बारिश बागवानी शुरू करने का सही समय होता है, इस समय किसान नींबू के भी पौधे लगा सकते हैं। किसानों को नींबू लगाने से पहले ये जानना जरूरी है कि वो लाइम लगाना चाहते हैं या फिर लेमन, क्योंकि हिंदी में दोनों को नींबू कहा जाता है। जहां तक कागजी नींबू की बात है, जिसे खट्टा नींबू बोलते हैं की डिमांड मार्केट में सबसे ज्यादा होती है।
यह आकार में छोटा होता है, जिसका वजन 40 से 45 ग्राम और छिलका काफी पतला होता है। इसकी मांग इसके रस को लेकर ज़्यादा होती है। इसमें कांटे ज़्यादा होते हैं और पेड़ ऊपर की तरफ बढ़ते हैं। जबकि लेमन आकार में बड़ा होता है, लगभग 50 से 70 ग्राम तक का होता है।
अचार के लिए इसी का इस्तेमाल होता है। इसके पेड़ में कांटे नहीं होते हैं, अगर होते भी हैं तो बहुत छोटे होते हैं। इसके पेड़ झाड़ीनुमा होते हैं और इसमें खटास कागजी नींबू की तुलना में थोड़ी कम होती है।
नींबू की खेती के लिए सही जलवायु
नींबू की बागवानी के लिए गर्म और नम जलवायु की जरूरत होती है। इसके लिए 20 से 30 सेंटीग्रेड औसत तापमान उपयुक्त होता है। 75 से 200 सेंटीमीटर की बारिश वाले क्षेत्र में नींबू की खेती अच्छी होती है। ध्यान रखें कि, जिन क्षेत्रों में लंबे समय तक सर्दी होती है और पाला पड़ने की संभावना रहती है, वहां नींबू की बागवानी सही नहीं होती है।
नींबू के लिए मिट्टी
नींबू की बागवानी सभी प्रकार की उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन उत्पादन की दृष्टि से बुलई दोमट मिट्टी अच्छी होती है। नींबू का पौधा लगाने के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए। यदि पीएच मान इससे कम है, तो इसे नियंत्रित करने के लिए मिट्टी में बेकिंग सोडा डाल सकते हैं।
खेती की तैयारी कैसे करें
नींबू की उन्नत किस्में
बारामासी: इस वैरायटी में साल में 2 बार नींबू का फल आता है। फल पकने का समय जुलाई से अगस्त, फरवरी से मार्च तक का होता है।
कागजी नींबू: यह फल थोड़ा छोटा और पकने पर फल पीला हो जाता है। अंदर से रस से भरा होता है।
मीठा नींबू: इस प्रकार के नींबू की कोई विशेष किस्म नहीं होती है।
नींबू की खेती में सिंचाई
अधिक उत्पादन के लिए नींबू के पौधों को सिंचाई की बहुत जरूरी होती है। गर्मियों के मौसम में 10 दिन जबकि सर्दियों में 20 दिन के अंतराल पर नींबू के पौधों में सिंचाई करनी चाहिए। आवश्यक हो तो बारिश के दिनों में भी सिंचाई की जा सकती है।
नींबू की बागवानी के लिए ड्रिप इरिगेशन टपक प्रणाली) से सिंचाई करना सही होता है। सिंचाई करते वक्त हमेशा ध्यान देना चाहिए की खेत में जलभराव की स्थिति कभी नहीं हो।
नींबू में खाद और उर्वरक प्रबंधन
नींबू के पौधों में आप गोबर खाद, वर्मी कंपोस्ट खाद और वर्मी कंपोस्ट बड़े स्तर पर प्रयोग कर सकते हैं। 3 वर्ष के पौधे में वर्ष में दो बार फूल आने से पहले 5 किलो/पौधे के हिसाब से वर्मी कंपोस्ट, गोबर खाद देना चाहिए।
नींबू के पौधे 10 वर्ष से अधिक होने पर वर्ष में एक बार 250 ग्राम डीएपी 150 ग्राम नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम जरूर दें।
नींबू में लगने वाले रोग और इलाज
नींबू में कई तरह के कीटों और रोगों का प्रकोप होता है। अत: सही समय पर रोग प्रबंधन करना भी नींबू की बागवानी के लिए बेहद जरूरी है। इसके लिए किसानों को पौधे लगाते समय ही विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है।
उन्हें हमेशा स्वस्थ पौधों को ही लगाना चाहिए, यदि पौधे स्वस्थ और वायरस रहित होंगे तो रोगों की संभावना कम हो जाती है। नींबू की फसल में लगने वाले रोगों में कैंकर, आर्द्र गलन रोग, नींबू का तेला और धीमा उखरा रोग प्रमुख हैं।
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