- कोई नौकरी, किसी को बनवाना है मकान
- भोलेनाथ के प्रति लोगों का है अटूट विश्वास
- हर की पौड़ी से पैदल ला रहे गंगाजल 12 से 30 फीट की है कांवड़
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: सावन का यह पूरा माह उमंग, उल्लास व खुशी से भरपूर रहता है। जहां इस माह में भगवान शिव किसानों को बरसात कर उनके खेतों को सीचते हैं। वहीं दूसरी ओर भोलेनाथ से भक्त अपनी मनोकामना पूरी कराने के लिए उनके द्वार अलग-अलग तरीकों से मनोकामना पूर्ण कराने के लिए जाते हैं। भक्ति और आस्था का यह नजारा ऐसा है कि मनोकामना पूरी होने की आस मन में संजोकर आस्था की डगर पर कदम बढ़ाते चले आ रहे शिवभक्तों का सैलाब लगातार बढ़ता जा रहा है।
किसी के मन में मनोकामना पूरी होने की खुशी है तो किसी के मन में मनोकामना पूरी होने की पूरी उम्मीद है। इसी आस्था व श्रद्धा के वशीभूत होकर शिवभक्त तपस्या के साथ कांवड़ ला रहे हैं। जनवाणी टीम ने जब हरिद्वार से कांवड़ ला रहे कांवड़ियों से बातचीत की तो उन्होंने अपनी बात कुछ तरह साझा की।
मोदीनगर निवासी पिंकी ने बताया कि वह चार साल से लगातार कांवड़ ला रही है। इस वर्ष कांवड़ शिविरों में गत वर्षों से अधिक सुविधाएं कांवड़ियों को दी जा रही है। वह परिवार में सुख शांति के लिए कांवड़ लाती हैं, लेकिन इस वर्ष वह बच्चे के लिए कांवड़ लेकर आई है, क्योंकि जबसे वह हुआ तब से ही बीमार रहता है। गत वर्ष उनकी मनोकामना पूरी हो गई थी, जिसके बाद इस वर्ष वह कांवड़ लेने आए थे।
एक से बढ़कर एक सुंदर कांवड़
भोलेनाथ की भक्ति के साथ-साथ शिवभक्त देश, प्रेम का अनोखा संदेश दे रहे हैं। ऐसे में कोई सुंदर व अनोखी कांवड़ बनाकर जल लेकर आ रहा हैं तो कोई मंदिर तो कोई 131 फीट का तिरंगा लेकर चल रहा है। कांवड़ियों के कंधों पर गंगाजल और मन में भगवान शिव के प्रति दृढ़ संकल्प है। कांवड़ियां कई तरह की कांवड़ लेकर शिवालयों की ओर बढ़ रहे हैं। जिसमें कंधे पर लाने वाली सामान्य व कठिन कांवड़, डाक कांवड़, खड़ी कांवड़ और दंडी कांवड़ मुख्य रूप से हैं।
इस वर्ष कांवड़ियों ने बढ़ाई गंगाजल की मात्रा
कांवड़ यात्रा में हर साल कुछ न कुछ बदलाव देखने को मिलता है। इस बार कांवड़ यात्रा में भोले के भक्त भारी भरकम कांवड़ कंधों पर उठाए हुए हैं। युवाओं के साथ-साथ बड़ी उम्र के कांवड़ियां भी इस वर्ष कलश कांवड़ लेकर हरिद्वार से आए रहे हैं। देखने में आ रहा है कि इस वर्ष गंगाजल की मात्रा बढ़ाने पर कांवड़ियों ने अधिक जोर दिया है। जिसके चलते बड़े कलशों का प्रयोग किया गया है।
नन्हें पांव भी चुन रहे हैं आस्था की डगर
कांवड़ के दौरान छोटे बच्चों में भी उत्साह देखने को मिला। कम उम्र में उनके अंदर भगवान शिव के प्रति जो भक्ति भाव देखने को मिल रहा है, वह अलग ही है। बुलंदशहर से चाचा के साथ कांवड़ ला रही पांच वर्षीय सोनम ने बताया कि वह दो साल से कांवड़ ला रही है। चाचा को कांवड़ लेने जाने पर वह हर साल जिद करती थी, लेकिन दो साल से कांवड़ ला रही है। वहीं, गाजियाबाद निवासी विजय छह साल के है और वह भी पिता के साथ तीन वर्ष से कांवड़ ला रहे है। गौर करने वाली बात ये है कि विजय बोल नहीं सकते हैं। उनका भोलेनाथ पर विश्वास है कि वह उनकी जरूर सुनेंगे और वह बोल भी सकेंगे।
अलीगढ़ निवासी राजेंद्री ने बताया कि वह 12 साल से कांवड़ ला रही है और हर साल वह गांव और परिवार की सुख शांति के लिए कांवड़ लाती है। सावन महीना भोले की भक्ति का होता है। इसलिए वह इस माह में भोलेबाबा को मनाने का काम जरूर करती है। बच्चों की शादी हो चुकी है। अब सुख शांति से जीवन बिताना चाहती है। बुलंदशहर निवासी सविता ने बताया कि भोले की भक्ति करने में अलग ही मन लगता है। वह पांच साल से कांवड़ ला रही है। इस बार चारों ओर केसरियां रंग उमड़ा हुआ है।
जिससे रास्ता का सफर पूरा करने में आसानी हो रही है। भोले के जयकारें मन में और भी उमंग भरने का काम कर रहे हैं। जिससे पैरों में पड़े छाले भी कुछ मायने नहीं रख पा रहे हैं। दिल्ली निवासी कृष्णा 20 साल की उम्र से लगातार कांवड़ ला रही है, उनका कहना है कि भगवान शिव की आस्था और श्रद्धा के सामने शरीर की सभी परेशानियां छोटी पड़ जाती है। वह भगवान शिव की निरंतर पूजा करती है।