बाप और बेटा कहीं जा रहे थे। गर्मी के दिन थे। सूरज निकल चुका था। धूप बहुत तेज हो गई थी। बेटे ने छाता लगा लिया। बाप ने बेटे से कहा, ‘बेटा, छाता जरा पूरब की ओर रखा करो। ‘बेटे ने वैसा ही किया। दिन ढलने लगा। वह लड़का छाता लेकर अकेले ही घूमने निकल पड़ा। उसने छाता खोल लिया। लेकिन उस समय सूरज पश्चिम की ओर था। तब भी छाता उसने पूरब की ओर ही रखा। ऐसा उसने इसलिए किया कि पश्चिम की ओर रखने से पिता की आज्ञा भंग होती है। रास्ते में उसे कई आदमी मिले। सबने कहा कि छाता ठीक से लगा लो, लेकिन वह किसी की बात क्यों मानने लगा। उसने सबसे यही कहा _ ‘पिताजी का आदेश है। मैं पश्चिम की ओर छाता कैसे कर सकता हूं?’ लोगों ने जाकर यह बात उसके बाप को बताई। उसने बेटे को समझाया कि मैंने सुबह छाता पूरब की ओर रखने को इसलिए कहा था कि उस समय सूरज पूरब की ओर था। सूरज की किरणें पूरब से आ रही थीं और इस समय सूरज की किरणें पश्चिम से आ रही हैं। अत: छाता पश्चिम की ओर ही रखना चाहिए। क्योंकि तुम्हें धूप से बचने के लिए इस बात का हमेशा ध्यान रखना होगा कि सूरज कहां है? बाप की सीख बेटे की समझ में आ गई। वह समझ गया कि आज्ञा-पालन और अंध-भक्ति दो अलग-अलग बातें हैं। अत: मनुष्य को वस्तुस्थिति के साथ ही कर्म करना चाहिए। अपने मस्तिष्क का प्रयोग कर यह जानना चाहिए कि हमारा और संसार का भला किस कर्म में है। किसी की भी अंध-भक्ति से अनुसरण नहीं करना चाहिए।