चीन अपनी नापाक हरकतों से बाज आने को तैयार नहीं है। उसने एक बार फिर विवादित नक्शा जारी कर भारत के अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को अपना क्षेत्र बताया है। उसने नए नक्शे में भारत के हिस्सों के अलावा ताइवान और विवादित दक्षिण चीन सागर को भी शामिल किया है। यह पहली बार नहीं है जब चीन ने भारतीय स्थानों का नाम बदलने की कारस्तानी की है। उसने इसी साल अप्रैल महीने में एकतरफा रुप से 11 भारतीय स्थानों का नाम बदल दिया था।इसी तरह का कारनामा वर्ष 2017 और 2021 में भी की थी। भारत के विरोध के बाद उसने सफाई देते हुए तर्क गढ़ा है कि यह उसके कानून के मुताबिक नियमित अभ्यास है। भारत ने चीन को करारा जवाब देते हुए दो टुक कहा है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है।उधर, अमेरिकी कांग्रेस की एक सीनेटरियल समिति भी अरुणाचल प्रदेश को भारत के अभिन्न अंग के रुप में मान्यता दे चुकी है।
इससे चीन की बौखलाहट चार गुना बढ़ गई है। चीन की कुटिल मंशा से स्पष्ट है कि वह भारत के साथ सीमा विवाद सुलझाना नहीं चाहता। उसके इस असंवेदनशील रुख के कारण ही 1976 से चला आ रहा सीमा विवाद किसी तार्किक नतीजे पर नहीं पहुंचा है। वह मैकमोहन रेखा को भी स्वीकारने को तैयार नहीं है।
जबकि ब्रिटिश भारत और तिब्बत ने 1913 में शिमला समझौते के तहत अंतर्राष्ट्रीय सीमा के रुप में मैकमोहन रेखा का निर्धारण किया था। इस सीमा रेखा का निर्धारण हिमालय के सर्वोच्च शिखर तक जाता है। वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी की वास्तविक स्थिति भी कमोबेश यही है। इस क्षेत्र में हिमालय प्राकृतिक सीमा का निर्धारण नहीं करता क्योंकि यहां से अनेक नदियां निकलती और सीमाओं को काटती हैं। वर्तमान स्थिति यह है कि दोनों देश एलएसी पर निगरानी कर रहे हैं।
ऐतिहासिक संदर्भों में जाए तो तिब्बत, भारत और बर्मा की सीमाओं का ठीक से रेखांकन नहीं होने से अक्टुबर, 1913 में शिमला में अंग्रेजी सरकार की देखरेख में चारो देशों के अधिकारियों की बैठक हुई। इस बैठक में तिब्बती प्रतिनिधि ने स्वतंत्र देश के रुप में प्रतिनिधित्व किया और भारत की अंग्रेजी सरकार ने उसे उसी रुप में मान्यता दिया। आधुनिक देश के रुप में भारत के पूर्वोत्तर हिस्से की सीमाएं रेखांकित न होने के कारण दिसंबर 1913 में दूसरी बैठक शिमला में हुई और अंग्रेज प्रतिनिधि जनरल मैक मोहन ने तिब्बत, भारत और बर्मा की सीमा को रेखांकित किया।
आज के अरुणाचल का तवांग क्षेत्र मैकमोहन द्वारा खींची गयी रेखा के दक्षिण में होता था। इसलिए तिब्बती सरकार बार-बार उसपर अपना दावा करती रही। तिब्बत का स्वतंत्र अस्तित्व स्वीकारने से उत्तर से पूर्वोत्तर तक कहीं भी भारत और चीन की सीमा नहीं मिलती थी। इस तरह उत्तरी-पूर्वी सीमा को एक प्राकृतिक सुरक्षा मिली हुई थी।
भारत और चीन के बीच विवाद की वजह अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश की संप्रभुता भी है। पश्चिमी सेक्टर में अक्साई चिन का लगभग 3800 वर्ग किमी भू-भाग चीन के कब्जे में है।
अक्साई चिन जम्मू-कश्मीर के उत्तर-पूर्व में विशाल निर्जन इलाका है। इस क्षेत्र पर भारत का अपना दावा है। लेकिन नियंत्रण चीन का है। दूसरी ओर पूर्वी सेक्टर में चीन अरुणाचल प्रदेश के 90 हजार वर्ग किमी पर अपना दावा कर उसे अपना मानता है। अरुणाचल प्रदेश से चुने गए किसी भारतीय सांसद को वीजा नहीं देता है। भारत की मनाही के बावजूद भी वह कश्मीर के लोगों को स्टेपल वीजा जारी करता रहता है। साथ ही पाकिस्तान से गलबहियां कर वह भारतीय संप्रभुता को भी चुनौती भी परोसता है। पाक अधिकृत कश्मीर में सामरिक रुप से महत्वपूर्ण गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र पर वह अपना वर्चस्व बढ़ा रहा है। यहां तकरीबन 10000 से अधिक चीनी सैनिकों की मौजूदगी बराबर बनी हुई है।
वह इन क्षेत्रों में निर्बाध रुप से हाईस्पीड सड़कें और रेल संपर्कों का जाल बिछा रहा है। सिर्फ इसलिए की भारत तक उसकी पहुंच आसान हो सके। दरअसल चीन की मंशा अरबों रुपये खर्च करके कराकोरम पहाड़ को दो फाड़ करते हुए गवादर के बंदरगाह तक अपनी रेल पहुंच बनानी है ताकि युद्धकाल में जरूरत पड़ने पर वह अपने सैनिकों तक आसानी से रसद पहुंचा सके। वह नेपाल, बंगलादेश और म्यांमार में भी अपना दखल बढ़ा रहा है। वह श्रीलंका में बंदरगाह बना रहा है जो भारतीय सुरक्षा के लिए बेहद खतरनाक है।
चीन अफगानिस्तान में अरबों डालर का निवेश कर तांबे की खदानें चला रहा है। फिलहाल अफगानिस्तान में तालिबार की सरकार है और उसके भारत से रिश्ते मजबूत हंै। भारत अफगानिस्तान के विकास के लिए कई परियोजनाओं के साथ ढेर सारे मानवीय कार्यक्रम चला रहा है। इस कारण अब चीन अलग-थलग पड़़ता जा रहा है। चीन म्यांमार की गैस संसाधनों पर भी कब्जा करने की फिराक में है। अच्छी बात है कि म्यांमार भारत के साथ है।
चीन की बढ़ती आक्रामकता और दुस्साहस को देखते हुए अब उचित होगा कि भारत भी चीन के साथ पूर्व की किसी स्वीकारोक्ति से बंधा न रहे। इसलिए कि चीन जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश दोनों पर अपनी कुदृष्टि गड़ाए है। उसकी कोशिश है कि जम्मू कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश में भारतीय प्रभुसत्ता को अवैध ठहराकर अपना दबदबा कायम किया जाए। इसी रणनीति के तहत वह पिछले कुछ वर्षों से जम्मू-कश्मीर में तैनात भारतीय सैन्य अधिकारियों को वीजा देने से परहेज करता है।
वर्ष पहले उसने प्रस्ताव रखा था कि भारत अगर अरुणाचल प्रदेश के तवांग इलाके को उसे सौंप देता है तो वह बदले में अक्साई चीन का इलाका दे सकता है। लेकिन भारत ने उसके प्रस्ताव को ठुकरा दिया। भारत बीजिंग-इस्लामाबाद के नापाक गठजोड़ का मुंहतोड़ जवाब दे।