- शुरू होंगे शुभ कार्य देवोत्थान पर घर-घर होगा तुलसी विवाह, रहेगी सहालग की धूम
- देव उठने के साथ ही खत्म हो जाएगा चातुर्मास
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: कार्तिक महीने की शुक्लपक्ष की एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी और देव उठनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक आषाड महीने की शुक्लपक्ष की एकादशी यानि देव शयनी एकादशी पर भगवान विष्णु सो जाते हैं। इसके बाद देव प्रबोधिनी यानि कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को क्षीर सागर में चार महीने की योगनिंद्रा के बाद भवगवान विष्णु इस दिन उठते है।
भगवान के जागने से सृष्टि में तमाम सकारात्मक शक्तियों का संचार होने लगता है। ज्योतिषाचार्य आलोक शर्मा के अनुसार इस साल देव उठनी एकादशी पर सिद्धि, महालक्ष्मी और रवि योग बन रहा है। इससे इस दिन की जाने वाली पूजा का अक्षय फल मिलेगा। बता दें कि इस वर्ष केवल अब शादी के 10 मुहूर्त ही शेष बचे है। उसके बाद नया साल शुरु होते ही गुरु अस्त हो जाएंगे, जिसके साथ एक बार फिर सहालग पर रोक लग जाएगी। ज्योतिषों की माने तो 2021 में अप्रैल माह से ही शादियों के शुभ मुहूर्त है। 15 दिसंबर से गुरु अस्त होने की वजह से खलमास लग जाएगा।
भगवान विष्णु संग तुलसी विवाह क्यों
पौराणिक मान्यता के अनुसार राक्षस कुल में एक कन्या का जन्म हुआ जिसका नाम वृंदा रखा गया। वह बचपन से भगवान विष्णु की परम भक्त थी और हमेशा उनकी भक्ति में लीन रहती थी। जब वृंदा विवाह योग्य हुई तो उसके माता-पिता ने उसका विवाह समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए जलंधर नाम के राक्षस से कर दिया। वृंदा भगवान विष्णु की भक्त के साथ एक पतिव्रता स्त्री थी, जिसके कारण उसका पति जलंधर और भी शक्तिशाली हो गया।
जलंधर जब भी युद्ध पर जाता वृंदा पूजा अनुष्ठान करती वृंदा की भक्ति के कारण जलंधर को कोई भी नहीं मार पा रहा था। जलंधर ने देवताओं पर चढ़ाई कर दी, सारे देवता जलंधर को मारने में असमर्थ हो रहे थे। जलंधर उन्हें बूरी तरह से हरा रहा था। दु:खी होकर सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गए और जलंधर के आतंक को समाप्त करने की प्रार्थना करने लगे। तब भगवान विष्णु ने अपनी माया से जलंधर का रूप धारण कर लिया और छल से वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया। इससे जलंधर की शक्ति क्षीण हो गई और वह युद्ध में मारा गया।
जब वृंदा को भगवान विष्णु के छल का पता चला तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर का बन जाने का शाप दे दिया। भगवान को पत्थर का होते देख सभी देवी-देवता में हाकाकार मच गया। फिर माता लक्ष्मी ने वृंदा से प्रार्थना की तब वृंदा ने जगत कल्याण के लिए अपना शाप वापस ले लिया और खुद जलंधर के साथ सती हो गई फिर उनकी राख से एक पौधा निकला जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी नाम दिया और खुद के एक रुप को पत्थर में समाहित करते हुए कहा कि आज से तुलसी के बिना मैं प्रसाद स्वीकार नहीं करुंगा। इस पत्थर को शालिग्राम के नाम से तुलसी के साथ ही पूजा जाएगा। कार्तिक महीने में तो तुलसी का शालिग्राम के साथ विवाह भी किया जाता है।