विवादास्पद धर्मगुरु और डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख राम रहीम को एक साल में पांचवी बार पैरोल मिल गई। डेढ़ साल की जेल की अवधि में उन्हें 182 दिन पैरोल या फरलो मिल चुकी है। उन्हें अब तक आठ बार पैरोल/फरलो मिल चुकी है। डेढ़ साल की अवधि में 182 दिन यानी लगभग आधा साल और एक साल में पांचवी बार राम रहीम को पैरोल मिलना बताता है कि कानून प्रभावशाली लोगों के लिए नही है। कानून आम आदमी के लिए है।एक बार इसकी जद में आया आम आदमी तिल -तिल कर खत्म हो जाता है किंतु कानून से उसे मुक्ति नही मिलती। अपराध मुक्त समाज का दावा करने वाली भाजपा शासित हरियाणा में राम रहीम को मिल रही ये सुविधा बताती है कि उसका दावा कितना खोखला है। राम रहीम को अपनी दो साध्वियों के साथ दुष्कर्म करने के आरोप में 28 अगस्त 2017 को 20 साल की सजा सुनाई थी। वहीं, इसके बाद दोबारा से उसका अपराध सिद्ध हुआ था, जिसके चलते उसे उम्रकैद हुई थी। पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या के जुर्म में अदालत ने गुरमीत राम रहीम को 17 जनवरी, 2019 को उम्र कैद की सजा सुनाई थी। राम रहीम तभी से हरियाणा की सुनारिया जेल में अपनी सजा काट रहा है। जेल में एक साल से अधिक का समय बिताने के बाद उसे पैरोल मिलना शुरू हो गई थी। अब तक उसे आठवीं बार पैरोल या फरलो मिली है। जेल नियमावली के अनुसार, एक दोषी एक वर्ष में दस सप्ताह की पैरोल का हकदार है। दोषी के जेल से बाहर बिताई गई अवधि को सजा में जोड़ा जाता है और कुल सजा से नहीं घटाया जाता है। एक दोषी (जिसे 10 साल से अधिक की जेल की सजा सुनाई जाती है) एक वर्ष में चार सप्ताह के फरलो का हकदार होता है और इस अवधि को जेल का समय माना जाता है। इसके साथ, एक दोषी वर्ष में अधिकतम 98 दिनों तक जेल से बाहर रह सकता है। हालांकि, ऐसी स्वतंत्रता सभी जेल कैदियों को आसानी से नहीं दी जाती है और यह अधिकारियों के विवेक और प्रशासन से मंजूरी सहित कई कारकों पर निर्भर करती है।किसी भी कैदी को पैरोल देना राज्य का सरकार अधीन आता है।
राम रहीम को कभी मां के बीमार होने पर पैरोल मिलती है, तो कभी जन्मदिन मनाने के लिए। कभी खेती की देखभाल के लिए। एक साल तक जेल में सजा काटने के बाद राम रहीम को साल 2020 में पहली बार पैरोल दी गई थी। 24 अक्टूबर 2020 को राम रहीम को एक दिन की पैरोल दी गई थी। उसकी यह पहली पैरोल बहुत सीक्रेट थी। ये पैरोल इतनी गुप्त थी कि पूरे हरियाणा में केवल चार लोगों को इसके बारे में जानकारी थी। पहली पैरोल में राम रहीम को उसकी बीमार मां से मिलने के लिए जेल से बाहर आने की अनुमति दी गई थी। 2022 में राम रहीम को तीसरी बार 21 दिनों की पैरोल दी गई। इस बार उसने पैरोल पाने के लिए यह दलील दी थी कि उसे अपनी गोद ली हुई बेटियों की शादी करनी है। तो 21 जनवरी 2023 को छटी बार पैरोल डेरा प्रमुख शाह सतनाम की जयंती में शामिल होने के लिए उसे पैरोल मिली थी। एक बार तो उन्हें अपनी खेती की देखभाल के लिए भी पैरोल दी गई ।
दिवंगत पत्रकार राम चंद्र छत्रपति के बेटे अंशुल छत्रपति ने राम रहीम को पैराल देना दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। इसके साथ ही उन्होंने इसे न्यायिक व्यवस्था और सरकारी तंत्र का खिलवाड़ करना कहा है। अंशुल ने कहा कि राम रहीम को बार बार फरलो देना सरकारी तंत्र का न्याययिक व्यवस्था से खिलवाड़ है। उनका कहना है कि सरकारी तंत्र सजा के बाद भी कानून में बदलाव करके एक दुष्कर्मी व कातिल को वीआईपी ट्रीटमेंट दे रही है। उसे बार -बार फरलो देकर बाहर की हवा खिलाने का काम शर्मनाक है।अंशुल ने कहा कि हर बार यही कहा जाता है कि फरलो या पैरोल कानून के तहत दी जा रही है। देश में ऐसे बहुत से मामले हैं, जहां लोग सालों से सलाखों के पीछे बंद हैं। उन्हें ये सुविधा नहीं दी जाती है। वहीं अंशुल ने कहना है कि जिस तरह से पहले भी गुरमीत राम रहीम अपने धन बल व अपने प्रभाव का उपयोग कर व्यवस्था को अपने अनुसार चलाया था, वह जेल जाने के बाद भी नहीं बदला है।राम रहीम की पैरोल की कांग्रेस विधायक शमशेर गोगी ने आलोचना की। कहा कि आरएसएस के लोग बिना फायदे के कुछ नहीं करते। इतनी हमदर्दी है तो छोड़ क्यों नहीं देते।
दिवंगत पत्रकार राम चन्द्र छत्रपति के बेटे अंशुल छत्रपति का कथन ज्यादा तर्कपूर्ण है। प्रश्न यह भी है कि ये रहमोकरम राम रहीम पर ही क्यों? और भी धर्मगुरु जेलों में बदं हैं। उन्हें ये सुविधा क्यों नहीं। देश की जेलों में तो करोड़ों कैदी होंगे। यदि जेल मैनूअल है, तो ये सुविधा अन्य कैदियों को क्यों नही मिलती। उन्हें भी मिलनी चाहिए। क्या ये जनहित का विषय नहीं। छोटे-छोटे मामलों में स्वत: संज्ञान लेने वाले सर्वोच्च न्यायालय को इस मामले में स्वत:संज्ञान नही लेना चाहिए।उसे स्वत:संज्ञान लेकर कैदियों को मिलने वाली पैरोल/फरलो सभी कैदी को दिलाने की व्यवस्था करनी चाहिए। धर्मगुरु तो आशाराम बापू भी है। उन्हें पैराल क्यों नहीं मिल रही। अपराध तो दोनों के एक जैसे ही हैं। दोनों यौन शोषणकारी, दुष्कर्मी और हत्या के अपराधी हैं। पैरोल पर आना एक संवैधानिक अधिकार होते हुए भी अपनी और प्रशासन की इच्छा पर भी निर्भर करता है। हरियाणा सरकार की इस मेहरबानी ने पीछे राजनैतिक कारण ज्यादा बताया जा रहा है। आरोप लगाते रहे हैं कि राम रहीम के लाखों फोलाअर हैं। राजनैतिक हित साधने के लिए चुनाव से पूर्व राम रहीम को पैरोल दी जाती है। इस समय राजस्थान में चुनाव चल रहे हैं। राम रहीम के राजस्थान में लाखों फालोवर बताए जाते हैं। राम रहीम पहले ही राजनैतिक दलों का समर्थन करते रहे हैं। इसीलिए शायद राजस्थान के चुनाव के मौके पर उन्हें जेल से बाहर लाया गया है।
एक बात और बताई जा रही है कि रामरहीम को पैरोल की अवधि में सिख आतंकवादियों का खतरा बताकर शासन की ओर से उन्हें जैड कैटेगरी की सुरक्षा दी जाती है। वह सुरक्षा जो देश में वीवीआईपी को मिलती है। जेड कैटेगरी की सुरक्षा का एक दिन का खर्च ही लाखों रुपया बताया जाता है। एक दुष्कर्मी को जेड केटेगरी की सुरक्षा देना बिल्कुल उचित नहीं। यदि इन्हें खतरा है तो जेल से बाहर ही क्यों लाया जाता है। प्रदेश सरकार प्रदेश के राजस्व का बड़ा हिस्सा इनकी सुरक्षा पर क्यों खर्च कर रही है। राम रहीम पर खर्च होने वाला सरकारी राजस्व तो राज्य के विकास पर व्यय होना चाहिए। यदि राम रहीम को रिहा करना बहुत ही जरूरी है तो होना यह चाहिए कि उनके पैरोल के समय में उनकी सुरक्षा पर हुआ व्यय खुद राम रहीम से वसूला जाए। राम रहीम और उनका आश्रम तो इस व्यय का वहन करने में सक्षम हैं। राम रहीम के पैरोल के समय जेड कैटेगरी की सुरक्षा के व्यय पर तो हरियाणा उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय को स्वत: संज्ञान लेना चाहिए। एक बात और यदि प्रभावशाली हत्यारे और दुष्कर्मी को इस तरह की सुविधा और पैरोल मिलेगी तो इस प्रकार के अपराध बढ़ेंगे, कम नही होंगे।