Friday, March 29, 2024
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एंबुलेंस चालकों की चांदी, मुंह मांगी रकम कर रहे वसूली

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जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: कोरोना महामारी के कारण चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है। आम आदमी से लेकर वीआईपी तक सभी परेशान हैं। कोई न कोई अपने परिवार वाले यह अपने सगे संबंधी के लिये इलाज व अन्य आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति के लिये लगा हुआ है। ऐसे में एंबुलेंस संचालकों की चांदी कट रही है।

उन्होंने आपदा में भी अवसर तलाश लिया है। एंबुलेंस संचालक मरीजों और उनके तीमारदारों से मुंह मांगे रुपये वसूल रहे हैं। हालात इतने खराब हैं कि अगर आपको अपना मरीज मेरठ से दिल्ली तक भी ले जाना है तो आपको 50 हजार रुपये देने होंगे।

जिले में सरकारी एंबुलेंस की संख्या इतनी नहीं है, जितने वर्तमान में मरीज हो चुके हैं। एंबुलेंस खाली ही नहीं है सभी में कोई न कोई मरीज होता है। जिसे जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाने की लगी होती है। 108 हो या कोई ओर सभी फुल चल रही हैं। लोग फोन मिलाते हैं, लेकिन एंबुलेंस नहीं पहुंचती।

इसका फायदा निजी एंबुलेंस वाले उठा रहे हैं। कोरोना महामारी से पहले निजी एंबुलेंस वाले मरीजों को अपनी साठगांठ वाले अस्पतालों में भर्ती कराते थे, लेकिन अब अन्य बीमारियों के मरीजों की संख्या में तो कमी है, लेकिन कोरोना के मरीजों की संख्या दिन-पर-दिन बढ़ी है। इसके कारण मरीजों की मौते भी अधिक हो रही हैं। यहां निजी एंबुलेंस संचालकों की चांदी कट रही है।

50 किमी के ले रहे 50 हजार

निजी एंबुलेंस संचालक लोगों की जेब पर डाका डालने में लगे हैं। एंबुलेंस में आॅक्सीजन व अन्य सुविधाएं होती हैं जिसका फायदा वह उठा रहे हैं। बता दें कि प्रतिदिन कई मरीज मेरठ, बागपत, बड़ौत, बुलंदशहर आदि जगहों से लाये जाते हैं और यहां से ले भी जाए जाते हैं। ऐसे में आम दिनों में एक एंबुलेंस चालक मेरठ से बुलंदशहर के लिये चार से पांच हजार रुपये लेता था, लेकिन अब वह इतने ही सफर के 30 से 50 हजार रुपये ले रहा है। मरीजों के तीमारदार भी क्या करें वह मजबूरी में एंबुलेंस चालकों को इतने रुपये दे भी रहे हैं।

मेडिकल इमरजेंसी के बाहर दलाल करा रहे सेटिंग

मेडिकल इमरजेंसी हो या अन्य अस्पताल यहां रोजाना कई मौते हो रही हैं। इसके चलते यहां एंबुलेंसों की भी भीड़ लगी रहती है। एंबुलेंस संचालकों को इस बात का इंतजार रहता है कि कब कौन-सा मरीज मर जाए और वह उसके बदले उनके परिजनों से रुपये वसूले। यहां एंबुलेंस संचालकों की लाइन लगी रहती है। इनके बीच में एक दलाल भी होता है जो मरीज से बात कर एंबुलेंस बुक कराता है।

मेडिकल पर अगर कोई एंबुलेंस लेकर आता है तो उसे वहां मरीज छोड़ कर चले जाना चाहिए, लेकिन यहां हालात ऐसे नहीं है। यहां तो निजी एंबुलेंस खाली खड़ी रहती हैं। इस इंतजार में कि कब कोई आ जाये और वह उससे रुपये ऐंठे। रोजाना यहां परिजन अपने मरीज या शव को लेकर जाने की बात करते हैं।

लोकल में भी चार हजार रुपये से कम नहीं
अगर मेरठ के मेरठ में मेडिकल से सूरजकुंड यहां किसी अन्य स्थान पर ले जाने की बात करें तो यहां भी एंबुलेंस चालक मुंह मांगे रुपये वसूल रहे हैं। सूरजकुंड तक के लिये ही वह तीन से चार हजार रुपये की वसूली करते हैं। आम आदमी से लेकर सभी परेशान हैं, लेकिन इस ओर कोई ध्यान देने वाला नहीं है और न ही कोई नियम कायदे एंबुलेंस चालकों पर लागू हो पा रहे हैं।

सही उपचार न मिलने से मरीजों को निकाल रहे तीमारदार

प्रदेश सरकार द्वारा भले ही सरकारी अस्पतालों में बेहतर सुविधाओं के दावे करते हो, लेकिन जमीनी स्तर पर सच्चाई उसके उल्टी दिखाई देती है। कुछ इसी तरह का नजारा मेडिकल में भी देखने को मिला है। जहां हर रोज हंगामे होते रहते हैं। इतना ही नहीं अब तो तीमारदारों ने अपने मरीजों को भी वहां से शिफ्ट करना शुरू कर दिया है। क्योंकि तीमारदारों का कहना है कि अस्पताल प्रशासन द्वारा बिल्कुल भी मरीजों की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता।

24 घंटों में भी डॉक्टर मरीजों को देखने नहीं आता, ऐसे में मरीज के क्या हालात है, कैसे पता चले। इसलिए वह अपने मरीजों को मेडिकल अस्पताल से निजी अस्पतालों में शिफ्ट करने के लिए मजबूर है। तीमारदार महेश ने कहा कि भले ही प्राइवेट अस्पताल में कर्जा लेकर अपने मरीज को उपचार दिलाना पड़े। मगर यह उम्मीद तो रहेगी कि मरीज की जान बच जाएगी।

क्योंकि मेडिकल में जब डॉक्टर देखने ही नहीं आ रहे तो कैसे बेहतर स्वास्थ्य सेवा मिल पाएगी। वहीं, दूसरी ओर बुलंदशहर से आए गिरिराज पंचोरी ने कहा कि उन्होंने जैसे-तैसे करके अपने मरीज को भर्ती कराया है, लेकिन अब डॉक्टर उनको देखने नहीं आते। ऐसे में उनको तो जानकारी है नहीं कि मरीज ठीक है या नहीं इसलिए वह भी अपने मरीज को यहां से मरीज को शिफ्ट करा रहे हैं।

नये मरीज खा रहे धक्के

जिला प्रशासन द्वारा मरीजों को भर्ती करने के लिए अधिकारियों की भी ड्यूटी लगा दी गई है, लेकिन अधिकारियों द्वारा मरीजों को भर्ती कराने में उतनी तवज्जो नहीं दी जाती है। वह सीधे संबंधित अधिकारी से बात करने के लिए कह देते हैं। जिसके बाद मरीज के तीमारदार खुद जाकर डॉक्टर से बात करता है, लेकिन उन्हें धक्के पर धक्के मिलते हैं। कुछ इसी तरीके से देखने को मिला। तीमारदार कबीर अपने मरीज को भर्ती कराने के लिए मेडिकल पहुंचे मगर मेडिकल प्रशासन ने भर्ती नहीं किया।

घंटों तक जब बात नहीं बनी तो वह निजी अस्पताल के लिए अपने मरीज को भर्ती करने पहुंचे। मेरठ के मेडिकल में पश्चिम उत्तर प्रदेश के अधिकतर जिलों के मरीज भर्ती होने के लिए आते हैं। मगर जिस प्रकार की परिस्थिति उत्पन्न हो रही है, उसमें मेडिकल में मरीजों को भर्ती नहीं किया था। अगर भर्ती करवा लिया जाए तो डॉक्टर जल्दी से मरीजों को देखने के लिए नहीं पहुंचे जिससे तीमारदारों में भी रोष देखने को मिल रहा है।

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