Sunday, January 19, 2025
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फर्जी शिक्षण संस्थानों पर कार्यवाही क्यों नहीं?

Nazariya 22


DR RAJENDRA PRASADविश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने एक बार फिर पिछले सप्ताह देश में 21 फर्जी विश्वविद्यालयों की सूची जारी कर अपने दायित्व की इतिश्री कर ली है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का लगभग यह सालाना कार्यक्रम हो गया है। सवाल यह उठता है कि विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने वाली संस्थाओं पर तत्काल कार्यवाही का ऐसा तंत्र क्यों नहीं विकसित होता जो इस तरह की संस्थाओं को पनपने ही ना दे। होता यह है कि जब तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग फर्जी संस्थानों की सूची जारी करता है, तब तक हजारोें छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो चुका होता है। एक मोटे अनुमान के अनुसार ही पिछले एक दशक में 90 हजार से अधिक विद्यार्थियों का भविष्य इन फर्जी विश्वविद्यालयों और संस्थाआेंं की भेंट चढ़ चुका है। कई बार तो ऐसा भी होता है कि डिग्री लेने के कई सालों बाद पता चलता है कि जिस संस्थान की डिग्री है वह फर्जी या अमान्य है। आखिर इसके लिए जिम्मेदारी क्यों नहीं तय होती?अकेले विद्यार्थी या उसके अभिभावकों को ही इस त्रासदी से क्यों दो चार होना पड़ता है? यह अपने आप में गंभीर विंतन का विषय हो जाता है।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा जारी हालिया सूची को देखें तो मजे की बात यह है कि इस सूची में सर्वाधिक फर्जी विश्वविद्यालय कहीं के हैं तो वे देश की राजधानी दिल्ली के हैं। जारी सूची के अनुसार दिल्ली के 8 विश्वविद्यालय इस सूची में हैं। उसके बाद उत्तर प्रदेश का नंबर आता है जहां चार विश्वविद्यालय तो प. बंगाल व ओडीसा के दो-दो और कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, पुडुचेरी और आंध्र प्रदेश के एक-एक विश्वविद्यालय इस सूची में शामिल है।

इन फर्जी विश्वविद्यालयों में ओपन यूनिवर्सिटी से लेकर, होम्योपैथी, नेचुरल पैथी, साइंस एवं इंजीनियरिंग व वोकेशनल सहित विभिन्न पाठ्यक्रमों को संचालित करने वाली यूनिवर्सिटी इस सूची में शामिल है। सवाल सीधा सा यह उठता है कि जब लगभग हर साल विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा फर्जी संस्थानों की सूची जारी होती है तो फिर कुकुरमुत्ते की तरह किस के इशारे पर यह फर्जी संस्थान उग जाते हैं। सवाल यह भी है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का निगरानी तंत्र इतना कमजोर क्यों है? क्यों नहीं समय रहते पता लग जाता है कि इस तरह के संस्थान कार्य कर रहे हैं?

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा जारी हालिया सूची का ही विश्लेषण किया जाए तो इस सूची में 8 विश्वविद्यालय देश की राजधानी दिल्ली के हैं। अब सवाल यह भी उठता है कि इन विश्वविद्यालयों का कोई न कोई प्रचार तंत्र अवश्य होता है जिसके कारण विद्यार्थियों की इन तक पहुंच हो पाती है और वे इन संस्थानों में प्रवेश लेते हैं। निश्चित रुप से समाचार पत्रों व अन्य प्रचार माध्यमों से इनमेंं प्रवेश के लिए अभियान चलाया जाता होगा, ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि देश की राजधानी के फर्जी विश्वविद्यालयों तक विद्यार्थी प्रवेश के लिए पहुंच जाते हैं तो फिर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग या उसके निगरानी तंत्र तक इन संस्थानों की जानकारी क्योंं नहीं पहुंच पाती? सवाल यह भी है कि इन संस्थानों द्वारा निश्चित रुप से देश के प्रमुख समाचार पत्रों में प्रवेश संबंधी सूचना प्रकाशित की जाती होगी।

यदि ऐसा नहीं हो तो आम नागरिकों या विद्यार्थियों को पता ही कैसे लगता होगा? किसी को कोई सपना तो आता नहीं कि अमुक स्थान पर अमुक विश्वविद्यालय में अमुक पाठ्यक्रम के लिए प्रवेश हो रहे हैं। कहने का अर्थ यह है कि इनका प्रचार तंत्र निश्चित रुप से प्रभावी होता है। दूसरी और सवाल यह उठता है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग हर साल फर्जी संस्थानों की सूची जारी कर लोगों को आगाह करता है। इससे यह तो तय है कि कोई ना कोई ऐसा तंत्र है, जो यह सब देखता है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आयोग को इन संस्थानों की जानकारी पहले ही क्यों नहीं मिल पाती। इतनी देरी से जानकारी क्यों मिलती है। इससे सीधा-सीधा अर्थ यह निकलता है कि आयोग का निगरानी तंत्र समय पर कार्यवाही नहीं करता या यों कहें कि निगरानी तंत्र जानकारियां प्राप्त करने में कहीं न कहीं पिछड़ रहा है। यदि एक सामान्य सोच की ही बात करें तो केवल और केवल देश के प्रमुख समाचार पत्रों के विज्ञापन पन्नों पर ही नजर रख ली जाए तो समय पर कार्यवाही आसानी से की जा सकती है। प्रमुख समाचार पत्रों व मीडिया के साधनों पर नजर भी केवल और केवल सत्र आरंभ होने के दरमियान ही रखनी होगी। फिर कार्यवाही में इतनी देरी क्यों? यह विचारणीय है।

जब विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पास निगरानी तंत्र है। आयोग से अनुमोदित या यों कहें कि एप्रूव्ड संस्थानों की सूची भी है तो फिर केवल विज्ञापनों पर ही ध्यान केंद्रित कर लिया जाए तो तत्काल पता चल सकता है कि विज्ञापित संस्थान एप्रूव्ड है या फर्जी। इस तरह के काम को सूचना तकनीक के माध्यम से और भी आसानी से किया जा सकता है। इस तरह का सॉफ्टवेयर बनाया जा सकता है बल्कि आयोग के पास निश्चित रुप से पहले से होगा जिसमें एप्रूव्ड संस्थानां की सूची होगी तो उस सॉफ्टवेयर के माध्यम से विज्ञापित संस्थान का नाम अपलोड कर तत्काल मालूम किया जा सकता है कि अमुक संस्थां सही है या फर्जी? इस कार्य के लिए एक पृथक से सेल गठित कर भी दिया जाए तो इसमें कोई बुराई नहीं होगी और हजारों विद्यार्थियों के भविष्य से होने वाले खिलवाड़ को भी रोका जा सकता है। विद्यार्थियों की मेहनत, भविष्य और अभिभावकों की मेहनत की कमाई को बचाया जा सकेगा। इसके साथ ही फर्जी संस्थानों पर समय रहते रोक लग सकेगी वो अलग। नहीं तो हर साल फर्जी संस्थानों की सूची भी जारी होती रहेगी और युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ भी इसी तरह होता रहेगा।


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