीलकमल शुक्ला ऐसे हैं, जो पत्रकार पर जाति के आधार पर कांग्रेस के सपोर्टर हैं, क्योंकि उनकी जाति के केएन त्रिपाठी कांग्रेस में हैं। नीलकमल शुक्ला चतरा लोकसभा क्षेत्र के पांकी विधान सभा क्षेत्र के निवासी हैं। नीलकमल का कहना है कि उनके गांव कवलकेड़िया में कांग्रेस और उनके नेता केएन त्रिपाठी को 60 प्रतिशत वोट मिला है। जानना यह भी जरूरी है कि नीलकमल शुक्ला का गांव कवलकेडिया ब्राह्मण बहुल है। नीलकमल शुक्ला आगे कहते हैं कि ब्राह्मणों का ही नहीं बल्कि मुसलमान और ईसाई का वोट केएन त्रिपाठी को मिला है, इसलिए चतरा में कांग्रेस जीतेगी, भाजपा की लुटिया डूब जाएगी। एक राष्टÑवादी हैं नमन पांडेय। उनकी पीड़ा है कि उनके ससुर ने कहने के बाद भी केएन त्रिपाठी को वोट दे दिए। नमन पांडेय सही मायने में भाजपा और सनातन के प्रचारक हैं। नमन पांडेय दुखी होकर कहते हैं कि ब्राह्मणों ने कांग्रेस को वोट देकर खुद का आत्मघात किया है। गिरी ब्राह्मणों का एक गांव है झरकटिया। झरकटिया में गिरी ब्राह्मणों की संख्या अधिक है। ब्राह्मणों का एक झुंड रात में झरकटिया पहुंचता है और केएन त्रिपाठी को वोट करने के लिए कहता है।

सैकड़ों ह्वाटसप समूहों में एक मैसेज घूम फिर रहा था कि ब्राह्मणों को अपनी शक्ति दिखाने और ब्राह्मण विरोधियो को औकात दिखाने का सही समय आ गया, हमें एक जुट होकर कांग्रेस को वोट करना है और केएन त्रिपाठी को जिताना है। मैंने ब्राह्मण बहुल कई गांवों और बूथों का दौरा किया, हर जगह पाया कि ब्राह्मणों का सीधा झुकाव और आक्रमकता कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में है। यह पहला अवसर नहीं है, जब ब्राह्मणों ने घोषित तौर पर भाजपा का विरोध किया है। चिंता की बात है कि इस प्रसंग में भाजपा के नेता भी अपनी ही पार्टी की कब्र खोदते हैं। प्रसंग रघुवर दास के शासन काल के समय का है। पांकी विधान सभा का उपचुनाव हुआ था। उसमें ब्राह्मण जाति के नेता गणेश मिश्रा को भाजपा ने चुनाव प्रभारी बनाया था। अमित तिवारी भाजपा के जिलाध्यक्ष थे।

ब्राह्मणों ने सरेआम भाजपा के खिलाफ वोट किया था। इसमें भाजपा के ब्राम्हण नेताओं का भी अप्रत्यक्ष समर्थन था। इस कारण भाजपा का प्रत्याशी चुनाव हार गया था। जांच में सामने आया कि अमित तिवारी, गणेश तिवारी और गढवा के तत्कालीन विधायक सत्येंद्र तिवारी ने अप्रत्यक्ष तौर पर पार्टी विरोधी कार्य कर भाजपा को चुनाव हराया था। गाज गिरी थी अमित तिवारी पर। अमित तिवारी को जिलाध्यक्ष के पद से हटा दिया गया था। लेकिन अमित तिवारी को लोकसभा चुनाव से पूर्व फिर से जिलाध्यक्ष बना दिया गया। यह नहीं देखा गया कि यही अमित तिवारी एक बार भाजपा की कब्र खोद
चुका है।

ब्राह्मणों की भाजपा से नराजगी है क्या? उनकी नाराजगी यह है कि भाजपा ने झारखंड की सभी सीटों पर ब्राह्मण को क्यों नहीं चुनावों में उतारा। भाजपा ने एक सीट गोडा में निशिकांत दूबे को टिकट दिया है। झारखंड में लोकसभा की 14 सीट हैं। 14 में छह आरक्षित सीट हैं। और एक सीट सहयोगी दल को भाजपा ने दिया है। सामान्य कोटे की मात्र सात सीटें भाजपा के पास थीं। इन सात सीटों में ही सभी जातियों को संतुष्ट करना था।

2024 के ही लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक टिकट ब्राह्मणों को दिया है। अगर राष्टÑीय स्तर पर आंकड़ा निकाला जाए तो फिर भाजपा ने सर्वाधिक टिकट ब्राह्मणों को दिया है। दिल्ली में सात में से दो टिकट ब्राह्मण को दिया है, जहां पर मनोज तिवारी और बांसुरी स्वराज चुनाव लड़ रहे हैं। दिल्ली नगर निगम के चुनाव में भाजपा ने 250 सीट में से 50 सीट पर ब्राह्मणों को चुनाव में उतारा था। अयोध्या में राममंदिर का पूरा संचालन ब्राह्मणों के पास है। अगर नरेंद्र मोदी ब्राह्मणों विरोधी होते तो फिर राममंदिर के संचालन में ब्राह्मणों की इतनी बड़ी और निर्णायक भूमिका होती?
फिर भी भाजपा से ब्राह्मण संतुष्ट नहीं हैं। ब्राह्मण की जनसंख्या कितनी है, यह तो नीतीश कुमार की जनगणना में निहित है। नरेंद्र मोदी ने ऊंची जातियों को दस प्रतिशत आरक्षण दिया है। इस दस प्रतिशत आरक्षण का सर्वाधिक लाभ ब्राह्मणों ने उठाया है। ब्राह्मण भाजपा को वहीं वोट देते हैं, जहां पर विकल्प ब्राह्मण नहीं होता है। ब्राह्मण की इस नीति का क्या नाम दिया जाना चाहिए? इस नीति का नाम आत्मघात और विश्वासघात हो सकता है। सर्वाधिक प्रतिनिधित्व देने के बावजूद भी आप भाजपा की कब्र खोद रहे हैं, ऐसी नीति अस्वीकार है, प्रशंसनीय कतई नहीं है। ब्राह्मणों की भलाई नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ही है। कांग्रेस भी अब ब्राह्मण विरोधी हो गई है। क्योंकि कांग्रेस पर जिहादी और कम्युनिस्ट समर्थक राजनीति का कब्जा हो गया है।


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