अक्टूबर ऐसा दिन है जो भारत के इतिहास में दो अलग-अलग कारणों से अविस्मरणीय बन गया है।आज के ही दिन भारत में लोह पुरुष की संज्ञा से विभूषित, ‘सरदार’ कहे जाने वाले भारत के पहले गृहमंत्री एवं उप प्रधानमंत्री वल्लभभाई पटेल का जन्म हुआ तो वहीं भारत की ‘आयरन लेडी’, तीसरी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या भी आज के ही दिन की गई यानि आज खुशी और गम दोनों को ही याद करने का दिन है। पटेल एवं इंदिरा दृढ़ता के मामले में दोनों ही अपने-अपने कारणों से जाने जाते हैं। यदि वल्लभभाई पटेल ने महात्मा गांधी एवं जवाहरलाल नेहरू के साथ कंधे से कंधा मिलाकर तत्कालीन कांग्रेस द्वारा चलाए जा रहे स्वाधीनता आंदोलन में अविस्मरणीय योगदान दिया तो वहीं इंदिरा ने भी केवल 13 वर्ष की आयु में ही भारत के स्वाधीनता संग्राम में बच्चों के योगदान को रेखांकित करने वाली ‘वानर सेना’ बनाई।फिर पिता के साथ स्वाधीनता आंदोलन में निरंतर सहभागिता की।जहां पटेल ने 562 रियासतों को साम, दाम, दंड, भेद एवं राजनीतिक चातुर्य के साथ स्वाधीन भारत में मिलाया वहीं इंदिरा गांधी ने भी देश की एकता एवं अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिए 1984 में आॅपरेशन ब्लू स्टार जैसा कदम उठाकर अपनी दृढ़ता का परिचय दिया।
अपने प्रधानमंत्रीत्व के दौरान इंदिरा एक सशक्त नेता बनकर उभरीं, जिसने भारत को तीसरी दुनिया के देशों के नायक के रूप में स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।अपने पिता की राह पर चलते हुए उन्होंने जहां समाजवादी शासन तंत्र के देशों के साथ गहरा संबंध स्थापित किया वहीं विश्व के नेताओं के साथ घनिष्ठ व्यक्तिगत संपर्क एवं मित्रता भी की।चाहे वह रूस के ब्रेझनेव हों , मिस्र के अनवर सादात हों या क्यूबा के जनरल कास्त्रो इंदिरा ने सबके साथ भारत के हितों के लिए कार्य किया।फिलीस्तीन को ऐसे समय में समर्थन दिया जब उसके आंदोलन को दबाने कुचलने के लिए इजरायल अमेरिका के साथ मिलकर खड़ा हुआ था।कश्मीर के मुद्दे पर इंदिरा ने पाकिस्तान को न केवल चेतावनी आदि अपितु दृढ़ता के साथ कहा कि केवल भारत का कश्मीर ही हमारा नहीं है अपितु पाक अधिकृत कश्मीर पर भी हमारा हक है और कश्मीर के लोगों को विशेष महत्व देने एवं उन्हें अपने पक्ष में करने के लिए इंदिरा ने निरंतर धारा 370 का दृढ़ता से समर्थन किया ।इंदिरा पर प्रियदर्शनी व लौहमहिला दोनों विशेषण फिट बैठते हैं।जिसे विपक्ष तक ने ह्यह्यदुर्गाह्णह्ण माना था। आनंद भवन में जवाहरलाल व कमला नेहरु की इकलौती पुत्री इंदिरा ने कालांतर में भारतीय राजनीति व विश्व राजनीति के क्षितिज पर अमिट प्रभाव छोड़ा ।
जहां तक पटेल की बात है तो वह प्रधानमंत्री नहीं उप प्रधानमंत्री थे और तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का व्यक्तित्व उस समय बुलंदी पर था उनकी नीतियां नरमपंथी रहकर गुटनिरपेक्ष आंदोलन के माध्यम से देश को आगे ले जाने की थी मगर सरदार पटेल देश को एक सुदृढ़ राष्ट्र के रूप में देखना चाह रहे थे ।कई मुद्दों पर उनके नेहरू जी से मतभेद थे मंत्रिमंडल की बैठकों एवं संसद तक में जिन्हें सरदार पटेल खुलकर व्यक्त करते थे मगर देश के हित के लिए लिए जाने वाले निर्णय में पटेल सदैव उनके साथ रहे। सरदार पटेल बाराडोली के किसान आंदोलन से ‘सरदार’ बने और देशभर में उन्हें प्रधानमंत्री बनाए जाने वाले समर्थन करने वाले लोगों की बहुत बड़ी तादाद थी लेकिन प्रधानमंत्री नेहरू बने।
व्यक्तिगत छवि निर्माण के मामले में इंदिरा गांधी किसी भी हद तक जाने को सदा तैयार रहती थी उनका राजनीतिक प्रबंधन ही था कि कभी ‘इंदिरा इज इंडिया’ का संबोधन दिया गया था। वही इंदिरा, जिसे कामराज व मोरारजी देसाई जैसे ताकतवर नेताओं ने इसलिए प्रधानमंत्री बनने दिया था ताकि उनका राजनैतिक इस्तेमाल अपने हित साधने के लिए किया जा सके। मोम की गुड़िया सी दिखती इंदिरा, जिसे नेहरु परिवार ने फूलों की पंखुड़ियों की तरह संभाल कर पाला था। वही इंदिरा, जिसने 1966 में प्रधानमंत्री बनकर, नई कांग्रेस बना ली थी, और समय के साथ जिसने पुरानी कांग्रेस को दफन कर दिया, ने पाकिस्तान को ऐसा घेरा कि बंगलादेश ही नहीं बनाया वरन पाक के मन में एक भय भर दिया था ।और आज भी पाकिस्तान 1971 के घाव को भूल नहीं पाया है और भारत के रुतबे को देखते हुए खुलकर कुछ कर भी नहीं पाया है जिसकी परिणीति उसके द्वारा लगातार आतंकवादियों को प्रश्रय देकर भारत को परेशान करने की बन गई है।
बेशक इंदिरा हठी किस्म की नेता रहीं लेकिन इसमें भी दो राय नहीं कि उन्होंने भारत को एक मजबूत राष्ट्र के रूप में खड़े करने में बहुत बड़ा योगदान दिया है अब समय आ गया है जब सरकारें अपने राजनीतिक दलों के दायरे से निकलकर कम से कम दिवंगत हो गए नेताओं को उचित सम्मान देने की परंपरा डालें। आज ‘स्टेच्यू आॅफ यूनिटी’ के रूप में भारत का यह बिस्मार्क गुजरात में अपने कद के अनुरूप खड़ा एक नया भारत बनते देख रहा है। सरदार पटेल ने ही आजादी के पूर्व देशी राज्यों को भारत में मिलाने के लिए कार्य शुरू किया था। सरदार पटेल द्वारा रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य है। महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था, ‘रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।’ पहली सरकार बनने पर विदेश विभाग नेहरू ने अपने पास ही रखा।