Saturday, July 27, 2024
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क्या इमरान मसूद को संगठन में इस्तेमाल करेगी बसपा?

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  • वर्तमान बसपा सांसद को दरकिनार करना आसान नहीं होगा
  • अगड़े-पिछड़े मुस्लिमों की लड़ाई के भी बन रहे आसार

अवनीन्द्र कमल |

सहारनपुर: साइकिल से उतर कर पिछले दिनों हाथी पर सवार होने वाले कद्दावर मुस्लिम नेता इमरान मसूद मुस्तकबिल में क्या गुल खिलाएंगे, यह तो अभी से नहीं कहा जा सकता। हां, इतना जरूर है कि उनके बसपा में आने से सहारनपुर में दलित-मुस्लिम गठजोड़ के मजबूत होने की उम्मीद जरूर जगी है। दिलचस्प यह भी है कि इमरान के बसपा में आने से वर्तमान बसपा सांसद हाजी फजर्लुहमान का क्या होगा? पिछले लोकसभा चुनाव में दोनों धुर विरोधी थे।

ऐसे में सवाल ये भी है किअब एक म्यान में दो तलवारें कैसे रहेंगी? क्या बसपा हाजी फजलुर्हमान का टिकट काटकर इमरान पर दांव लगाएगी ? या फिर इमरान को संगठन का ही काम दिया जाएगा..सियासी पंडितोंका मानना है कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने इमरान मसूद को झटपट वेस्ट यूपी का संयोजक और उत्तराखंड का भी दायित्व देकर यह संकेत भी दे दिया है कि इमरान संगठन का काम देखेंगे। हालांकि, यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता। इतना जरूर है कि बसपा का सांगठनिक ढांचा चरमराया हुआ है। इमरान में वह कूवत है कि इसे दुरुस्त कर सकते हैं।

इसमें दो राय नहीं कि इमरान कद्दावर मुस्लिम नेता हैं। वह एक बार नगर पालिका चेयरमैन और एक बार एमएलए रह चुके हैं। लेकिन, यह भी सही है कि इमरान मसूद लगातार चार चुनाव हार चुके हैं। इनमें दो विधानसभा का और दो ही चुनाव लोकसभा का, जिसमें इमरान की टोपी में पंख नहीं लग सके। अब बात करें दल बदलने की तो इमरान ने सपा, कांग्रेस फिर सपा और अब बसपा का दामन थाम लिया है। सपा छोड़ने के पीछे इमरान की इस पार्टी में घोर उपेक्षा रही है। इसका मलाल उन्होंने अपनों के बीच कई बार जाहिर भी किया।

खैर, बसपाई मौके की ताक में थे और उन्होंने मायावती से इस बाबत गुफ्तगू की। चूंकि बसपा शून्य पर पहुंच चुकी है और पिछले विधान सभा चुनाव में पार्टी चौपट होकर केवल एक सीट पर सिमट गई। पश्चिमी यूपी में दलित-मुस्लिम समीकरण साधने की गरज से बसपा हाईकमान ने इमरान को पार्टी में लेना मुफीद समझा और पिछले दिनों मायावती के समक्ष इमरान मसूद ने नीले फूलों वाला गुलदस्ता देकर मायावती का आशीर्वाद लिया। उनके बसपा में शामिल होते ही सोशल मीडिया में धूम मच गई। समर्थकों और विरोधियों की तमाम प्रतिक्रियाएं आईं।

राजनीति के पंडितों का कहना है कि इमरान मसूद को दलित प्लस मुस्लिम का गठजोड़ नजर आ रहा है और बसपा के दिग्गजों को भी। दरअसल, पिछले लोकसभा चुनाव में वर्तमान बसपा सांसद हाजी फजलुर्रहमान इसी गठजोड़ के बूते दिल्ली की डगर आसान कर ले गए थे। फिलवक्त, जो सबसे मौजूं सवाल है वह यह कि इमरान मसूद को क्या बसपा सहारनपुर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ाएगी?

अगर हां तो फिर वर्तमान में इसी पार्टी से सांसद हाजी फजलुर्हमान का क्या होगा? अगर हाजी का टिकट कटता है तो वह कहीं और का रुख न कर लें। यही नहीं, अगड़े और पिछड़े मुस्लिमों की भी जंग शुरू हो सकती है। इमरान के धुर विरोधी और सपा के देहात विधायक आशू मलिक तेली बिरादरी से आते हैं। इस बिरादरी का सहारनपुर में पर्याप्त संख्या में वोट है। सपा हो न हो आशू मलिक को लोकस भा चुनाव में मैदान में उतार दे।

वैसे जिस तरह मायावती ने इमरान के बसपा में शामिल होते ही उन्हें वेस्ट यूपी का संयोजक और उत्तराखंड का भी दायित्व दिया है, उससे लगता है कि इमरान को चुनाव न लड़ाकर मायावती संगठन में ही इस्तेमाल करेंगी। बसपा में भाजपा की ही तरह संगठन का पदाधिकारी ज्यादा ताकतवर होता है। बहरहाल, यह तो कयास भर है। समय बताएगा कि इमरान को बसपा किस तरह आजमाएगी। नगर निकाय चुनाव इसकी पहली परीक्षा हो सकती है जो कि नवंबर अथवा दिसंबर महीने में ही संभावित है।

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