Saturday, July 27, 2024
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क्यों बेदखल हुए इमरान खान ?

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Samvad 17


Partap Kumar Raoपाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश उमर अता बांदियाल की अध्यक्षता में पांच सदस्यों वाली संवैधानिक पीठ ने इमरान हुकूमत के विरुद्ध पेश किए गए अविश्वास प्रस्ताव पर पाक नेशनल असेंबली के डिप्टी स्पीकर द्वारा वोटिंग को निरस्त किए जाने को असंवैधानिक फैसला करार दिया। साथ ही साथ इमरान हुकूमत द्वारा नेशनल ऐसम्बली को भंग कर दिए जाने के निर्णय को भी असंवैधानिक करार दिया गया। पाक सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल ऐसम्बली को बाकायदा पुन: बहाल करके शनिवार 9 अप्रैल को अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग कराने का हुक्म दे दिया। सुप्रीम कोर्ट में इमरान हुकूमत को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। यक्ष प्रश्न है कि क्या नई पाक हुकूमत इमरान खान के साथ क्या वैसा ही व्यवहार करेगी, जैसा इमरान खान ने विपक्षी नेताओं के साथ किया? इमरान हुकूमत द्वारा शहबाज शरीफ सहित विपक्ष के अनेक लीडरों को जेल भेजा गया। इमरान खान वस्तुत: विपक्ष के तमाम लीडरों को भ्रष्ट और गद्दार करार देते रहे।

अविश्वास प्रस्ताव पेश होते ही जिस तरह से तहरीक-ए-इंसाफ के अनेक सांसदों ने इमरान का साथ छोड़ कर विपक्ष का दामन थाम लिया, उससे तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी में इमरान खान के विरुद्ध बड़ी बगावत परवान चढ़ रही है, तो क्या तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी दो फाड़ हो जाएगी? पाक राजनीति की गहन विवेचना करने वाले प्रोफेसर इफ्तिखार अहमद का कथन है कि सत्ताच्युत होकर तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी बहुत जल्द बिखर सकती है।

वस्तुत: इमरान खान ने फौजी हुक्मरॉन जनरल हमीद गुल से राजनीति की तालीम तो बखूबी हासिल कर ली, किंतु कूटनीति के गहन गंभीर दांव-पेंच सीखने के लिए कोई उपयुक्त गुरु को तलाश नहीं कर सके। राजनीति के मोर्चे पर इमरान खान इतना अधिक नाकाम सिद्ध नहीं हुए, जितना कि कूटनीति के कुटिल मोर्चे पर नाकाम साबित हुए। विश्व पटल पर कुशल कूटनीतिक संतुलन स्थापित नहीं कर सकने का दुखद परिणाम इमरान खान को झेलना पड़ा। क्रिकेट के बहुत कामयाब कप्तान रहे इमरान खान वस्तुत: पाक सियासत के पटल पर आखिरकार क्यों असफल साबित हुए?

इमरान खान पाकिस्तान के सियासी फलक पर पाक आवाम के लिए एक शानदार उम्मीद बनकर उभरे थे। दो प्रमुख विपक्षी दलों मुस्लिम लीग और पीपुल्स पार्टी को नकार कर पाक आवाम के एक बहुत बड़े तबके द्वारा इमरान की तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी को गले लगाया गया। तकरीबन साढ़े तीन वर्ष पूर्व, 18 अगस्त 2018 को इमरान खान पाक प्रधानमंत्री पद पर विराजमान हुए।

इमरान खान के शासन काल में पाकिस्तान वस्तुत: आर्थिक तौर पर दिवालियापन के कगार पर जाकर खड़ा हो गया। पाकिस्तान को अमेरिका और अन्य पश्चिम देशों से कोई भी आर्थिक मदद नहीं हासिल हुई। महंगाई और बेरोजगारी अपने चरम शिखर पर पहुंची। चीन ने बड़े पैमाने पर पाकिस्तान में आर्थिक और सामरिक निवेश तो किया है, किंतु अभी तक उसके सार्थक परिणाम सामने नहीं आए।

सर्वविदित है कि ऐतिहासिक तौर पर पाक के प्राय: बड़े राजनेता भ्रष्टाचार की दलदल में आकंठ धंसे रहे हैं। अब तो हालत यह है कि इमरान खान की पत्नी बुशरा खान और उसकी हमसाया सहेली रही फराह खान खुद ही भ्रष्टाचार के संगीन इल्जामात में घिर चुकी हैं। इमरान खान के निकट रही चुकी फराह खान तो खौफजदा होकर मुल्क छोड़ कर अब फरार हो चुकी हैं। कुल मिलाकर संक्षेप में कहे तो इमरान खान ने पाकिस्तान को निराश ही किया है।

प्रधानमंत्री बनते ही अपने फौजी संरक्षक गुरु और आईएसआई के पूर्व चीफ जनरल हमीद गुल के दिशा निर्देशन में इमरान खान पर इस्लामिक दुनिया का सबसे बड़ा लीडर बन जाने की विकट सनक सवार हो गई। इस अजब सनक के चलते हुए इमरान खान ने सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात सरीखे ताकतवर इस्लामिक मुल्कों को बहुत अधिक नाराज कर लिया। तालिबान ताकतों के साथ अत्यंत निकटता स्थापित करने के कारण इमरान खान को तालिबान खान कहा जाने लगा। आधुनिक और प्रगतिशील रहे इमरान खान ने धर्मान्धता से परिपूर्ण सियासत का दामन अंतत: थाम लिया था।

अफगान तालिबान के साथ प्रगाढ़ निकटता के कारणवश ही अमेरिकन सरकार वस्तुत: इमरान हुकूमत से बेहद नाराज हो गई। अमेरिका की बड़ी नाराजगी के कारण ही पाकिस्तान में ताकतवर रहा अमेरिका परस्त सामंती तबका, जिसमें कि पाक फौज के बड़े हुक्मरान और अमेरिका परस्त अनेक पाक राजनीतिज्ञ शामिल रहे, इन सभी ने एकजुट होकर इमरान खान को राजसत्ता से बेदखल कर दिया।

जिस वक्त इमरान खान ने अपनी तकरीर में विदेशी साजिश का हवाला पेश करके अमेरिकन सरकार पर उनकी हुकूमत को सत्ताच्युत करने का संगीन इल्जाम आयद कर रहे थे, तकरीबन उसी वक्त पाक फौज के कमांडर इन चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा अमेरिका के साथ पाकिस्तान के ऐतिहासिक प्रगाढ़ दोस्ताना संबंध की जोरदार दुहाई दे रहे थे।

पाकिस्तान की डीप स्टेट पाक फौज और इमरान हुकूमत के मध्य उत्पन्न हुए विकट और गहन अंतर्विरोध खुलकर सारी दुनिया के सामने आ गए। फौजी हुक्मरानों के हुक्म की बाकायदा अवहेलना करके कोई राजनीतिक दल पाकिस्तान में कदापि सत्तानशीन नहीं रह सकता है। उल्लेखनीय है कि लोकतांत्रिक हुकूमतों और पाक फौज के मध्य तनातनी, कशीदगी और कशमकश में साबिक प्रधानमंत्री लियाकत अली से लेकर जुल्फिकार अली भुट्टो, नवाज शरीफ, बेनजीर भुट्टो और अब इमरान खान को अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। हालांकि इमरान खान को सत्ता से बेदखल करने के लिए पाक फौज ने इस दफा खुला हस्तक्षेप नहीं किया।

पाकिस्तानी राजसत्ता में पाक फौज ही वस्तुत: सबसे बड़ी निर्णायक शक्ति रही है और पाक फौज के हुक्मरानों की रजामंदी से ही कोई लोकतांत्रिक हुकूमत पाकिस्तान में स्थापित और संचालित हो सकती है। तकरीबन 35 वर्षों तक पाकिस्तान में तानाशाह हुकूमत अंजाम देने वाली फौज आज भी पाक राजसत्ता में अंतर्निहित सबसे बड़ी और शक्तिशाली स्तंभ बनी हुई है। पाक विदेश नीति का निर्धारण करने में पाक फौज का सबसे अहम किरदार रहा है।

भारत की स्वाधीन विदेश नीति की अनेक दफा तारीफ करके भी इमरान खान ने पाक फौज के हुक्मरानों को स्वयं से नाराज कर लिया और आखिरकार पाक फौज की नाराजगी का दुखद परिणाम भी बाकायदा भुगत लिया। संयोग से पाकिस्तान के इतिहास में कोई भी लोकतांत्रिक हुकूमत अभी तक अपना कार्यकाल संपूर्ण नहीं कर पाई। इमरान हुकूमत का भी आखिरकार वही हश्र हुआ है, जोकि इससे पहले अस्तीत्व में आई लोकतांत्रिक हुकूमतों का हुआ था। पाक इतिहास में इमरान खान अपना कार्यकाल पूरा ना कर सकने वाले 22 वें प्रधानमंत्री हो गए।


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