वामपंथी वर्कर्स पार्टी के नेता लूला डी सिल्वा ब्राजील के अगले राष्ट्रपति होंगे। वे तीसरी बार ब्राजील की सत्ता संभाल रहे हैं। पिछले सप्ताह हुए राष्ट्रपति पद के चुनाव में डी सिल्वा ने बेहद कड़े मुकाबले में मौजूदा राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो को हराकर सत्ता में वापसी की है। चुनाव में 98.8 फीसदी वोट पड़े जिसमें से लूला को 50.8 फीसदी जबकि बोल्सोनारों को 49.2 फीसदी वोट मिले। लूला की जीत के साथ ही ब्राजील में छह साल बाद वामपंथ की वापसी हो गई है। चुनाव में मुख्य मुकाबला धुर दक्षिणपंथी नेता मौजूदा राष्ट्रपति जेयर बोलसोनारो और भूतपूर्व वामपंथी लुइज इनासियों लूला डी सिल्वा के बीच था। चुनाव ऐसे समय में हुआ, जब ब्राजील की अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी और रूस-यूके्रन युद्ध के प्रभाव से जूझ रही थी। लूला ने अर्थव्यवस्था को अपने प्रचार अभियान के केंद्र में रखा था।
उन्होंने नागरिकों से देश में खुशहाली व समृद्धि लाना का वादा किया तथा गरीबों के लिए भोजन और आवास उपलब्ध करवाने की बात कही। इससे पहले लूला साल 2003 से 2010 के दौरान ब्राजील के राष्ट्रपति रह चुके हैं। उस दौरान ब्राजील में गरीबी और सामाजिक असमानता में भारी गिरावट आई थी। उन्होंने लाखों लोगों को गरीबी की सीमा रेखा से बाहर निकाला और कई जन कल्याणकारी योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू किया था।
लूला की इस उपलब्धि के लिए भारत सरकार ने उन्हें साल 2012 में इंदिरा गांधी शांति सम्मान से सम्मानित किया था। एक करिश्माई नेता के तौर लूला के पहले दोनों कार्यकाल को आज भी ब्राजील के लोग याद करते हंै। लूला ने भी चुनाव अभियान में अपने पिछले कार्यकाल की उपलब्धियों को जमकर भुनाया। लूला की बातों पर लोगों ने विश्वास किया और तीसरी बार फिर ब्राजील की सत्ता सौंप दी।
अहम बात यह है कि इस बार लुला ने अपने प्रचार अभियान में वामपंथ के साथ-साथ मध्यमार्गी एजेंडे का भी सहारा लिया। उन्होंने दक्षिणपंथी और मध्यमार्गी दलों के साथ गठबंधन किया। पूर्व गवर्नर जेराल्डो एल्कमिन को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाना और आर्थिक मुद्दों पर खुलकर बोलने से बचते रहना उनके दक्षिणपंथी एजेंडे का ही उदाहरण है।
कुल मिलाकर कहा जाए तो ब्राजील का यह चनाव 1985 के बाद से पहला ऐसा चुनाव था, जब वोटों के धुव्रीकरण का सबसे ज्यादा प्रयास किया गया है । हालांकि, बोल्सोनारो से नाराज देश के एक बड़े तबके के समर्थन से लूला ब्राजील की सत्ता के शिखर तक पहुंचने में तो जरूर कामयाब हो गए हैं, लेकिन इस बार उनके लिए सब कुछ उतना आसान नहीं है, जितना पहले था। प्रथम तो बोल्सोनारो की लिबरल पार्टी और उसके सहयोगी दलों के संसद में सबसे ज्यादा सदस्य हैं।
ऐसे में लूला सरकार को अपनी जन कल्याणकारी नीतियों को लागू करने में विपक्ष के कड़े विरोध का सामना करना पड़ सकता है। द्वितीय, मंत्रियों के चयन और नीतियों के मामले में गठबंधन में शामिल अन्य दलों से तालमेल बनाने की चुनौती लूला के सामन होगी। तृतीय, बोल्सोनारो के शासन काल में विभाजित हो चुकी ब्राजीलियाई जनता को पुन: एक सूत्र में बांधने की बड़ी चुनौती भी उनके सामने होगी। पर्यावरण संतुलन की चुनौती से निबटने के लिए लूला को कड़ी मशक्कत करनी होगी।
अमेजन जंगल का 60 प्रतिशत हिस्सा ब्राजील में है। ये दुनिया की जलवायु का संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। साथ ही ग्लोबल वार्मिंग से लड़ने में भी मदद करते हैं। लेकिन जंगल में आग, अवैध उत्खनन और पेड़ों की कटाई के चलते ब्राजील 90 साल के सबसे भीषण सूखे का सामना करना पड़ रहा है। लूला हमेशा से ही पर्यावरण संरक्षण के पक्ष में रहे हैं।
ऐसे में राष्ट्रपति बनने के बाद ब्राजील को पेड़ों की अंधाधुंध कटाई जैसी समस्याओं से बाहर निकालने की चुनौती भी लूला के सामने है। अपने प्रचार अभियान के दौरान उन्होंने अमेजॉन जंगलों के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग लेने की बात कह कर यह संकेत दे दिया है कि वे इस मसले को लेकर काफी गंभीर हैं। भारत और ब्राजील के बीच हमेशा ही अच्छे संबंध रहे हैं। भारत ने अपनी स्वतंत्रता के बाद से ही ब्राजील के साथ द्विपक्षीय संबंधों को दो स्वतंत्र देशों और संबंधित क्षेत्रीय परिदृश्यों में बड़े खिलाड़ियों के रूप में विकसित किया है।
लूला के कार्यकाल के दौरान भी दोनों देशों ने द्विपक्षीय संबंधों में नए आयाम स्थापित किए हैं। लूला ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता का हमेशा पुरजोर तरीके से समर्थन किया है। भारत और ब्राजील पिछले लंबे समय से यूएनएससी में स्थायी सीट की सदस्यता का दावा कर रहे हैं। दोनों देशों का मानना है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में विकासशील देशों की भी भागीदारी होनी चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव में जीत दर्ज करने पर सिल्वा को बधाई दी। मोदी ने कहा कि वह द्धिपक्षीय संबंधों को और प्रगाढ एवं व्यापक बनाने के लिए उनके साथ मिलकर काम करने के लिए उत्सुक हैं। ब्राजील लातिन अमेरिका की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसकी गिनती दुनिया की 10 बड़ी अर्थवयवस्था में होती है। पिछले एक दशक में ब्राजील की अर्थव्यवस्था काफी धीमी हो गई है।
देश में महंगाई और बेरोजागरी तेजी से बढ़ी है। ऐसे में लूला ने खनन बढ़ाने, सार्वजनिक कंपनियों का निजीकरण करने और ऊर्जा की कीमतों को कम करने के लिए अधिक टिकाऊ ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए अभियान चलाने की बात कही है। एक दशक बाद राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने शानदार वापसी की है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि ब्राजील में समृद्धि और खुशहाली के वे दिन लौट आएंगे जिनके लिए कभी ब्राजील जाना जाता था।