- कई थाना प्रभारी हटाई गई, कई पर जांच बैठी
- चहेती सिपाहियों के जरिये करती हैं बेखौफ कमाई
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: 1994 में जब मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने महिला थाने का उद्घाटन किया था तब इसके उद्देश्य साफ थे कि महिलाओं के खिलाफ अपराध और पति-पत्नी के बीच झगड़ों को गंभीरता से निपटाया जाए। महिला थाने ने अपना यह उद्देश्य वक्त के बदलने के साथ बदल दिया।
महिलाओं को न्याय दिलाने के लिये बना महिला थाना महिला पुलिसकर्मियों के भ्रष्टाचार का रिकॉर्ड बनाने में कामयाब हो गया। कुछ एसएसपी ने इस थाने को सुधारने का प्रयास भी किया, लेकिन उनका यह प्रयास नाकाफी रहा। हैरानी की बात यह है कि प्रभाकर चौधरी जैस सख्त मिजाज एसएसपी के सामने भी महिला थाने की पुलिस बेखौफ होकर रिश्वतखोरी में लगी रही।
यह सुनने में भले अजीब लगे लेकिन इसमें सच्चाई काफी हद तक है कि पूरे जनपद में महिला थाना ही ऐसा है। जहां पर तैनात महिला पुलिसकर्मी भ्रष्टाचार को बेहद सहजता से लेती है और लोगों की निगाहों में आने से बची रहती है। जिस तरह से एसओ मोनिका जिंदल और दारोगा रितू काजला सस्पेंड हुई, इससे पहले भी महिला एसओ और उनकी कमाऊ महिला सिपाही सस्पेंड हो चुकी है।
परिवार परामर्श केन्द्र की प्रभारी रहने के दौरान ही निलंबित मोनिका जिंदल को पुलिस के दांवपेंच पता चल गए थे। मोनिका जिंदल से पहले इंस्पेक्टर संध्या वर्मा के समय में भी महिला थाना हमेशा चर्चाओं में रहा था और उनके कार्यकाल की कुछ महिला सिपाहियों ने पुलिस अधिकारियों को भ्रष्टाचार के सबूत तक दिये थे, लेकिन पूर्व एसएसपी ने कार्यवाही क्यों नहीं की, यह आज तक रहस्य का विषय बना हुआ है।
महिला थाने में किसी विवाहिता की तरफ से मुकदमा दर्ज होने के बाद भ्रष्टाचार का मीटर चलना शुरु हो जाता है। विवेचक और थाना प्रभारी मिलकर खेल शुरु करते है। पीड़िता से पैसे इस बात के लिये जाते हैं। आरोपियों को पकड़ने के लिये दबिश डालनी है। आरोपियों से पैसे इस बात के लिये जाते हैं। तुमको दबिश की सूचना मिल जाएगी। मुकदमे में धारा बढ़ाने, धारा हटाने, नाम जोड़ने और नाम हटाने के पैसे धमका कर लिये जाते है।
अमूमन एसएसपी महिला थाने की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं और इसका फायदा महिला एसओ खुलकर उठाती है। एसएसपी दिनेश चंद्र दुबे के समय की महिला इंस्पेक्टर ने तो सारे रिकॉर्ड ही तोड़ दिये थे। बाद में महिला इंस्पेक्टर को हटा दिया गया था। कई बार महिला सिपाही रंगेहाथ भी पकड़ी जा चुकी हैं। कुछ साल पहले तक यह हालात हो गए थे थाना प्रभारियों ने अपनी चहेती सिपाहियों को खुलकर वसूली के काम में लगा दिया था।
यही कारण रहा कि कई बार थाने में हाथापाई जैसी स्थिति पैदा हो गई थी। 2017 में थाना कंकरखेड़ा में एक महिला को मुर्गा बनाकर सुर्खियों में आई महिला दारोगा अमृता यादव जब कोतवाली में तैनात थी तब 20 हजार रुपये रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ी गई थी। धाराएं हटाकर केस कमजोर करने के लिए उसने आरोपी से एक लाख रुपये की मांग की थी। एंटी करप्शन टीम ने उसे दबोच लिया। थाना देहली गेट में उसके खिलाफ केस दर्ज होने के बाद एसएसपी ने उसे सस्पेंड कर दिया।