Thursday, September 28, 2023
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राम एक रामायण अनेक

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‘रामायन सत कोटि अपारा’ की भांति राम कथा के सागर में डुबकी लगाने वाले कवियों ने ‘राम’ से जितना साक्षात्कार किया, उसे अपने ग्रंथों में ढाल दिया। ‘हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता’ के अनुसार रामकथा के रस से परिपूर्ण सभी ग्रन्थ अपने आप में अलौकिक एवं आध्यात्मिक हैं।

राम कथा के प्रणेता के रूप में ‘वाल्मीकि रामायण’ का नाम सर्वप्रथम लिया जाता है। वाल्मीकि रामायण को ‘स्मृत ग्रन्थ’ माना गया है। इस ग्रन्थ की रचना माता सरस्वती की कृपा से हुई थी। इस ग्रन्थ को ऋतम्भरा प्रज्ञा की देन बताया जाता है। ‘रामायणं’ की रचना संस्कृत भाषा में हुई है। ‘श्री रामचरित मानस’ की रचना गोस्वामी तुलसीदास द्वारा संवत 1633 में संपन्न हुई थी।

अवधी भाषा में रचित इस महाकाव्य की रचना में दो वर्ष, सात महीने छब्बीस दिन लगे थे। इस ग्रन्थ में बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, लंकाकाण्ड, तथा उत्तरकाण्ड के रूप में सात काण्ड हैं। ‘गागर में सागर’ की भांति इस सात काण्डों में ही श्रीराम के सम्पूर्ण चरित्र को समाहित किया गया है।
‘अध्यात्मरामायण’ की रचना महर्षि वेदव्यास द्वारा की गई है। ब्रह्माण्ड पुराण के उत्तरखण्ड के अन्तर्गत एक आख्यान के रूप में इसकी रचना हुई है। इसकी रचना संस्कृत भाषा में की गई है। प्रस्तुत ग्रन्थ में भगवान श्रीराम को ‘आध्यात्मिक तत्व’ माना गया है।

‘आनन्द रामायण’ महर्षि वाल्मीकि की ही रचना है। इस रामायण को भी सारकाण्ड, जन्मकाण्ड, मनोहर काण्ड, राज्य काण्ड आदि काण्डों में बांटा गया है। संस्कृत भाषा में रचित इस रामायण में राजनैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक महत्त्व के साथ ही श्री राम के मयार्दापुरूषत्व की नींव को सुदृढ़ बनाया गया है।

‘अद्भुत रामायण’ की रचना संस्कृत भाषा में की गई है। इस रामायण की रचना भी महर्षि बाल्मीकि द्वारा ही की गई है। इस रामायण में सत्ताइस सर्ग के अन्तर्गत लगभग चौदह हजार श्लोक हैं। इस रामायण में भगवती सीता के महात्म्य को विशेष रूप से बताया गया है। इस रामायण के अनुसार ‘सहस्त्रमुख’ का भी रावण था जो ‘दशमुख’ रावण का बड़ा भाई था। सीता ने महाकाली का रूप धारण करके सहस्त्रमुख रावण का वध कर दिया था।

‘योगवासिष्ठ रामायण’ की रचना भी महर्षि वाल्मीकि द्वारा ही सम्पन्न हुई है। इसे महारामायण, आर्षरामायण, वासिष्ठ रामायण, ज्ञानवासिष्ठ रामायण के नामों से भी जाना जाता है। यह ग्रन्थ वैराग्य प्रकरण, मुमुक्षु व्यवहार प्रकरण, उत्पत्ति प्रकरण, स्थिति प्रकरण, उपशम प्रकरण तथा निर्वाण प्रकरण (पूर्वार्ध एवं उत्तरार्ध) के रूप में छह प्रकरणों में विभक्त है। संस्कृत भाषा में रचित इस रामायण में श्रीराम के मानवीय पक्ष का विस्तार से वर्णन किया गया है।

‘कृत्तिवासरामायण’ की रचना गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म से लगभग सौ वर्ष पहले हुई थी। इस रामायण की भाषा बंगला है। बंगदेश स्थित मनीषी कवि कृत्तिवास द्वारा रचित इस रामायण में भी बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धा काण्ड, उत्तरकाण्ड आदि हैं। इस रामायण में भी सात काण्ड हैं। ‘पयार’ छन्दों में पामचाली गान के रूप में रचित इस ग्रंथ में श्रीराम के उदात्त चरित्रों का बखान किया गया है।

‘रंगनाथ रामायण’ की रचना द्रविड़ भाषा (तेलुगु) में श्री गोनबुद्धराज द्वारा देशज छन्दों में 1380 ई. के आसपास की गई है। इस रामायण युद्धकाण्ड के माध्यम से श्रीराम को महाप्रतापी बताया गया है। रावण के कुकृत्यों की निन्दा के साथ ही उसके गुणों की भी इसमें मुक्त-कण्ठ से प्रशंसा की गई है।

‘विलंका रामायण’ की रचना उड़िया भाषा के आदिकवि श्री शारलादास द्वारा उड़िया भाषा में की गई है। यह रामायण पूर्वखण्ड तथा उत्तरखण्ड के रूप में दो खण्डों में है। शिव-पार्वती के संवाद के रूप में रचित यह रामायण भगवती महिषासुर-मर्दिनी की वन्दना से प्रारम्भ है।

‘कश्मीरी रामायण’ की रचना दिवाकर प्रकाश भट्ट द्वारा कश्मीरी भाषा में की गई है। इस रामायण को ‘रामावतारचरित’ के नाम से भी जाना जाता है। इसका एक नाम ‘प्रकाश रामायण’ भी है। ‘काशुर रामायण’ के नाम से इसका हिंदी रूपान्तर भी प्राप्त है। इस रामायण में भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य की त्रिवेणी प्रवाहित होती दिखाई देती है।

उपरोक्त रामायणों के अतिरिक्त विष्णुप्रताप रामायण, मैथिली रामायण, दिनकर रामायण, शंकर रामायण, जगमोहन रामायण, शर्मा रामायण, तराचन्द रामायण, अमर रामायण, प्रेमरामायण, कम्बरामायण, तोरवे रामायण, गड़बड़ रामायण, नेपाली रामायण, विचित्र रामायण, मंत्र रामायण, कीर्तनियारामायण, गीति रामायण, शत्रुंजय रामायण, खोतानी रामायण, तिब्बती रामायण, चरित्र रामायण, कर्कविन रामायण, जावीरामायण, जानकी रामायण आदि अनेक रामायणों की रचना सिर्फ भारत में ही नहीं अपितु विदेशों में भी की गई है।

‘रामायन सत कोटि अपारा’ की भांति राम कथा के सागर में डुबकी लगाने वाले कवियों ने ‘राम’ से जितना साक्षात्कार किया, उसे अपने ग्रंथों में ढाल दिया। ‘हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता’ के अनुसार रामकथा के रस से परिपूर्ण सभी ग्रन्थ अपने आप में अलौकिक एवं आध्यात्मिक हैं।

परमानंद परम


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