बच्चों में आक्रामकता के सुधार-उपचार के लिए माता, पिता तथा परिवार के अन्य सदस्यों के साथ ही शिक्षकों का सहयोग भी आवश्यक है। बच्चों की सोच, मानसिकता, व्यवहार, व्यक्तित्व पर घर के लालन-पालन तथा माहौल का बहुत बड़ा हाथ माना जाता है। अत्यधिक लाड़-प्यार तथा अत्यधिक डांट-फटकार दोनों ही उसे उग्र बना सकते हैं। घर का वातावरण शांत होना चाहिए तथा वहां उन्हें सुरक्षित महसूस करने की बात सोचने का माहौल होना चाहिए।
कुछ बच्चे शांत एवं सहनशील होते हैं जबकि कुछ का स्वभाव उग्र होता है। वे आसानी से या बिना कारण ही उत्तेजित हो उठते हैं और आक्रामक बनकर मार-पीट तक कर बैठते हैं। अगर यह व्यवहार कुछ दिनों तक ही बना रहता है तो कोई बात नहीं और ऐसा व्यवहार सदैव बना रहे तो उसे मनोरोग का कारण ही समझा जाता है।
हर परिवार, समाज, सभ्यता में व्यवहार की कुछ मर्यादाएं, मापदंड होते हैं। किसी समाज, परिवार में क्या मान्य है और क्या अमान्य है या क्या असामाजिक है, इसके मापदंड अन्य की अपेक्षा कड़े होते हैं और कुछ में लचीले। लचीला व्यवहार, मान्यताएं होने से सहनशीलता आती है जबकि रूढ़िवादी होने से कट्टरवादी हो जाते हैं। सामान्यत: गुणसूत्रों, हार्मोन तथा लालन-पालन के कारण लडकों का स्वभाव लड़कियों से उग्र होता है।
आक्रामक उग्र व्यवहार रोग की शुरुआत प्राय: 8-10 वर्ष की आयु में ही हो जाती है। उग्र, उपद्रवी व्यवहार करने वाले बच्चों का स्वभाव कुछ हद तक पारिवारिक होता है। इनका उग्र स्वभाव बिना किसी स्पष्ट कारण के शुरू होता है। वे तोड़-फोड़, उपद्रव, लड़ाई-झगड़े में लिप्त रहने लगते हैं। उग्र आक्रामक व्यवहार का सबसे रौद्र रूप 10-16 वर्ष की आयु में पाया जाता है। इस तरह का उपद्रवी स्वभाव लड़कों में लड़कियों से 7-8 गुना अधिक पाया जाता है।
अध्ययनों से पता चला है कि उग्र-आक्रामक स्वभाव के बच्चों में माता या पिता का अधिक कठोर अनुशासन एक अहम कारण होता है। अक्सर इनकी माताएं शुरू से ही बच्चों के असामान्य गलत व्यवहार को छिपाने का प्रयास करती हैं। पिता या अन्य के समक्ष झूठ बोलकर बच्चों को सजा से बचाने का प्रयास करती हैं। ऐसे बच्चों का पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगता और उनका स्वभाव दिन-प्रतिदिन उग्र एवं आक्रामक होता चला जाता है।
उग्र स्वभाव धीरे धीरे विकसित होकर बढ़ने लगता है। ऐसे बच्चे बिना कारण दूसरों को छेड़ते हैं, परेशान करते हैं, लड़ाई करते हैं तथा दूसरे के सामान को नुकसान पहुंचाते हैं। लड़ाई में पत्थर, डंडे, चाकू, लाठी आदि का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इनको घर, स्कूल या समाज के अन्य सामान्य कार्यों को करने में दिक्कत होती है। वे अपने गलत व्यवहार पर कोई दु:ख या पश्चाताप नहीं होता। अनेक रोगियों में सेक्सगत दुर्व्यवहार भी पनपने लग जाता है।
बच्चों के उग्र या आक्रामक व्यवहार के अनेक कारण होते हैं किंतु सबसे प्रमुख कारण परिवार और घर के वातावरण को ही माना जाता है। परिवार और घर के वातावरण का गहरा प्रभाव बच्चों पर पड़ना लाजिमी है। जिस परिवार में आपस में मनोविचारों, भावनाओं का आदान-प्रदान नहीं होता, बच्चे अपने मनोविचारों को नहीं कह पाते वे कुंठित रहते हैं, तब उनमें उग्र व्यावहारिक रोग होने की अधिक संभावना रहती है। जिस परिवार में अनेक बच्चे हैं, बड़ा परिवार है, तो उन बच्चों में अनैतिक, असामाजिक व्यवहारग्रस्तता की संभावना अधिक रहती है।
अगर घर का माहौल अशांत है, कलह होता रहता है, माता-पिता का व्यवहार अनैतिक है, अवसादग्रस्त है, अगर वे सही ढंग से बच्चे का पालन-पोषण नहीं करते हैं, बच्चों को अत्यधिक प्रताड़ना दी जाती है, उन्हें मारा-पीटा जाता है तो बच्चे उग्र, आक्र ामक एवं असामाजिक हो सकते हैं।
अगर बच्चे कम बुद्धि के हैं, उनकी सीखने-समझने की क्षमता, सोचने की क्षमता कम है तो भी उनके असामाजिक होने की प्रबल संभावना होती है। अगर बच्चों को असामाजिक कार्य करने के बाद समझाने के स्थान पर निरादर, तिरस्कार किया जाता है तो उनमें और भी अधिक अनैतिक, असामाजिक कार्य करने की भावना बलवती हो जाती है क्योंकि उनमें घर, स्कूल, समाज आदि का भय समाप्त हो जाता है।
बच्चों में आक्रामकता के सुधार-उपचार के लिए माता, पिता तथा परिवार के अन्य सदस्यों के साथ ही शिक्षकों का सहयोग भी आवश्यक है। बच्चों की सोच, मानसिकता, व्यवहार, व्यक्तित्व पर घर के लालन-पालन तथा माहौल का बहुत बड़ा हाथ माना जाता है। अत्यधिक लाड़-प्यार तथा अत्यधिक डांट-फटकार दोनों ही उसे उग्र बना सकते हैं। घर का वातावरण शांत होना चाहिए तथा वहां उन्हें सुरक्षित महसूस करने की बात सोचने का माहौल होना चाहिए।
स्कूल में बच्चों को सही माहौल या वातावरण में शिक्षा मिलनी चाहिए। वहां उन्हें सामाजिक मयार्दाओं का पालन करना, सही व्यवहार करना सिखाना चाहिए। स्कूल का अनुशासन भी सही होना चाहिए। अगर माता, पिता, घर के अन्य सदस्य तथा शिक्षक बच्चों के साथ सही व्यवहार करते हैं तो उनके उग्र एवं आक्रामक व्यवहार में परिवर्तन लाया जा सकता है।
माता-पिता को बच्चों के लिए पर्याप्त समय देना चाहिए तथा उन्हें उनकी रूचि के अनुसार कलात्मक विषयों में लगाना चाहिए। टेलीविजन, कॉमिक्स, इन्टरनेट, फिल्मों का गहरा प्रभाव बच्चों के मन पर पड़ता है। अगर वे हिंसक कार्यक्र म देखते हैं तो उनका स्वभाव भी वैसा ही बन सकता है।
बच्चों के असामान्य व्यवहार को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए क्योंकि हो सकता है कि वे मनोरोग, सिजोफ्रेनिया से ग्रस्त हो रहे हों। शुरूआत में ही इस रोग का उपचार हो सकता है।
आरती रानी