Friday, September 20, 2024
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आसान नहीं है सांसारिक रिश्ते निभाना

Sanskar 1


सांसारिक रिश्ते निभाना बच्चों का खेल कदापि नहीं है। यहां कदम-कदम पर अग्नि परीक्षा में खरा उतरना पड़ता है। रिश्तों की दौलत हमारे पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार ईश्वर की ओर से हमें उपहार में मिलती है। उसे सम्हालना हमारे हाथ में होता है। हम चाहें तो उस पूंजी को अपने सुकृत्यों और अपने सद् व्यहार से बढ़ा सकते हैं और चाहें तो अपने झूठे अहं व दुर्व्यवहार से घटा सकते हैं। रिश्तों की गरिमा बनाए रखने के लिए बहुत सारे समझौते कदम-कदम पर करने पड़ते हैं। जो सामंजस्य नहीं बनाना चाहते, वे इस पूंजी को गंवाकर ठन-ठन गोपाल हो जाते हैं।

मन से यदि दूसरों के लिए कुछ किया जाए तो उसका प्रभाव सब पर पड़ता है। यदि अनमना होकर अथवा घास काटते हुए किसी के लिए कुछ किया जाए तो वह भार बन जाता है। ऐसा करने से न तो सेवा करने वाले को खुशी मिलती है और न ही करवाने वाले को। रिश्तों को जोड़ने के लिए धन की बहुत आवश्यकता होती है। घर में बड़े-बजुर्गों के स्वास्थ्य और उनकी अन्य आवश्यकताओं को पूरा करना धन के बिना संभव नहीं हो सकता।

अपने जीवन यापन के लिए भी इसके बिना एक कदम भी नहीं चल सकते। जहां अन्य सभी रिश्ते तन, मन और धन से ही निभाने सम्भव हो पाते हैं, वहीं सबसे महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध में तो ये तीनों बेहद जरूरी होते हैं। बच्चों के संदर्भ में यानी उनके लालन-पालन में भी इन तीनों का योगदान आवश्यक है। उनकी पढ़ाई-लिखाई, जीवन में उन्हें सेटल करना और शादी-ब्याह में इन तीनों तत्वों का ही योगदान होता है।

अंत में मैं पति-पत्नी के रिश्ते की गरिमा की चर्चा करना आवश्यक समझती हूं, जहां इन तीनों की महती आवश्यकता होती है। सबसे पहले तन यानी शारीरिक संबंधों की पवित्रता होनी चाहिए। दोनों में से यदि एक भी पक्ष विवाहेत्तर सम्बन्ध बनाएगा, तो यह पवित्र रिश्ता कदापि नहीं निभ सकता। दोनों ओर की पारदर्शिता होना इस रिश्ते की पहली शर्त है।
धन भी एक महत्त्वपूर्ण अंग है गृहस्थ जीवन का। यदि धन-सम्पत्ति के विषय में दोनों एक नहीं हैं और मेरा पैसा, मेरा पैसा करते रहते हैं तो वहां समस्याएं अधिक बढ़ जाती हैं।

एक-दूसरे को यदि समय पर धन न दिया जाए तो करोड़ों-अरबों रूपए भी व्यर्थ होते हैं। फिर चाहे कितनी भी लीपा-पोती कर लो रिश्ते दरकने लगते हैं। वहां उनकी मिठास चूकने लगती है और कटुता का साम्राज्य हो जाता है। तन, मन और धन की शुचिता आपसी सम्बन्धों के लिए नितान्त आवश्यक है। इनमें पारदर्शिता रखने वाले अपनी गाड़ी प्रसन्नता पूर्वक चलाते हैं और अन्य रोते-कल्पते और शिकवा करते रहते हैं।

चंद्र प्रभा सूद


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