Sunday, June 15, 2025
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नजरिया: भूख के खिलाफ संघर्ष की जीत


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एनके सोमानी
संयुक्त राष्ट्र की एंजेसी विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) को साल 2020 का नोबेल शांति पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। एंजेसी को यह पुरस्कार दुनिया भर में युद्ध और संकटग्रस्त इलाकों में जरूरतमंद लोगों तक खाना पहुंचाने व भुखमरी से लड़ने के प्रयासों के लिए दिया गया है। पुरस्कार के तहत स्वर्ण पदक और एक करोड़ स्वीडिश क्रोन (करीब आठ करोड रुपये) की नकद राशि  प्रदान की जाएगी। पुरस्कार 10 दिसंबर को आॅस्लो में आयोजित कार्यक्रम में प्रदान किया जाएगा। साल 2019 का शांति पुरस्कार इथोपिया के प्रधानमंत्री अबि अहमद अली को दिया गया था।
डब्ल्यूएफपी संसार के विभिन्न महाद्वीपों में व्यापत भूखमरी के मुद्दे पर काम करने वाला विश्व का सबसे बड़ा संगठन है।  इसका मुख्य कार्य आपात स्थितियों के दौरान जरूरतमंदों तक खाद्य सामग्री पहुंचना है। यह खाद्य सुरक्षा को प्रोत्साहित करने का काम भी करता है। 1961 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्थापित यह संगठन दुनिया के विभिन्न कोनों में भूख के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ रहा है। इसका मुख्यालय रोम (इटली) में है। यह सरकारों की स्वैच्छिक योगदान पर निर्भर करता है। 2007 में इसने 3.3 मिलियन टन भोजन ( लगभग 3.1 अरब डॉलर) की सहायता भूख से पीड़ित लोगों तक पहुंचाई। साल 2019 में डब्ल्यूएफपी ने 88 देशों के करीब 10 करोड़ लोगों को खाद्य सहायता मुहैया करवाई है। इस समय जबकि दुनिया कोरोना महामारी के वैश्विक संकट से गुजर रही है। कई बड़े देशों की अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी है। गरीबी और बेरोजगारी के आंकड़े डरा रहे हैं। इसके बावजूद डब्ल्यूएफपी के कार्यकर्ता देश और राज्यों की सीमाओं से परे हट कर युद्ध और संकटग्रस्त इलाकों में जरूरतमंद लोगों तक खाना पहुंचाने का काम कर रहे हैं। कोरोना महामारी में यात्रा पाबंदियों के बावजूद संगठन के कार्यकर्ताओं ने यमन, कांगो, नाइजीरिया, सूडान और बुर्किना फासो जैसे देशों में गृहयुद्ध, हिंसक संघर्ष और महामारी के भीषण संकट के बीच लोगों तक खाद्य सामग्री पहुंचाई। सबसे अहम बात यह है कि डब्ल्यूएफपी ने युद्ध और संघर्ष में भूख को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किए जाने के कुसित प्रयासों को रोका है।
हाल के वर्षों में भूख के खिलाफ जंग में राष्ट्रों का जो नकारात्मक रूख देखने को मिला है, उससे भुखमरी के आंकड़े आश्चर्यजनक ढंग से बढेÞ हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2019 तक 13 करोड़ 50 लाख लोग तीव्र भुखमरी से पीड़ित थे। पिछले कई वर्षों के इतिहास में यह भुखमरी का सबसे बड़ी संख्या है। अब कोरोना वायरस के चलते यह संख्या और अधिक बढ़ी है। साल 2015 में संयुक्त राष्ट्र ने मानव जाति को भूख से मुक्त कराने का बीड़ा उठाया है। वर्ल्ड फूड प्रोग्राम संयुक्त राष्ट्र के इसी लक्ष्य की प्राप्ति का एक साधन है। इसके तहत यह भूख को खत्म करने और खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने का काम करता है। विश्व खाद्य कार्यक्रम अब इस बात की ओर भी ध्यान दे रहा है कि  भोजन आधारित सामाजिक सुरक्षा कवच को इतना सक्षम बना दिया जाए कि वह लक्षित जनसंख्या तक भोजन को अधिक कुशलता और असरदार ढंग से पहुंचा सके।
नोबेल पुरस्कार स्वीडन के वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में साल 1901 में शुरू किया गया था। चिकित्सा विज्ञान, भौतिकी, रसयान विज्ञान, साहित्य, अर्थशास्त्र व शांति के क्षेत्र में दिया जाने वाला विश्व का सर्वोच्च पुरस्कार है। इस साल शांति पुरस्कार के लिए दुनियाभर से 318 प्रस्ताव आए थे। इनमें 211 व्यक्त्यिों के सहित 107 संगठन शामिल थे। पुरस्कार की दौड़ में इस बार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जलवायु कार्यकर्ता एवं स्वीडन की नागरिक ग्रेटा थनबर्ग, नर्व एजेंट (जहर) हमले से उबर रहे रूस के विपक्षी नेता एलेक्सी नवेलनी और कोरोना वायरस संकट से निपटने में भूमिका के लिए विश्व स्वास्थय संगठन( डब्ल्यूएचओ) भी शामिल था।
हालांकि, डब्ल्यूएचओ को पुरस्कार न दिए जाने को लेकर चीन ने नोबेल चयन समिति की आलोचना की है। चीन का आरोप है कि नोबेल चयन समिति ने अमेरिकी राष्ट्रपति की नाराजगी के डर से विश्व स्वास्थय संगठन के दावे की अनदेखी की है। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने तो यहां तक कह दिया कि नोबेल शांति पुरस्कार बेकार हो गया है, इसे बंद कर दिया जाना चाहिए। यह केवल पश्चिमी और अमेरिका के बड़े लोगों की दलाली करने के अलावा कुछ नहीं करता है।
 शांति पुरस्कार की घोषणा के वक्तडब्ल्यूएफपी के कार्यकारी निदेशक डेविड बीसली दरिद्रता और युद्ध से कमजोर हो चुके अफ्रीका के साहेल क्षेत्र का दौरा कर रहे थे। पुरस्कार की घोषणा पर प्रतिक्रिया वक्त करते हुए उन्होंने कहा कि यह दुनिया को संदेश है कि उन्हें इस इलाके और भुखमरी के शिकार लोगों को नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने उम्मीद जताई कि नोबेल मिलने के बाद दुनिया भर के दानदाता और अरबपति लोग भुखमरी उन्मूलन के कार्यक्रम में सहायता के लिए प्रेरित होंगे। बीसली कोविड-19 महामारी से पहले भी कई देशों में भुखमरी के हालात बदतर होने की चेतावनी देते रहे हैं, और अधिक संसाधन उपलब्घ कराने की अपील करते रहे हैं। निसंदेह भुखमरी की समस्या हाल के वर्षों में गंभीर रूप से उभर कर आई है। डब्ल्यूएफपी इस गंभीर समस्या के खिलाफ एक बड़ी जंग लड़ रहा है। नोबेल जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार मिलने से संस्था के प्रयासों को तो मान्यता मिली ही है, साथ ही दुनिया का ध्यान उन लाखों लोगों की ओर आकर्षित हो सकेगा जो भुखमरी के शिकार हो रहे हैं।

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