Tuesday, July 9, 2024
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घंटीनुमा घोंसले बनाते जल मकड़ी

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BALWANI


किरण भास्कर |

कई ऐसी मकड़ियां होती हैं जो पानी में रहती हैं। जलीय मकड़ी एकमात्र पूरी दुनिया में एक ऐसी मकड़ी है जो पूरे जीवन पानी के भीतर रहती है। उनके गिल्स नहीं होते। लेकिन वे पानी के भीतर रहकर आसानी से सांस ले सकती हैं। सांस लेने के लिए वह अपने घोंसले से पानी की सतह पर बाहर आकर हवा के बुलबुलों को इकट्ठा करके पानी की सतह में नीचे ले जाती है और उसके बाद वह जब जरूरत हो इन बुलबुलों में मौजूद हवा के द्वारा सांस ले सकती है।

जलीय मकड़ी के शरीर पर छोटे बाल होते हैं जिनमें वह सांस लेने के लिए वायु को बंद किए रहती है। इनके माध्यम से वह पानी की गहराई में जाकर सांस लेती है। जलीय मकड़ी पानी की ऊपरी सतह पर वैलवेट ग्रे रंग की दिखायी देती है। लेकिन जिस दौरान यह पानी में जाती है इसके शरीर के इर्दगिर्द मौजूद हवा के कारण यह सुनहरे रंग की दिखायी देती है। यह कुछ उन गिनी चुनी मकड़ियों में शामिल होती है जिनमें नर मकड़ी मादा मकड़ी से बड़ी होती है। यह तालाबों, मंद गति से बहने वाले झरनों, कम गहराई वाली झीलों में पायी जाती है। यह अधिकतर वहां रहना पसंद करती है जहां पानी में पौधों की भरमार होती है।

नर जल मकड़ी की लंबाई 7.8 से 18.7 मिलीमीटर होती है जबकि मादा जल मकड़ी 7.8 से 13.1 मिलीमीटर लंबी होती है। नर जल मकड़ी शिकार के लिए लंबे समय तक पानी में सक्रिय रहती है। जिसके कारण यह मादा की तुलना में ज्यादा लंबी होती हैं इसके अलावा ऐसा माना जाता है कि मादा जल मकड़ी अंडे देने के लिए घोंसला बनाने की जद्दोजहद में उलझी रहती है। मादा जल मकड़ी अपने घोंसलों में मौजूद अंडों को सांस लेने के लिए वायु उपलब्ध कराने के लिए लगातार प्रयासरत रहती हैं जिसकी वजह से उसे पानी की सतह से कई बार ऊपर आना पड़ता है। मादा जल मकड़ी की तुलना में नर जल मकड़ी की आगे की दो टांगे बड़ी होती हैं। जिसके कारण वह पानी में लंबी दूरी की छलांग लगा सकने में सक्षम होते हैं।

जलीय मकड़ी दिन के समय हवा के बुलबुले वाले अपने घोंसले में रहती है। इस समय इसके आगे के दो पैर घंटीनुमा घोंसले के द्वार से बाहर निकले रहते हैं। इसका शिकार जैसे ही इसके पास से गुजरता है, यह अचानक अपने घोंसले से बाहर आती है और उसे झपटकर पकड़ लेती है तथा घोंसले के भीतर आ जाती है।

जलीय मकड़ी के घोंसले के रेशम के धागे इसे शिकार करने में विशेष सहयोग करते हैं। ये धागे जलीय पौधों की शाखाओं तथा इनके आस-पास तक फैले रहते हैं अत: जैसे ही कोई शिकार इससे टकराता है जलीय मकड़ी को इसकी सूचना मिल जाती है और वह तेजी से आकर शिकार को दबोच लेती है तथा अपने घोंसले में ले जाकर आराम से खाती है। जलीय मकड़ी बड़ी संवेदनशील होती है। इसे पानी में होने वाली साधारण-सी हलचल की तुरंत जानकारी मिल जाती है अत: यदि दिन के समय कभी कोई जीव पानी की सतह पर गिरता है तो इसे तुरंत पता चल जाता है और यह सतह पर आकर उसे पकड़ लेती है और अपने घोंसले में ले जाकर आराम से खाती है।

जलीय मकड़ी दिन के समय तो अपने घोंसले में रहती है किंतु रात होते ही यह बाहर निकलती है और शिकार की खोज करती है। इसकी भोजन संबंधी प्रमुख विशेषता यह है कि यह शिकार दिन में करे अथवा रात में, अपने घोंसले के पास करे अथवा दूर करे, सभी स्थितियों में यह अपने शिकार को घोंसले में ही लाकर खाती है। मकड़ियों का समागम बड़ा रोमांचक होता है। इनमें नर की स्थिति बड़ी दयनीय होती है तथा सामान्यतया एक नर जीवन में केवल एक बार ही समागम कर पाता है क्योंकि समागम के तुरंत बाद मादा मकड़ी बड़ी उग्र हो उठती है और नर के टुकड़े-टुकड़े कर डालती है तथा खा जाती है मगर जलीय मकड़ी में ऐसा नहीं होता।

मादा जलीय मकड़ी समागम के बाद अपने घोंसले के भीतर ही पचास से लेकर एक सौ तक अंडे देती है। इसके अंडे एक रेशमी थैले में भरे होते हैं तथा काफी हल्के होते हैं। हल्के होने के कारण ये घोंसले के ऊपर भाग में आ जाते हैं। चार सप्ताह के मध्य इसके अंडे परिपक्व होकर फूटते हैं और इनसे छोटे-छोटे बच्चे निकलते हैं। मादा जलीय मकड़ी रेशमी थैले से बाहर निकलने में अपने बच्चों की कोई सहायता नहीं करती। इसके बच्चे स्वयं ही रेशमी थैले को फाड़कर बाहर आते हैं किंतु घोंसले के बाहर न जाकर कुछ सप्ताह तक घोंसले के भीतर ही रहते हैं। इस मध्य दो बार निर्मोचन (माउलिंग) करते हैं जिससे बड़ी तेजी से इनका शारीरिक विकास होता है।

जल स्रोत की तलाश

जलीय मकड़ी के बच्चे नये जल स्रोत की तलाश में बिखर जाते हैं अत: इनकी मृत्यु दर अधिक है। इसके साथ ही विभिन्न प्रकार की मछलियां, मेढक, बैक स्वीमर, डेज्गन फ्लाई और गुबरैले तथा इनके लारवे एवं अन्य बहुत से जलीय कीड़े-मकोड़े इनका शिकार करते हैं जिससे इनकी संख्या नियंत्रित रहती है। जलीय मकड़ियां अपनी ही जाति की छोटी और कमजोर जलीय मकड़ियों को अपना आहार बनाती हैं। इससे इनकी मृत्यु दर और बढ़ जाती है अत: तालाबों में इनकी संख्या अधिक नहीं होने पाती।


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