Monday, February 17, 2025
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नारे का जन्म

Amritvani


यह घटना उस समय की है, जब देश में स्वतंत्रता आंदोलन जोर पकड़ रहा था। उधर अंग्रेज प्रथम विश्वयुद्ध में फंसे थे। मुंबई के गर्वनर लार्ड विलिंग्डन ने इस जंग में भारतीयों की सहायता के लिए ‘युद्ध परिषद’ का आयोजन किया। उसमें लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को भी आमंत्रित किया गया। गर्वनर को आशा थी कि तिलक भी अन्य भारतीय नेताओं की तरह अंग्रेजों को विश्वयुद्ध में हरसंभव मदद देने का वचन देंगे। तिलक मंच पर आए। उन्होंने भाषण प्रारंभ किया, किसी भी बाहरी आक्रमण का प्रतिकार करने के लिए हम भारतीय सदैव सहयोग के लिए तत्पर रहेंगे किंतु ‘स्वराज’ तथा ‘स्वदेश रक्षा’ के प्रश्न पर सरकार को भी स्पष्ट वचन देना चाहिए। ‘स्वराज’ शब्द सुनते ही विलिंग्डन का चेहरा तमतमा उठा। वे अपने स्थान से उठे और बोले, यहां राजनीतिक चर्चा की अनुमति नहीं दी जा सकती। आप हमारी सहायता का आश्वासन दीजिए और बोलिए कि आप हमारे साथ हैं। इस पर तिलक ने कहा, गवर्नर महोदय, स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और यदि आप इस शब्द को सुनने को तैयार नहीं हैं तो मुझ जैसा स्वाभिमानी भारतीय यहां एक क्षण भी उपस्थित नहीं रह सकता। तिलक की बेबाक बातें सुनकर विलिंग्डन दंग रह गए। उन्होंने पूछा, क्या आपके दिमाग में हर समय स्वराज ही गूंजता रहता है? तिलक बोले, बिल्कुल! और यह शब्द तब तक मेरे दिलो-दिमाग पर छाया रहेगा जब तक कि मेरे देश को पूर्ण स्वराज नहीं मिल जाता। कुछ समय बाद तिलक की यह बात स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है एक नारा बन गई,
जिसने देशवासियों में जोश भरने और उन्हें एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई।


janwani address 7

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