Tuesday, July 9, 2024
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सभ्य समाज के लिए कलंक है बाल श्रम

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YOGESH KUMAR GOYALप्रतिवर्ष 12 जून को बाल श्रम के प्रति विरोध तथा इसके लिए लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से दुनियाभर में एक खास विषय के साथ ‘बाल श्रम निषेध दिवस’ मनाया जाता है, जो इस वर्ष ‘आइए अपनी प्रतिबद्धताओं पर कार्य करें: बाल श्रम को समाप्त करें!’ विषय के साथ मनाया जा रहा है। यह दिवस मनाने की शुरुआत ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ (आईएलओ) द्वारा वर्ष 2002 में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को बाल श्रम से बाहर निकालकर शिक्षित करने के उद्देश्य से की गई थी। दरअसल बाल श्रम की समस्या पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर चुनौती बनी है। भारत में भी यह समस्या काफी गंभीर है, जो सही मायनों में सभ्य समाज के लिए कलंक है। हाल ही में दो अलग-अलग मामलों में कुल 33 बच्चों को बाल श्रम से मुक्त कराया गया है। एक महत्वपूर्ण छापेमारी अभियान में दिल्ली की दो प्लेसमेंट एजेंसियों से 14 लड़कियों सहित कुल 21 बच्चों को बाल श्रम से मुक्त कराया गया जबकि बिहार में मुजफ्फरपुर रेलवे पुलिस ने एक गिरोह का भंडाभोड़ करते हुए कर्मभूमि एक्सप्रेस से 12 बच्चों को मुक्त कराया, जिन्हें पंजाब और हरियाणा में चावल फैक्टरी तथा दुकानों में काम करने के लिए ले जाया जा रहा था। बच्चों की समस्याओं पर विचार करने के लिए पहला बड़ा अंतर्राष्ट्रीय प्रयास अक्तूबर 1990 में न्यूयार्क में विश्व शिखर सम्मेलन में हुआ था, जिसमें गरीबी, कुपोषण और भुखमरी के शिकार दुनियाभर के करोड़ों बच्चों की समस्याओं पर 151 देशों के प्रतिनिधियों ने विचार-विमर्श किया था। बढ़ती जनसंख्या, निर्धनता, अशिक्षा, बेरोजगारी, खाद्य असुरक्षा, अनाथ, सस्ता श्रम, मौजूदा कानूनों का दृढ़ता से लागू न होना इत्यादि बाल श्रम के अहम कारण हैं। बाल श्रम के ही कारण बच्चे शिक्षा से वंचित हो जाते हैं, उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है, बाल अपराध बढ़ते हैं और भिक्षावृत्ति, मानव अंगों के कारोबार तथा यौन शोषण के लिए उनकी गैरकानूनी खरीद-फरोख्त होती है। आईएलओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्वभर में सोलह करोड़ से भी ज्यादा बच्चे बाल मजदूरी करने को विवश हैं, जिनमें से करीब 7.3 करोड़ बच्चे बहुत बदतर परिस्थितियों में खतरनाक कार्य कर रहे हैं, जिनमें सफाई, निर्माण, कृषि कार्य, खदानों, कारखानों में तथा फेरी वाले व घरेलू सहायक इत्यादि के रूप में कार्य करना शामिल हैं। आईएलओ के अनुसार हाल के वर्षों में खतरनाक श्रम में शामिल 5 से 11 वर्ष की आयु के बच्चों की संख्या बढ़कर करीब दो करोड़ हो गई है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार 15 से 24 वर्ष आयु के 54 करोड़ युवा श्रमिकों में से 3.7 करोड़ बच्चे हैं, जो खतरनाक बाल श्रम का कार्य करते हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत विकास लक्ष्य के तहत हालांकि वर्ष 2025 तक बाल मजदूरी को पूरी तरह से खत्म करने का संकल्प लिया गया है लेकिन पूरी दुनिया में बाल श्रम के आंकड़े जिस प्रकार बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए फिलहाल ऐसा होता संभव नहीं दिखता।

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि दुनियाभर में 13 करोड़ से भी ज्यादा बच्चे किसी न किसी कारण स्कूल नहीं जा पाते। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार श्रम करने वाले 18 वर्ष से कम आयु वालों को बाल श्रमिक माना गया है जबकि आईएलओ के मुताबिक बाल श्रम की उम्र 15 वर्ष तय की गई है। अमेरिका में 12 वर्ष अथवा उससे कम उम्र वालों को बाल श्रमिक माना जाता है जबकि भारतीय संविधान के अनुसार किसी उद्योग, कारखाने या कम्पनी में शारीरिक अथवा मानसिक श्रम करने वाले 5 से 14 वर्ष आयु वाले बच्चों को बाल श्रमिक कहा जाता है। यूनीसेफ के अनुसार दुनियाभर के कुल बाल मजदूरों में 12 फीसदी हिस्सेदारी अकेले भारत की है। हालांकि भारत में बाल श्रम (निषेध व नियमन) अधिनियम 1986 के तहत 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के जीवन एवं स्वास्थ्य के लिए अहितकर माने गए किसी भी प्रकार के अवैध पेशों तथा कई प्रक्रियाओं में नियोजन को निषिद्ध बनाता है। वर्ष 1996 में उच्चतम न्यायालय ने भी अपने फैसले में संघीय और राज्य सरकारों को खतरनाक प्रक्रियाओं तथा पेशों में कार्य करने वाले बच्चों की पहचान करने, उन्हें कार्य से हटाने और गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया था।

यदि मौजूदा समय में बाल श्रम की स्थिति देखें तो करोड़ों बच्चे पढ़ने-लिखने, खेलने-कूदने की उम्र में देशभर के विभिन्न हिस्सों में कालीन, दियासलाई, रत्न पॉलिश, ज्वैलरी, पीतल, कांच, बीड़ी उद्योग, हस्तशिल्प, पत्थर खुदाई, चाय बागान, बाल वेश्यावृत्ति इत्यादि कार्यों में लिप्त हैं। एक ओर जहां श्रम कार्यों में लिप्त बच्चों का बचपन श्रम की भट्ठी में झुलस रहा है, वहीं कम उम्र में खतरनाक कार्यों में लिप्त होने के कारण ऐसे अनेक बच्चों को कई प्रकार की बीमारियां होने का खतरा भी रहता है। खतरनाक कार्यों में संलिप्त होने के कारण बाल श्रमिकों में प्राय: श्वास रोग, टीबी, दमा, रीढ़ की हड्डी की बीमारी, नेत्र रोग, सर्दी-खांसी, सिलिकोसिस, चर्म-रोग, स्नायु संबंधी जटिलता, अत्यधिक उत्तेजना, ऐंठन, तपेदिक जैसी बीमारियां हो जाती हैं। आंकड़ों पर नजर डालें तो देश में कुल बाल मजदूरों में से करीब 80 फीसद बच्चे गांवों से ही हैं और खेती-बाड़ी जैसे कार्यों से लेकर खतरनाक उद्योगों और यहां तक कि वेश्यावृत्ति जैसे शर्मनाक पेशों में भी धकेले गए हैं। बच्चों से श्रमिक के रूप से काम कराने वालों के लिए कानून में दंड का प्रावधान है लेकिन इस दिशा में प्रशासनिक सक्रियता का अभाव स्पष्ट परिलक्षित होता रहा है और यही कारण लाख प्रयासों के बाद भी इस समस्या पर अंकुश नहीं लग पा रहा है।


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