विश्वविख्यात लेखिका हैरियट ऐलिजाबेथ स्टो ने अपने प्रसिद्ध उपन्यास ‘अंकल टॉम्स केबिन’ (टॉम काका की कुटिया) किन परिस्थितियों के बीच लिखी, यह बहुत कम लोग जानते हैं। आम जानकारी तो इतनी ही है कि इस महान रचना ने अमेरिका से दासता की अमानवीय प्रथा खत्म करने में अहम भूमिका निभाई थी।
स्टो ने अपनी भाभी के एक पत्र का उत्तर देते हुए बताया था कि किन विपरीत परिस्थितियों में उन्होंने इसकी रचना की। उन्होंने पत्र में लिखा, चूल्हा-चौका, कपड़े धोना, सिलाई, जूते गांठना जैसे कामों की व्यस्तता बनी ही रहती है। बच्चों के लिए तैयारी करनी होती है। दिन भर सिपाही की तरह ड्यूटी देनी पड़ती है।
छोटा बच्चा मेरे पास ही सोता है। वह जब तक सो नहीं जाता, कुछ भी लिख नहीं सकती। गरीबी और काम का दबाव बहुत है। फिर भी भाभी, सच मानना, मेरे मन में गुलामी के खिलाफ आग धधक रही है, सो जिंदा रही तो कुछ ऐसा जरूर लिखूंगी, जो अमेरिका के सिर से दासता को लादे रहने का कलंक छुड़ा सके।
गरीबी और कठिनाइयों के बीच भी मनुष्य अपने भीतर की प्रेरणा से अपने समय को बदलने में थोड़ी-बहुत भूमिका निभा सकता है। हैरियट स्टो की यह बात बिल्कुल सही निकली। उनकी यह किताब अपने समय की बेस्ट सेलर साबित हुई। इसने अश्वेतों के जीवन को लेकर श्वेतों के बीच फैले कई तरह के भ्रम दूर किए।
जब गुलामी के सवाल पर अमेरिका में गृह युद्ध शुरू हुआ तो अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन स्टो से मिले। उन्हें देखते ही लिंकन के मुंह से निकला, तो यही है वह छोटी महिला, जिसने यह महान युद्ध लड़ने की प्रेरणा दी।
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