- वेस्ट एंड रोड पर छात्र की मौत के बाद सदर पुलिस आई हरकत में
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: वेस्ट एंड रोड पर हाल ही में हुए हादसे के बाद थाना पुलिस ने ऐसे वाहनों के खिलाफ के खिलाफ अभियान चलाया, जिनकी फिटनेस ठीक नहीं थी। हालांकि कि अभी तक आरटीओ की तरफ से ऐसे वाहनों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
वेस्ट एंड रोड पर हुए हादसे के बाद शनिवार को जागृति विहार स्थित दीवान स्कूल में बच्चों को लेकर आने वाले टेंपो, ई-रिक्शा और अन्य चार पहिया वाहनों की जांच की तो उनमे अधिकांश वाहन ऐसे मिलें जो कबाड़ में जाने वाले है। पुलिस ने ऐसे कई वाहनों को सीज कर दिया, जिनकी हालत ज्यादा खराब थी।
दीवान स्कूल के छात्र की मौत के बाद तमाम सामाजिक संगठन कार्रवाई की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए है। लोगों का कहना था कि पुलिस ऐसे वाहनों की कभी जांच नहीं करती जो बच्चों को लेकर चल रहे हैं। जबकि स्कूलों में बच्चों को लाने और ले जाने वाले अधिकांश वाहनों की उम्र पूरी हो चुकी होती है। यही नहीं वेस्ट एंड रोड और दूसरी जगहों पर जहां कई स्कूल एक ही जगह पर हैं, वहां छात्रों की ट्रिपलिंग होती है।
इन्हें रोकने के लिए पुलिस कोई कदम नहीं उठाती। इसी मामले को लेकर मेडिकल थाना पुलिस ने शनिवार को जागृति विहार स्थित दीवान पब्लिक स्कूल पहुंची और छुट्टी के बाद बच्चों को ले जाने वाले वाहनों की जांच की। पुलिस को दो टेंपो, एक वैन और दो अन्य वाहन ऐसे मिले जिनकी फिटनेस ही नहीं थी और वह अपनी उम्र भी पूरी कर चुके थे। फिर ऐसे खतरनाक हो चुके वाहनों को बच्चों को लाने और ले जाने के लिए लगाया हुआ था।
पुलिस ने ऐसे कई वाहनों को सीज किया, जबकि कुछ को वह थाने ले गए। पुलिस की कार्रवाई से अफरा-तफरी मच गई। वेस्ट एंड रोड पर भी सदर बाजार पुलिस ने ऐसे वाहनों को लेकर अभियान चलाया। यहां भी कई ऐसे वाहन मिले, जिनकी फिटनेस ही नहीं थी। उम्र पूरी करने के बाद भी ऐसे टेंपो को चलाया जा रहा था और उनमें बच्चों को भरकर लाया जा रहा था। ऐसे टेंपो को पुलिस पकड़कर थाने ले गई और जमा करा दिए।
आरटीओ की तरफ से ऐसे वाहनों के खिलाफ कोई अभियान शुरू नहीं किया गया। वहीं, इंस्पेक्टर संतशरण का कहना है कि अभिभावकों को भी सोचना चाहिए कि वह अपने बच्चों को जिन वाहनों से भेज रहे हैं, उनकी स्थिति क्या है। क्या वह पूरी तरह फिट हैं। आरटीओ से उन्हें क्लीन चिट मिली हुई, उनकी फिटनेस ठीक है। चालक के पास ड्राइविंग लाइसेंस है या नहीं। अधिकांश मामलों में अभिभावक कुछ नहीं देखते और अपने बच्चों का जीवन खतरे में डालते हैं।