Wednesday, December 11, 2024
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पहले दुत्कार और मौत के बाद अब सब्र की बात

  • जगबीर नहीं सिस्टम चलाने वाले अफसरों की संवेदनाओं की भी मौत

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: परिवार के गुजारे का इकलौता जरिया जमीन को वन विभाग के अफसरों ने ट्रैक्टर के पहिये तले रौंद दिया। उसमें गेहूं की फसल उगाही गयी थी। दो तीन महीने बाद गेहूं कटने लायक हो जाते। उन्हें बेचकर घर में करीब 77 हजार रुपये आने की उम्मीद थी, लेकिन अब ना तो जगबीर रहा जिसके पुरखे वन विभाग की बतायी जा रही जमीन पर बीते आठ दशकों से बुआई जुताई कर परिवार का गुजारा भर कर रहे थे

और न ही वो जमीन रही जिसके सहारे परिवार पल रहा था। जगबीर भी चला गया और जमीन भी चली गयी। गांव वालों का कहना है कि ऐसे में बेटा जान ना दे तो और क्या करे। गरीब जगबीर की जिंदगी की कीमत दो लाख रुपये लगायी गयी है। परिवार वालों को दो लाख की फौरी मदद की पेशकश अफसरों की ओर से की गयी।

जीते जी नहीं पूछा किसी ने

वन विभाग की बतायी जा रही जमीन को लेकर पहली बार कोई झगड़ा हुआ हो ऐसा भी नहीं है। जगबीर के पुत्र आकाश ने बताया कि जिस शख्स की वजह से आज उनके पिता दुनिया को छोड़कर चले गए। जमीन भी छिन ली गयी, उसी शख्स ने करीब ढाई तीन साल पहले उनके साथ इसी जमीन के टुकड़े को लेकर झगड़ा किया था। कोर्ट कचहरी हुई थी,

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लेकिन बाद में गांव के समझदार लोगों ने दोनों परिवारों के बीच कुटुम्ब व रिश्तेदारी का वास्ता देकर समझौता करा दिया था। जगबीर तो झगड़े की बात को भूल गया था, लेकिन वो रिश्तेदार जिसने तब झगड़ा किया था, उसने साजिश रचना बंद नहीं किया। उसी की साजिशों का नतीजा जगबीर की मौत और जमीन का छिन जाना है।

मौका तक नहीं बात रखने का

एक पुरानी कहावत है कि न खाता न बही जो साहब कहे वो ही सही, कुछ ऐसा ही गरीब जगबीर और अब उसके परिवार के साथ हो रहा है। जगबीर जान गया था कि उसके परिवार के गुजारे का एक मात्र साधन इस जमीन को नजर लग गयी है। ऐसा नहीं कि उसके पास इस जमीन के कागज या फर्द नहीं थी। इसके अलावा सबसे बड़ी बात वो यह कि अफसर ही तो कह रहे हैं कि जमीन वन विभाग की है, लेकिन जगबीर और उसका परिवार तो यह नहीं मानता।

उनका कहना है कि सारे कागजात हैं। फर्द हैं। खड़ी फसल को ट्रैक्टर तले रौंदने से पहले एक बार कम से कम अफसर जो कागज की पोटली बगल में दबाए जगबीर इस दफ्तर से उस दफ्तर तक अफसरों की डयोढी पर माथा रगड़ता घुम रहा था, उन कागजों को तो सही से जांच करा ली होती। क्या पता जो बात जगबीर व उसका परिवार कह रहा है, वही सही हो,

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लेकिन सिस्टम चलाने वालों ने वहां तक करना तो दूर की बात रही वैसा सोचना भी गंवारा नहीं किया। अपने परिवार को इकलौता सहारा जगबीर खड़ी फसल पर ट्रैक्टर चलवाए जाने से बुरी तरह से टूट चुका था। उसको समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे और फिर वही हुआ जिसकी उम्मीद कभी भी कम से कम उसके परिवार ने नहीं की थी।

जब सुनते नहीं थे, अब कह रहे हैं सब्र करो

जब जगबीर अपनी जमीन की खातिर लड़ रहा था, तब उसकी कोई सुनने को तैयार नहीं था। अफसर गूंगे बहरे बन गए थे। वो हर रोज अफसरों के पास जाया करता था, कहीं भी उसकी बात की सुनवाई नहीं की जा रही थी। वो बार-बार कह रहा था कि उसकी पुश्तें 80 साल से इस खेत में जुताई बुआई करती आ रही हैं। आज जब जगबीर इस दुनिया से अलविदा हो गया तो नेता मंत्री अफसर सतरी सभी उसके घर की डयोढी पर जाकर खड़े हो गए।

परिवार वालों से सब्र की बात कह रहे हैं। अब इन अफसरों को भला कौन समझाए कि जिस के परिवार का कमाने वाला इकलौता सहारा चला जाए उसके परिवार वाले भला कैसे सब्र करें। उनका कलेजा फटा जा रहा है। उन्हें समझ नहीं आता कि करें तो क्या करें। जिसे जाना था वो चला गया, लेकिन अब इस गरीब परिवार को कौन संभालेगा।

कसूरवार पर साधे हैं चुप्पी

एक जीता जागता आदमी अपनी जान देकर दुनिया को अलविदा कह गया, लेकिन इसके लिए जिम्मेदार कौन है। परिवार से सब्र की बात करने वाले अफसर व नेता इस सवाल पर चुप्पी साधे हैं। उन्हें खुद नहीं पता कि किस पर पूरे घटनाक्रम का ठीकरा फोड़ा जाए। उस पर जिसने जगबीर की शिकायत की या वन विभाग के उन अफसरों पर जिन्होंने जगबीर की जमीन के कागजों की जांच तक नहीं करनी जरूरी नहीं समझी

या फिर तहसील में बैठने वाले अफसरों पर जिनकी आदत हाथों हाथ काम निपटाने के बजाय टरकाने की हो गयी है। डीएम ने जांच के आदेश कर दिए हैं। 24 घंटे में जांच रिपोर्ट तलब की गयी थी। जांच करते रहिए मरने वालो तो अब वापस आने से रहा। उसके परिवार से जो छीन लिया गया है। उसकी भरपाई अफसर कैसे करेंगे।

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