Tuesday, December 24, 2024
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क्यों नहीं करें अमृत पान

Samvad 48

चंद्र प्रभा सूद

समुद्र मंथन का आयोजन देवताओं और असुरों ने मिलकर किया था। शेष अन्य रत्नों के साथ विष और अमृत दोनों उससे निकले थे। विष संहारक था, इसलिए कोई भी उसे पीना नहीं चाहता था। अमृत पीकर अमर हुआ जा सकता था, अत: देवासुर सभी उसे पीना चाहते थे। उसके लिए देवताओं और असुरों में झगड़ा भी हुआ। कोई भी अमृत को छोड़ना नहीं चाहता था। विचारणीय प्रश्न है कि मनुष्य को यदि अमृत मिल जाए तो क्या उसका पान करना चाहिए? अमृत का पान करने का लाभ क्या है? अमृत को पीकर मनुष्य क्या करेगा? अमर होकर क्या मनुष्य सुखी हो सकता है?

इन प्रश्नों के उत्तर में मैं एक ही बात कहना चाहती हूं कि अमृत का पान करने का मनुष्य को कोई लाभ नहीं हो सकता। अमर होकर यदि विषय-वासनाओं का गुलाम बनकर रहे तो भी कोई लाभ नहीं होगा। उनसे मुक्ति नहीं मिल सकती। उसके लिए यम-नियम आदि अष्टांग योग का पालन उसे करना ही पड़ेगा। अमृत का पान करके मनुष्य को कदापि सुख नहीं मिल सकता। पूर्वजन्म के सभी सुकर्मों और दुष्कर्मों का फल तो उसे फिर भी भुगतना पड़ेगा। उससे मनुष्य को किसी भी सूरत में मुक्ति नहीं मिल सकती। अमृत का पान करके यदि मनुष्य अहंकारी बन जाए तो भी इससे कुछ नहीं होने वाला।

कहते हैं सिकंदर उस जल की तलाश कर रहा था, जिसे पीकर मनुष्य अमर हो जाता है। बहुत दिनों तक भटकने के पश्चात उसने आखिरकार उस जगह को खोज लिया था जहाँ उसे अमृत की प्राप्ति हो सकती थी। यह सोचते हुए वह प्रसन्न हो गया था कि उसने अमृत की प्राप्ति कर ली है। अब उसे पीकर वह अमर हो जाएगा। उसके समक्ष ही अमृत की पावन धारा बह रही थी। वह अपनी अञ्जलि में अमृत को लेकर पीने के लिए झुका ही था कि उस गुफा के भीतर बैठा बूढ़ा व्यक्ति जोर से चिल्लाया, रुक जा भाई, यह भूल बिलकुल मत करना।

वह वृद्ध व्यक्ति बहुत बुरी अवस्था में था। सिकन्दर ने उससे कहा, तू मुझे रोकने वाला होता कौन है?

बूढ़े व्यक्ति ने उत्तर दिया, मैं भी तुम्हारी तरह अमृत की तलाश में इस गुफा आया था। मैंने इस अमृत को पी लिया था। अब मैं मरना चाहता हूं, परन्तु अमर होने कारण मैं मर नहीं सकता। मेरी हालत देख लो। मैं अन्धा हो गया हूं, पैर गल गए हैं, अब मैं चीख रहा हूं, चिल्ला रहा हूं कि कोई मुझे मार डाले पर मेरा दुर्भाग्य कि मुझे मारा भी नहीं जा सकता। अब दिन-रात परमपिता परमात्मा से यही प्रार्थना करता रहता हूं, हे प्रभु! मुझे मौत दे दो, मैं जीना नहीं चाहता।

यह सुनकर सिकन्दर बिना अमृत पिए चुपचाप गुफा से वापिस लौट गया। वह समझ चुका था कि जीवन का आनन्द उसी समय तक लिया जा सकता है जब तक मनुष्य उसे भोगने की स्थिति में होता है। अत: अपने स्वास्थ्य की रक्षा कीजिए। जितना जीवन मिला है, उसका भरपूर आनन्द उठाइए। दुनिया में सिकन्दर कोई भी नहीं है, बस वक्त ही सबसे बड़ा सिकन्दर है। अमृत का पान करके आसार संसार की सारी ऋतुओं का प्रभाव शरीर पर पड़ेगा। अमर हो जाने के कारण मनुष्य के अपने बन्धु-बान्धव तो सभी साथ छोड़कर चले जाएंगे तो वह अकेला क्या भाड़ झौंकेगा? उसका मरणधर्मा शरीर अशक्त होता जाएगा। उस स्थिति में वह बारम्बार मौत को गले लगाने की गुहार लगता फिरेगा पर मौत उससे मुंह मोड़कर चल देगी।

जितना जीवन अपने पूर्वजन्म के कर्मों के अनुसार ईश्वर की कृपा से मिला है, उसी का सदुपयोग यदि मनुष्य कर ले तो उसका जन्म सफल हो सकता है। अमृत पाने की चाह में वह व्यर्थ ही यहां-वहां भटकता रहता है। वास्तविक अमृत स्वरूप उस परमपिता परमात्मा को पाकर मनुष्य धन्य हो सकता है। उसे यह सदा स्मरण रखना चाहिए कि यही वह समय होता है जब उसे जन्मजन्मान्तर के बन्धनों से मुक्ति मिल जाती है।

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