देवभूमि, उत्तराखंड में बिलकुल ही अलग तरह से होली मनायी जाती है। पहाड़ों की होली कैसी होती है, इस पर एण्डटीवी के ‘गुड़िया हमारी सभी पे भारी‘ के मनमोहन तिवारी कहते हैं, ‘‘उत्तराखंड की होली देखने लायक होती है। होली के पहले सिलवाये गये सफेद झक कुरते के साथ सफेद नेहरू टोपी पहने पुरुषों की टोली। महिलाएं भी हल्के रंग के कपड़े पहनती हैं, ग्रुप में मिलकर होली के गीत गाती हैं। इसके बाद सब मिलकर पारंपरिक नृत्य, झोड़ा करती हैं। खास तरह के नमकीन पकवानों के साथ गुझिया और कई तरह की मिठाइयां बनती हैं। होली की बधाई देने घर आने वाले मेहमानों को फिर वो पकवान परोसे जाते हैं। मुंबई में हमारा पहाड़ी दोस्तों का ग्रुप बना हुआ है। हम लोग अपनी संस्कृति को बनाये रखने की कोशिश करते हैं, साथ मिलकर पहाड़ी गीत गाते हैं और अपने खास अंदाज में सारे त्यौहार मनाते हैं।’’
लाठियां और प्यार बरसाती होली
हरियाणा की ‘लट्ठमार’ होली पूरे देश में काफी प्रसिद्ध है। इस बारे में एण्डटीवी के ‘मौका-ए-वारदात’ की सपना चैधरी कहती हैं, ‘‘अक्सर फिल्मों में हरियाणा की मजेदार लट्ठमार होली दिखायी जाती है। इस लट्ठमार होली की परंपरा उत्तरप्रदेश के भी कुछ इलाकों में है। होली के दिन महिलाएं मजाक के अंदाज में परिवार के पुरुष पर लाठी चलाती हैं। वहीं पुरुष खुद को बचाने की कोशिश करते हैं। जो ऐसा नहीं कर पाते उन्हें फिर महिलाओं की पोशाक पहननी पड़ती है, इसे जीत का सांकेतिक रूप माना जाता है। इस त्यौहार के मौके पर वह पुरानी कथा जीवंत हो जाती है, जिसके अनुसार भगवान कृष्ण राधा और उनकी सहेलियों को छेड़ते थे और वे उनके पीछे लाठी लेकर दौड़ती थीं।’’
कोविड के दौरान सावधानी वाली होली
कोविड-19 के तेजी से बढ़ते मामलों को देखते हुए लोगों को अपने परिवार के चुनिंदा लोगों के साथ ही इसे मनाना चाहिये। होली का उत्साह किस तरह बरकरार रखेंगे, इस बारे में रोहिताश्व गौड़ यानी एण्डटीवी के ‘भाबीजी घर पर हैं’ के हमारे तिवारीजी कहते हैं, ‘‘हर साल हमारे घर पर होली का बहुत ही भव्य कार्यक्रम होता है, जहां हम सबको बुलाते हैं, उसमें ‘भाबीजी घर पर हैं’ की टीम भी होती है। हालांकि, पिछले साल से हमने उस पर थोड़ा अंकुश लगा दिया है। मेरा मानना है कि कोई भी त्यौहार सिर्फ तामझाम से अ४छा नहीं मनता, बल्कि इस खास दिन को अपने परिवार के साथ मनाने से भी यह अ४छा होता है। इसलिये, हम होली मनाने के लिये पारंपरिक मिठाइयां बनायेंगे और आॅर्गेनिक कलर्स खरीदेंगें। मैं आप सबसे विनती करना चाहूंगा कि बड़े-बड़े आयोजनों का हिस्सा ना बनें और होली खेलने के दौरान सुरक्षा और साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें।’’
आपसी रंजिश को भुलाकर, रिश्तों को पास लाती है होली
होली का त्यौहार पिछली बातों को भुला देना और माफ कर देना होता है। यह एक नई शुरूआत का त्यौहार है। त्यौहार के इस स्वरूप के बारे में हिमानी शिवपुरी, यानी एण्डटीवी के ‘हप्पू की उलटन पलटन’ की कटोरी अम्मा कहती हैं, ‘‘इस त्यौहार की सबसे अच्छी सीख होती है कि हम द्वेष को भुला दें और जीवन में आगे बढ़ें। लोग होलिकादहन की पावन अग्नि में अपनी चिंताओं, असफलताओं, नफरत और आपसी रंजिश को जलाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इससे जीवन में सकारात्मकता और शांति का आगमन होता है। मेरा मानना है कि जो कुछ भी हो गया है उसे बदला नहीं जा सकता। लेकिन कोई यह वादा जरूर कर सकता है कि यदि उसे माफ कर दिया जाये और उसे फिर से मौका दिया जाये तो ऐसी गलती दोबारा नहीं होगी। तो इस होली, मैं आप सबसे विनती करना चाहती हूं कि माफ करें और पुरानी बातों को भुला दें। बैर का बोझ अपने कंधों से उतार दें। आपको अपने जीवन में बदलाव जरूर महसूस होगा।’’
लखनऊ की खास नवाबी होली
जब बात होली के धूमधाम की होती है तो फिर नवाबों के शहर की एक अलग ही ठाठ देखने को मिलती है। एण्डटीवी के ‘और भई क्या चल रहा है में शांति मिश्रा का किरदार निभा रहीं, फरहाना परवीन कहती हैं, ‘‘मैंने बचपन से ही लखनऊ की होली देखी है और उसका हिस्सा बनकर काफी लुत्फ भी उठाया है। स्थानीय कार्यक्रमों में जिस तरह की तैयारियां होती थीं, हमें वाकई उसका बेसब्री से इंतजार रहता था। लखनऊ के हर घर में सूखे फूलों को कूटकर बारीक पावडर तैयार किया जाता था। और दूसरी सबसे कमाल की चीज होती थी, पंडित राजा की ठंडई। शहर अलग-अलग रंगों में रंगा होता था और लोग उसे और भी जानदार बनाने के लिये बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे, कुल मिलाकर लखनऊ की होली बड़ी अलबेली होती है।’