Friday, March 29, 2024
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दूसरे से तुलना छोड़ स्वयं लिखें अपनी तकदीर

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NAZARIYA


SONAM LOVEVANSHIबीते दिनों भारत की झोली में एक वैश्विक स्तर की सफलता आई। 21वीं सदी में 21वर्ष की हरनाज ने 21साल का सूखा खत्म करके यह सफलता मिस यूनिवर्स के रूप में प्राप्त की। जैसा कि नाम से स्पष्ट हो रहा है उसे वास्तविक धरातल पर लाते हुए हरनाज ने सभी को नाज करने का अवसर उपलब्ध कराया। हरनाज ने भारत को तीसरी बार मिस यूनिवर्स का खिताब दिलाया। यह खिताब कहीं न कहीं ना सिर्फ उनकी सुंदरता की वजह से मिला, बल्कि उनके नेक और सुंदर विचारों को लेकर मिला। हरनाज से सवाल पूछा गया था कि वर्तमान दौर में युवा महिलाएं जो दबाव महसूस कर रही है उनको क्या सलाह देंगी जिससे वो दबाव का सामना कर सकें? इस सवाल का हरनाज ने बहुत ही खूबसूरती से जवाब दिया कि महिलाएं अपने आप की दूसरों से तुलना करना बंद करें और पूरी दुनिया में जो भी घटित हो रहा उस पर बात करें, बाहर निकले खुद के लिए आवाज उठाएं। हरनाज का मानना है कि, मैं खुद में विश्वास करती हूं और इसीलिए आज यहां खड़ी हूं। ऐसे में हरनाज ने न केवल महिलाओं की स्थिति को बयां किया है बल्कि औरतों को खुद पर विश्वास करने की भी प्रेरणा दी है। वैसे आज यह न केवल भारत के लिए बल्कि दुनिया भर की करोड़ो महिलाओं के लिए यह गर्व की बात है। आज ऐसी कितनी महिलाएं हैं, जो अपनी आवाज उठा पाती हैं। अपने सपनों को पूरा कर पाती हैं।

दुनिया भर में महिलाएं आधी आबादी का प्रतिनिधित्व कर रही हैं, पर क्या उसे अपने हिस्से की आजादी मिल रही? बेशक इसका जवाब ना में ही होगा। बात अगर महिलाओं के संदर्भ में ही करें तो आज भी महिलाओं को अपनी बात रखने का अपने सपनों को पूरा करने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़नी होती है। जिसकी शुरुआत उसके अपने ही घर से ही होती है।

वहीं वर्तमान दौर में अभिव्यक्ति की आजादी की बात तो सभी करते हैं, पर बात जब महिलाओं के हक की हो तो हमारा पुरुष प्रधान समाज चुप्पी साध लेता है। अमेरिका में रहने वाली महिला हो या भारत के किसी ग्रामीण क्षेत्र की महिला हो, अमूमन दोनों की स्थिति लगभग एक जैसी है। हमारे देश में ही देख लें, हर कोई महिला की अभिव्यक्ति की आजादी की बात करता है, बस शर्त यही है कि वह महिला अपने घर की न हो। कहने को तो आज महिलाएं अंतरिक्ष तक अपनी बुलन्दी के झंडे गाड़ चुकी हैं, लेकिन ऐसी करोड़ों महिलाएं हैं, जिनकी आवाज को दबा दिया जाता है।

वर्तमान दौर में दुनिया ग्लोबलाइजेशन की ओर बढ़ रही है। आज भले ही हम मीलों का फासला चंद पलों में तय कर रहे हैं, लेकिन दिलों में एक गहरी खाई पनप सी गई है। आज भी पितृसत्तात्मक समाज महिलाओं की आजादी उनकी अभिव्यक्ति को स्वीकार नहीं कर पाता है। वजह साफ है क्योंकि यदि महिलाएं अपने हक मांगने लगी तो हमारे पितृसत्तात्मक समाज को अपनी सत्ता अपना सिंहासन डोलते हुए नजर आने लगता है। आज महिलाएं आजाद होकर भी आजाद नहीं हैं। सामाजिक बेड़ियों में महिलाओ को बांधने की हमारी परंपरा पुरानी रही है।

वहीं महिलाओं को देवी मानकर पूजने का ढोंग किया गया, जिसकी कीमत महिलओं को अपने त्याग बलिदान से चुकानी होती है। कोरोना काल की ही बात करें तो संपूर्ण विश्व इस वैश्विक महामारी में संघर्षरत रहा। दुनिया वैश्विक मंदी के गर्त में चली गई। लाखों लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा पर दुर्भाग्य देखिए कि इसमें भी महिलाओं का प्रतिशत सर्वाधिक रहा। भारत के ही संदर्भ में बात करें तो वैश्विकरण के दौर में दुनिया इंटरनेट के माध्य्म से आगे बढ़ रही है। तो हमारा देश इस परिपेक्ष्य में आज भी पिछड़ा हुआ है एक तरफ देश फाइव जी की दिशा में आगे बढ़ रहा है तो वही लड़कियों को आॅनलाइन प्लेटफॉर्म पर आने की आजादी तक नहीं है।

यहां एक सर्वे की बात करें तो भारत में 42 फीसदी लड़कियों को दिन में मात्र एक घंटे से भी कम समय मोबाइल फोन इस्तेमाल की इजाजत दी जाती है। अब सोचिए आधुनिक युग में भी महिलाएं सोशल प्लेटफॉर्म का उपयोग तक नहीं कर सकतीं? फिर वे कैसे अपनी अभिव्यक्ति की आजादी की पैरवी करेंगी? वैसे सवाल कई हैं, लेकिन उनके जवाब देने वाला कोई नहीं। फिर ऐसे में समझ इतना ही आता है कि हरनाज ने न सिर्फ हमें और हमारे समाज को नाज करने का एक मौका उपलब्ध कराया है, बल्कि उन महिलाओं या आधी आबादी को भी एक संदेश दिया है, ताकि वह उठकर अपने हक के लिए लड़ सकें। वैसे राजनीति से जुड़ें सियासतदां भी कई बार महिलाओं को सशक्त करने की बात करते हैं।

आगामी दौर में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव को ही ले लीजिए। इसमें एक राजनीतिक दल ने अपना स्लोगन ही दिया है, ‘लड़की हूं, मैं लड़ सकती हूं’, लेकिन यह एक चुनावी स्लोगन है। इस पर विश्वास कितना करना यह आधी आबादी को स्वयं सोचना चाहिए। वहीं हरनाज ने जिन बातों का जिक्र किया। उसे अगर वास्तविक रूप से आधी आबादी अपने जीवन का हिस्सा बना लें, तो नि:सन्देह महिलाओं की दिशा और दशा भारतीय समाज में नेतृत्वकर्ता की नहीं तो पूरक की बन ही सकती है। वैसे भी किसी भी समाज की उन्नति स्त्री-पुरुष दोनों की सहभागिता से ही सुनिश्चित हो सकती है। ऐसे में एक लंबे समय तक स्त्रियों की अपेक्षा नहीं की जा सकती।

वहीं एक बात यह भी की हरनाज को ब्रम्हांड सुंदरी से नवाजा गया है यह गर्व का विषय है पर देखा जाएं तो दुनिया मे ऐसी कौनसी स्त्री है जो सुंदर नहीं है। अंतर सिर्फ इतना है कि कोई बहुत ज्यादा सुंदर है तो कोई कम सुंदर। स्त्री में सर्जन करने की शक्ति है वह सहनशीलता और त्याग की मूरत है। फिर भी ऐसे में वर्तमान समय में समाज उसे कमजोर और अबला बनाने का प्रयास कर रहा है।


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