Saturday, July 27, 2024
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हजारों मील की यात्रा कर परदेसी परिंदे पहुंचने लगे हस्तिनापुर

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  • सर्दियों से पहले विदेशी पक्षियों का आना हुआ शुरू

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: मुल्कों के बीच इंसान की खींची सरहद की परवाह पंछी नहीं किया करते। यहीं वजह है कि हस्तिनापुर सेंचुरी में गत वर्षो की भांति इस वर्ष भी समय से पहले प्रवासी पक्षियों ने अपना घरौंदा बनाना शुरू कर दिया है। चार माह यहां बिताने के बाद मार्च में यह पक्षी फिर से अपने वतन लौट जाएंगे।

बता दें कि हस्तिनापुर में वन्यजीव विहार सेंचुरी क्षेत्र काफी बड़े क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इस क्षेत्र से गुजर रही गंगा नदी के आसपास हर साल विदेशी मेहमान भारी संख्या में पहुंचते है। मौसम में गर्माहट गायब होने के साथ ही हर दिन इसमें तब्दीली हो रही है। ठंड ने दस्तक देना शुरू कर दिया है। ऐसे में विदेशी पक्षियों ने भी एक बार फिर से भारत की ओर रुख करना शुरू कर दिया है।

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हस्तिनापुर की सेंचुरी में विदेशी पक्षियों ने आना शुरू कर दिया है। साइबेरिया व अन्य देशों से बड़ी संख्या में विदेशी पक्षी भोजन की तलाश में गंगा किनारे पहुंचते हैं। ये पक्षी अब कई महीनों तक देश में ही रहेंगे। ये मुख्य रूप से गंगा के तटीय इलाकों व वहां के आसपास के खादर क्षेत्र में देखे जाते हैं। इनमें मेरठ के हस्तिनापुर से लेकर प्रयागराज और वाराणसी समेत अन्य प्रमुख जिलों में इनकी आमद होती है।

दूसरे देशों से उड़ान भरकर यहां काफी संख्या में अलग-अलग अनोखे परिंदे आते हैं। जिन्हें यहां खूब अठखेलियां करते देखा जा सकता है। विशेष तौर से सारस, क्रेन, शॉक्लर, बार हेडेड गिद्ध, रीवर टर्न, ब्रह्मी डक सहित किंगफिशर, कॉमन टेल, कॉम्ब बतख जैसे दर्जनों प्रजाति के विदेशी पक्षी बड़ी संख्या में यहां पूर्व में पहुंचते रहे हैं।

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इनमें से अधिकतर प्रजाति के पक्षी अब यहां आ भी चुके हैं। डीएफओ राजेश कुमार का कहना है कि इस वर्ष विदेशी पक्षियों ने समय से पहले हस्तिनापुर में दस्तक देना शुरू कर दिया है। नवंबर के दूसरे सप्ताह तक यह संख्या और बढ़ जाएगी।

पसंद है गंगा का किनारा

वन्य जीव विहार मेरठ, मुजफ्फरनागर और बिजनौर सहित पांच जिलों की सीमाओं में है। हस्तिनापुर क्षेत्र में गंगा व कई दलदली झीलों में मेहमान परिंदों की आमद होती है। ये गंगा किनारे के शांत माहौल में ज्यादा देखे जाते हैं।

सात से 10 दिन करते हैं सफर

प्रवासी पक्षी 7 से 10 दिन की यात्रा कर मखदूमपुर सहित देश के अन्य हिस्सों में पहुंचते हैं। खास बात यह है ये पक्षी हर बार एक ही रास्ता प्रयोग करते हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि बर्फ से ढके हिमालय पर्वत का क्षेत्र यह पक्षी तीन दिन में पार करते हैं। करीब 10 हजार किलोमीटर से भी अधिक का सफर यह विदेशी मेहमान तय करते हैं।

आसमान में दिखता है अनुशासन

अपने देश से चलते समय यह विदेशी मेहमान एक आकृति में दूरी तय करते हैं। ये आकृतियां ज्यादातर वी-शेप में होती हैं। सबसे आगे ग्रुप का मुखिया होता है। बीच में बच्चे और पीछे वयस्क पक्षी होते हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि ये पक्षी हवा, धूप और दबाव के अनुसार अपनी उड़ने की आकृतियों में बदलाव करते हैं।

शिकार का अनूठा तरीका

प्रवासी पक्षियों में कुछ इकट्ठा होकर मछलियों के झुंड को घेरकर बंद जगह पर ले जाकर उनका शिकार करते हैं, लेकिन इन्हीं पक्षियों में किंगफिशर के शिकार करने का अनूठा तरीका है।

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यह अपने शिकार के ऊपर मजबूत पकड़ न होने तक उड़ता रहता है। शिकार चोंच में दबाते ही तुरंत उड़ जाता है। वहीं साइबेरियन क्रेन ज्यादातर पानी के बजाए गंगातट से सटे खेतों में अपने खाना का इंतजाम करती हैं।

सुबह शिकार फिर पूरे दिन आराम

प्रवासी पक्षी सुबह होते ही शिकार की तलाश में जुट जाते हैं। क्योंकि सुबह के समय दूसरे पक्षियों का हस्तक्षेप कम होता है। उसके बाद तट किनारे गर्म रेत पर आराम करते नजर आते हैं। तेज हवा होने या धूप कम निकलने पर ये मेहमान अपने ठिकानों पर छिपने के लिए निकल जाते हैं।

छिछला पानी, खुला मैदान है पसंद

गंगा किनारे लोगों की आवाजाही वाले स्थान को कुछ प्रवासी पक्षी पसंद नहीं करते हैं। इन्हें शांत वातावरण चाहिए। ये ऐसे स्थान भी खोजते हैं। जहां खुला मैदान और छिछला पानी हो। जहां उन्हें खाने के लिए आसानी से मछलियां, कीड़े मिल सकें। खुला मैदान उन्हें अपने शत्रु से सतर्क करता है। हल्की से आहट पर ये उड़ जाते हैं।

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