- सीएमओ को थमाई शहर के फर्जी नर्सिंगहोम की लिस्ट !
- न्यूटिमा का पता नहीं, करीब दो दर्जन किए जाएंगे बंद
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: भोले भाले लोगों के इलाज के नाम पर मौत का तामझाम लेकर बैठेने वालों तथा उनके ठिकानों को लेकर स्वास्थ्य विभाग सख्त हो गया है। तमाम कायदे कानूनों को ताक पर रखकर नर्सिंगहोम के नाम पर केवल झोलाछाप की तर्ज पर दुकान खोलकर इलाज के नाम पर मौत बांटने वाले पर आने वाले दिनों में सख्ती की तैयारी कर ली गयी है। यदि सब कुछ ठीक रहा तो दो दर्जन नर्सिंगहोमों पर ताले लटक जाएंगे। इनकी हिट लिस्ट तैयार कर ली गयी है। स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह से अलर्ट मोड पर है, केवल सीएमओ के ग्रीन सिग्लन का इंतजार है।
आईएमए ने थमाई सूची
नर्सिगहोम और इलाज के नाम पर डाक्टरी पेशे को शर्मसार करने वाले ऐसे लगभग दो दर्जन ठिकानों की सूची शुक्रवार को आईएमए ने सीएमओ को थमायी है। एक नर्सिंगहोम के लिए जो मानक होने चाहिए उन मानकों का पालन जो सूची थमायी गयी है उनमें से कोई भी नहीं कर रहा है। दरअसल शुक्रवार को अध्यक्ष डा. संदीप जैन की अध्यक्षता में आईएमए का एक प्रतिनिधि मंडल सीएमओ डा. अखिलेश मोहन से मिलने को पहुंचा था।
हालांकि इस मुलाकात में कहीं भी न्यूटिमा प्रकरण का कोई उल्लेख नहीं किया गया। लेकिन जानकारों का मानना है कि अपरोक्ष रूप से न्यूटिमा मामले को लेकर संभवत: रियायत की कोशिश की गयी, लेकिन आईएमए ने अधिकारिक रूप से इस बात को खारिज कर दिया। आईएमए अध्यक्ष डा. संदीप जैन ने बताया कि सीएमओ से मिलने के लिए काफी दिन से तैयारी थीं। शुक्रवार को समय मिला तो उनसे मुलाकात की गयी। कई विषयों पर चर्चा की गयी, लेकिन सबसे गंभीर विषय शहर में अवैध नर्सिंगहोम व झोलाछाप डाक्टरों का रहा है।
कई लाइसेंस हो चुक हैं निरस्त
बातचीत में स्वास्थ्य विभाग की ओर से आईएमए के प्रतिनिधि को अवगत कराया गया कि स्वास्थ्य विभाग पहले ही झोलाछाप और अवैध रूप से संचालित किए जा रहे नर्सिंगहोमों के खिलाफ अभियान छेडेÞ हुए हैं। अब तक कई अवैध नर्सिंगहोम के लाइसेंस निरस्त किए जा चुके हैं। झोलाछापों के खिलाफ एफआईआर करायी जा चुकी हैं। स्वास्थ्य विभाग का यह अभियान निरंतर जारी है।
ये कहना है आईएमए अध्यक्ष का
इंडियन मेडिकल एसोशिएशन के अध्यक्ष डा. संदीप पहल ने बताया कि शुक्रवार को एक प्रतिनिधि मंडल सीएमओ डा. अखिलेश मोहन से मिला। कई मुद्दों पर चर्चा की गई। इनमें कायदे कानून ताक पर रख कर संचालित किए जा रहे नर्सिंगहोमों का मुद्दा भी शामिल रहा।
एक कमरा छह बेड और एक मेडिकल स्टोर, बन गया नर्सिंगहोम
इमरजेंसी हालात में मरीज को अटैंड करने के लिए न तो रेजिडेंट मेडिकल आफिसर और न ही इमरजेंसी रूम। सिर्फ और सिर्फ एक मेडिकल स्टोर वो भी इसलिए कि जो दवाएं लिखी जाती हैं वो इस मेडिकल स्टोर के अलावा किसी दूसरे मेडिकल स्टोर या जगह पर नहीं मिलेंगी। महानगर में नर्सिंगहोम के नाम पर कुछ इसी तरह का गोरखधंधा चल रहा है। नर्सिंगहोम के नाम पर किसी के होम यानि भाडेÞ की जगह पर आमतौर पर दो कमरे, उनमें से एक कमरे में छह बेड और उसी में एक कौने में नर्सिंग होम के नाम पर काउंटर सजा कर बैठा एक युवक नजर आ जाएगा।
इससे ज्यादा कुछ नहीं। जबकि मानकों की यदि बात की जाए तो किसी भी नर्सिंग होम को संचालित किए जाने के लिए सबसे पहले सीएमओ कार्यालय में उसका पंजीकरण अनिवार्य है। इसके अलावा नर्सिंगहोम में एक मेडिकल रेजिडेंट डाक्टर जो इमरजेंसी में आने वाले रोगियों को अटैंड कर सके। इसके अलावा इमरजेंसी रूम जहां प्राथमिक चिकित्सका दी जा सके। एक आपरेशन थियेअर। इसके अलावा एक अटेंडेंट डाक्टर जो कम से कम एमबीबीएस डिग्री धारक हो। वार्ड बॉय, ट्रेंड नर्स इतना एक नर्सिंगहोम के लिए होना जरूरी है।
…लेकिन हो ये रहा है
नर्सिंगहोम के नाम पर जो कुछ संचालित किया जा रहा है उनमें ज्यादातर में मेडिकल रेजिडेंट डाक्टर तो छोड़िये एमबीबीएस डिग्री धारक डाक्टर तक नहीं मिलेगा। ट्रेंड नर्स के बजाए वहां पांचवीं या आठवी पांस कुछ युवक मिलेंगे जो नर्सिंगहोम की सफाई से लेकर तथाकथित आपरेशन थियेटर संचालित करते और डाक्टर वाला कोट पहनकर मरीजों को देखते व उनको दवाएं लिखते नजर आएंगे। जो दवाएं लिखी जा रही हैं वो केवल इसी नर्सिंगहोम के कोने में खोले गए खोखा नुमा नर्सिंगहोम के अलावा किसी दूसरी जगह नहीं मिलेंगी। नर्सिंगहोम के नाम पर अब इसे तमाश ना कहें तो और क्या कहें।