खनन के लिए यदि पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में जमीनें ली जाएंगी, तो सबसे पहले ग्रामसभा की मंजूरी जरूरी है, अन्यथा यह गैर-कानूनी हो जाएगा। संविधान की पांचवीं अनुसूची और छठवीं अनुसूची ने आदिवासियों को उन इलाकों की सारी भूमि का मालिक बनाया है। संथाल परगना टेनेंसी एक्ट के अनुसार, इस इलाके की जमीन को न तो बेचा जा सकता है और न ही इसका हस्तांतरण किया जा सकता है, चाहे वह आदिवासियों की जमीन हो या गैर-आदिवासियों की, लेकिन विकास का मॉडल दूसरे की जमीन छीनकर ही बनता है।झारखंड में ढेर सारी कोयला खदानें हैं, लेकिन वे आदिवासियों के लिए अभिशाप हैं। गोड्डा जिला में कोयला निकालने के लिए राजमहल परियोजना के अंतर्गत ईसीएल (ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड) लगातार कई गांवों को विस्थापित कर रही है।
गोड्डा जिला के लालमटिया प्रखंड के कई गांव देखते-ही-देखते नक्शे से गायब होकर विकास की भेंट चढ़ गए हैं। पहले कुछ गांवों को लालच देकर और बाद में कई गांवों को जबरदस्ती, दमन करके विस्थापित किया गया और खदान बनाकर कोयला निकाला गया।
पिछले दिनों जब ईसीएल खनन का अपना क्षेत्र बढ़ा रही थी और तलझारी गांव की सीमा के पास पहुंच गई थी, उसी समय संथाल समुदाय के हजारों आदिवासी अपने परंपरागत हथियारों के साथ वहां पहुच गए और अपनी जमीनों पर जबरदस्ती खनन का विरोध किया। गांव वालों का कहना था कि हम जान दे देंगे, लेकिन जमीन नहीं देंगे। आदिवासी समाज के लोगों का कहना था कि हमें मत उजाड़ो, हमारी जमीनें चली जाएंगी तो हम जीते जी मर जाएंगे।
यहां खदान से कोई फायदा नहीं है, बल्कि यह हमारे पर्यावरण और प्रकृति का नुकसान कर रही है। इसके साथ – साथ आदिवासी संस्कृति और आजीविका भी संकट में है। इसके बावजूद प्रशासन ईसीएल के लिए जबरदस्ती जमीन अधिग्रहीत करने की जोर-आजमाइश करता हुआ कंपनी के एजेंट के रूप में दिखा।
ईसीएल ने अपनी राजमहल कोल परियोजना के विस्तार के लिए बीते पांच सालों में बोआरीजार प्रखंड के तालझारी गांव की 125 एकड़ जमीन अधिग्रहित की है। वर्ष 2018 से ही वहां ईसीएल की ओर से खदान विस्तार की प्रक्रिया शुरू करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन तालझारी के रैयतों सहित आसपास के गांवों ने कड़ा विरोध किया।
उनका कहना था कि आदिवासी बहुल क्षेत्र में पांचवी अनुसूची के अनुसार कोई भी कार्य बिना ग्रामसभा की सहमति के शुरू नहीं किया जा सकता। वर्ष 2018 में तालझारी गांव के ग्रामीणों ने ग्रामसभा के माध्यम से निश्चय किया था कि गाँव और गाँव की बाकी जमीनों को किसी भी हाल में कोयला खनन के लिए ईसीएल को नहीं दिया जायेगा। फिर भी जबरदस्ती कई प्रयास किये गए कि जमीन हथिया ली जाए, लेकिन यह नहीं हो सका।
ग्रामीण लगातार विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि ईसीएल प्रबंधन ने पूर्व में लोगों को ठगने का काम किया है, जिसका नतीजा है कि पूर्व में हुए विस्थापित लोगों में कइयों को आज तक मुआवजा, नौकरी और पुनर्वास नहीं मिला है। वहीं रैयतों की जो जमीन ली गई है, वह ग्रामसभा की सहमति की बजाए कुछ लोगों को प्रबंधन द्वारा अपने पक्ष में करके ली गई है। ऐसे में, बगैर ग्रामसभा के भूमि-अधिग्रहण को वे नहीं मानते।
आज से करीब सात-आठ साल पहले गोड्डा में अडानी-कंपनी का प्रवेश हुआ था। परसपानी गांव में पॉवर-प्लांट लगना था, वो भी बंजर जमीन पर, लेकिन राजनीति के कारण वहां जमीन अधिग्रहण नहीं हो पाया। बाद में मोतिया गांव के लोगों ने अडानी का स्वागत किया, हालांकि कुछ लोगों द्वारा विरोध भी हुआ। इस विरोध में शामिल कुछ लोगों का जमीन से मोह था, तो कुछ राजनीति से प्रेरित थे।
उस समय केंद्र में भाजपा सरकार चला रही थी, तो राज्य में भी रघुवरदास की भाजपा सरकार थी। आदिवासियों की कुछ एकड़ जमीन लेने के लिए सरकार को नाकों-चने-चबाना पड़े और खबर बहुत दूर तक गई, लेकिन राजनीति का ये भी एक रंग था। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी जो आदिवासियों की हिमायती होने का दंभ भरती है, मोतिया आकर पीड़ित परिवारों का दर्द जानने का प्रयास नहीं किया।
गोड्डा जिले की राजमहल परियोजना ईसीएल के लिए जमीन अधिग्रहण फिर से किया जा रहा है, लेकिन इस बार कोई राजनीतिक दल उनके साथ नहीं है। ग्रामीण पूर्व में भी ठगे जा चुके हैं, इसीलिए इस बार जमीन देने का विरोध करने को उतारू हैं, लेकिन परियोजना को जमीन चाहिए, वरना ईसीएल का काम बाधित हो जाएगा। केंद्र सरकार और कोल इंडिया मजबूर हैं, क्योंकि इसी खदान के कोयले से दो-दो विद्युत परियोजनाओं को कोयला दिया जा रहा है।
आजकल केंद्र में भाजपा है और राज्य में महागठबंधन की सरकार, लेकिन आदिवासियों की आवाज किन्हीं के कानों तक नहीं जा रही। जिस क्षेत्र में जमीन अधिग्रहण करने के लिए झारखंड पुलिस ग्रामीणों पर बल प्रयोग कर रही है, वहां के विधायक लोबिन हेम्ब्रम हैं। सरकार पर हमेशा तल्ख टिप्पणी करने में कोई कसर नहीं छोड़ते, लेकिन इस मुद्दे पर मौन हैं। सांसद बिजय हांसदा भी चुप हैं और आंखों पर पट्टी बांधे हैं क्योंकि वे कोल मंत्रालय के शायद सदस्य भी हैं।
अन्य जनप्रतिनिधियों ने भी कुंभकर्णी नींद अपना लिया है, क्योंकि इसी परियोजना से डीएमएफटी (जिला खनिज फाउंडेशन ट्रस्ट) में करोड़ों का फंड आ रहा है। राज्य सरकार, जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की नजर इस फंड पर है, क्योंकि जिले में काम भी इसी मद से हो रहा है और परसेंटेज भी अच्छा मिलता है।
सदर-अस्पताल के ऊपरी तल का निर्माण इसी मद में हो रहा है और जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था को ठीक करने का प्रयास भी डीएमएफटी (जिला खनिज फाउंडेशन ट्रस्ट) द्वारा ही किया जा रहा है, इसलिए मलाई के लिए सभी मिलकर गरीब आदिवासियों के घर उजाड़ने में लग गए हैं। तालझारी के आदिवासी रैयतों का कहना है कि यहां से उजड़े तो लगभग 200 परिवारों के समक्ष रोजी-रोटी का गंभीर संकट पैदा हो जाएगा।
तालझारी, भेरेंडा, पहाड़पुर में रहने वाले आदिवासी राजमहल परियोजना के लिए अपनी कृषि योग्य जमीन नहीं देंगे। इस जमीन पर किसी सूरत में खनन नहीं होगा।
सामाजिक कार्यकर्ता हंसराज मीणा ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को टैग कर उनसे वनवासियों और आदिवासियों की रक्षा के लिए गुहार लगाई है। उन्होंने लिखा है कि देख रही हैं ना, महामहिम मुर्मू, कैसे झारखंड के गोड्डा जिले के तालझारी गांव में ईसीएल की कोल परियोजना के लिए आदिवासियों की जमीन सुरक्षा बलों के सहारे अदाणी लूट रहा है। लोग विरोध कर रहे हैं, लेकिन आदिवासियों को यहां से खदेड़ा जा रहा है। उन्हें मारा-पीटा जा रहा है। धिक्कार है। जब जमीन ही नहीं रहेगी, तो 1932 वाला झंडा कहां गड़ेगा?
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