Saturday, July 27, 2024
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पूजा-पाठ में क्यों बांधते हैं रक्षा सूत्र

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मौली किसी देवी या देवता के नाम पर भी बांधी जाती है जिससे संकटों और विपत्तियों से व्यक्ति की रक्षा होती है। यह मंदिरों में मन्नत के लिए भी बांधी जाती है। इसमें संकल्प निहित होता है। मौली बांधकर किए गए संकल्प का उल्लंघन करना अनुचित और संकट में डालने वाला सिद्ध हो सकता है। यदि आपने किसी देवी या देवता के नाम की यह मौली बांधी है तो उसकी पवित्रता का ध्यान रखना भी जरूरी हो जाता है। शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई में होता है। अत: हाथ की कलाई में मौली बांधने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है। उसकी ऊर्जा का ज्यादा क्षय नहीं होता है। शरीर विज्ञान के अनुसार शरीर के कई प्रमुख अंगों तक पहुंचने वाली नसें कलाई से होकर गुजरती हैं। कलाई पर मौली बांधने से इन नसों की क्रिया नियंत्रित रहती है।

जब भी हम किसी पूजा-पाठ या धार्मिक अनुष्ठान में शामिल होते हैं तो पंडित जी कलाई पर रक्षा सूत्र या मौली बांधते हैं। आखिर ये रक्षा सूत्र क्यों बांधते हैं और इसका पौराणिक महत्व क्या है? दरअसल, रक्षा सूत्र या मौली बांधना वैदिक परंपरा का हिस्सा है। यज्ञ के दौरान मौली बांधने का चलन पहले से ही रहा है जिसे संकल्प सूत्र कहा जाता था। ‘मौली’ का शाब्दिक अर्थ है ‘सबसे ऊपर’। मौली का तात्पर्य सिर से भी है। मौली को कलाई में बांधने के कारण इसे कलावा भी कहते हैं। इसका वैदिक नाम उपमंणिबंध भी है। शंकर भगवान के सिर पर चंद्रमा विराजमान हैं, इसीलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है।

भगवान विष्णु ने वामन अवतार में असुरों के राजा बलि की अमरता के लिए उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था। तब से इस संकल्प सूत्र को रक्षा सूत्र के तौर पर बांधा जाने लगा। अपने पति की रक्षा के लिए माता लक्ष्मी ने भी राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा था, तब से इसे रक्षा बंधन का भी प्रतीक माना जाने लगा।

मौली तीन कच्चे धागे से बनी होती है। इसमें मूलत: तीन रंग के धागे होते हैं- लाल, पीला और हरा लेकिन कभी-कभी ये पांच धागों की भी बनती है जिसमें नीला और सफेद भी होता है। तीन और पांच का मतलब कभी त्रिदेव के नाम की तो कभी पंचदेव के नाम की। मौली को कलाई, गले और कमर में बांधा जाता है। मन्नत के लिए किसी देवी-देवता के स्थान पर भी बांधा जाता है। मन्नत पूरी हो जाने पर इसे खोल दिया जाता है। मौली घर में लाई गई नई वस्तु को भी बांधी जाती है, इसे पशुओं को भी बांधा जाता है।

इसे खासतौर पर पुरूष और कन्या के दायीं कलाई और शादीशुदा महिलाओं के बायीं कलाई पर बांधा जाता है। कलाई पर तीन रेखाएं होती हैं जिसे मणिबंध कहते हैं। ये तीनों रेखाएं ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक हैं। इन रेखाओं में ही तीन देवियों शक्ति, सरस्वती और लक्ष्मी का वास माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब अभिमंत्रित करके रक्षा सूत्र बांधते हैं तो वह त्रिदेव और त्रिदेवियों को अर्पित हो जाता है जिसके पश्चात त्रिदेव और त्रिदेवियां हमारी रक्षा करती हैं। मौली कहीं पर भी बांधें, एक बात का हमेशा ध्यान रखा जाता है कि इस सूत्र को केवल तीन बार ही लपेटा जाता है।
कलाई, पैर, कमर और गले में मौली बांधने के चिकित्सीय लाभ भी हैं। शरीर विज्ञान के अनुसार इससे त्रिदोष यानी वात, पित्त और कफ का संतुलन बना रहता है। ब्लड प्रेशर, हार्टअटैक, मधुमेह और लकवा जैसे रोगों से बचाव के लिए मौली बांधना हितकर बताया गया है।

पर्व-त्योहार के अलावा किसी अन्य दिन मौली बांधने के लिए मंगलवार और शनिवार का दिन शुभ माना जाता है। हर मंगलवार और शनिवार को पुरानी मौली को उतारकर नई मौली बांधना उचित माना गया है। उतारी हुई पुरानी मौली को पीपल के वृक्ष के पास रख दें या किसी बहते हुए जल में बहा दें। प्रतिवर्ष की संक्रांति के दिन, यज्ञ की शुरुआत में, कोई इच्छित कार्य के प्रारंभ में, मांगलिक कार्य, विवाह आदि हिंदू संस्कारों के दौरान मौली बांधी जाती है।

मौली किसी देवी या देवता के नाम पर भी बांधी जाती है जिससे संकटों और विपत्तियों से व्यक्ति की रक्षा होती है। यह मंदिरों में मन्नत के लिए भी बांधी जाती है। इसमें संकल्प निहित होता है। मौली बांधकर किए गए संकल्प का उल्लंघन करना अनुचित और संकट में डालने वाला सिद्ध हो सकता है। यदि आपने किसी देवी या देवता के नाम की यह मौली बांधी है तो उसकी पवित्रता का ध्यान रखना भी जरूरी हो जाता है। शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई में होता है। अत: हाथ की कलाई में मौली बांधने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है। उसकी ऊर्जा का ज्यादा क्षय नहीं होता है। शरीर विज्ञान के अनुसार शरीर के कई प्रमुख अंगों तक पहुंचने वाली नसें कलाई से होकर गुजरती हैं। कलाई पर मौली बांधने से इन नसों की क्रि या नियंत्रित रहती है।

मनोवैज्ञानिक लाभ की बात करें तो मौली बांधने से उसके पवित्र और शक्तिशाली बंधन होने का अहसास होता रहता है और इससे मन में शांति और पवित्रता बनी रहती है। व्यक्ति के मन और मस्तिष्क में बुरे विचार नहीं आते और वह गलत रास्तों पर नहीं भटकता है। कई मौकों पर इससे व्यक्ति गलत कार्य करने से बच जाता है।


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