Saturday, July 27, 2024
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वेंटीलेटर पर सिटी ट्रांसपोर्ट

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शहर को मजबूत पब्लिक ट्रांसपोर्ट सुविधा देने का दावा अब धीरे-धीरे खोखला साबित हो रहा है। बसों के लिए घंटों इंतजार और शाम 7 बजे के बाद बसों की संख्या एकदम से कम होने की समस्या के चलते यात्रियों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा हैं। फिर खटारा बसों का संचालन तो हर रोज मुसीबत बना हुआ हैं। सिटी ट्रांसपोर्ट की बसें कहां और कब खराब हो जाए? कुछ नहीं कहा जा सकता। कानपुर की तमाम खटारा बसें सिटी में ही दौड़ रही हैं, ऐसा तब है, जब मेरठ एनसीआर का हिस्सा है। पराली जलाने समेत तमाम नियमों पर सख्ती हैं, लेकिन खटारा बसों को बदलना परिवहन विभाग उचित नहीं समझता। लोगों की आम शिकायत है कि अधिकतर रूटों पर घंटों बसों के इंतजार के बाद भी आला अफसर इसको लेकर लापरवाह क्यों बने हुए हैं? आखिर पब्लिक ट्रांसपोर्ट सुविधा को इस तरह से कैसे मजबूत किया जा सकता हैं?

  • मेरठ में इस समय चल रहीं है कुल 93 सिटी बसें
  • 45 इलेक्ट्रिक बसें आनी है अगले कुछ समय मेंं
  • 10 साल पहले की तुलना में केवल 18 बसें ही बढ़ी

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: सिटी ट्रांसपोर्ट वेंटीलेटर पर हैं। कौन-सी बस कहां पर खराब हो जाए? कुछ नहीं कहा जा सकता। सिटी ट्रांसपोर्ट सिस्टम बेहद खराब हैं। इसको लेकर आला अफसर भी उदासीन हैं। कानपुर की खटारा बसों को मेरठ सिटी में दौड़ाया जा रहा हैं। इनका फिटनेस भी नहीं हैं। खटारा बसों का फिटनेस आरटीओ आॅफिस से कैसे कर दिया जाता हैं? इसको लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। प्राइवेट स्कूली बसों का फिटनेस को लेकर तमाम आपत्तियां आरटीओ की तरफ से लगा दी जाती हैं, फिर इन खटारा बसों को सड़क पर दौड़ने के लिए कैसे छोड़ दिया जाता हैं? आखिर कोई हादसा हो गया तो कौन जिम्मेदार होगा?

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सिटी बस चालकों की लापरवाही ने कुछ दिनों से मानों यात्रियों की जान लेने की ठान ली है। टायर फटने, एक्सीडेंट हो जाने आदि मामले आ रहे हैं। यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले अधिकारी और बस आॅपरेटर्स इस मामले में कितने गंभीर हैं, इसकी पोल सिटी बस की खटारा बसों ने खोल दी। शहर में इस समय कुल 93 सिटी बसें ही सड़कों पर दौड़ रही है जो नाकाफी है।

45 इल्ेक्ट्रिक बसें आनी है, लेकिन वह कब तक पहुंचेंगी अभी पता नहीं है। 80 सीएनजी बसों का संचालन हो रहा है। जिनकी हालत खस्ता है। ऐसे में मेरठ की जनता को अच्छी सरकारी सवारी का लाभ कैसे मिलेगा इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। शहर में अलग-अलग रूटों पर सिटी रोडवेज बसों का संचालन हो रहा है, लेकिन पिछले 10 सालों में इनकी संख्या कम हो गई है।

इस समय शहर में सीएनजी चलित 80 बसें, 8 वाल्वों ऐसी बसें व 5 बैट्री चलित बसें सड़कों पर दौड़ रही है। जिनकी संख्या 93 है। वहीं, 10 साल पहले शहर में जेएनएनयूआरएम द्वारा डीजल से चलने वाली 120 बसों को चलाया गया था। जिन्हें अब हटा लिया गया है। शहर को 50 इलेक्ट्रिक बसें मिलने जा रही है। जिनमें से पांच बसें आ भी चुकी हैं। वहीं, सीएनजी चलित 80 बसों की हालत भी नाजुक है, आए दिन इनके चक्के कहीं भी थम जाते हैं। 10 सालों मेंं बसों की संख्या कम हो गई है। जबकि आबादी बढ़ी है, ऐसे में इन बसों की संख्या ऊंट के मुंह में जीरे के सामान साबित हो रही है। वहीं, अब स्कूलों को भी नियमित तौर पर खोलने की तैयारी है। ऐसे में सिटी बसों की कम संख्या मुसीबत का सबब बन सकती है।

एनजीटी के नियमों को भी लग रहा पलीता

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के नियमों के अनुसार एनसीआर में ऐसे वाहनों के संचालन पर रोक लगी है जो अपनी उम्र पूरी कर चुके हैं। साथ ही इन वाहनों का नवीनीकरण भी एनसीआर क्षेत्र में नहीं हो सकता, लेकिन इस समय मेरठ से दूसरे रूटों पर चलने वाली सैकड़ों अनुबंधित बसों की उम्र सीमा समाप्त होने के बाद भी दौड़ाया जा रहा है।

…और भी हैं गड़बड़ियां

सिटी बसों का कहीं भी खराब हो जाना या इनमें आग लग जाना ही एकमात्र मुद्दा नहीं, बल्कि इनमें पर्स चोरी, छेड़छाड़ और मारपीट तक हो चुकी है। लगातार दुर्घटनाएं होने से यात्रियों में तो डर बैठ ही गया है, अनियंत्रित स्थिति के कारण स्टाफ भी बस चलाने में डर रहा है। टायर फटने, पतरे निकलने, प्रदूषण होने और तेज शोर के कारण ट्रैफिक में इन बसों के आसपास चलने वाले अन्य वाहन चालकों में भी डर बना रहता है।

आज भी दौड़ रहीं खटारा डीजल बसें

शहर की सड़कों पर फिलहाल 93 सिटी बसें चलाई जा रही हैं। शहर के अधिकांश रूट्स पर खटारा हो चुकी बसें ही दौड़ रही हैं। हर बार कुछ दिनों में कुछ खटारा बसें बंद हो जाती हैं और उन्हें सर्विसिंग के नाम पर यार्ड में पहुंचा दिया जाता है। मौजूदा बसों में लगभग दर्जन भर ऐसी हैं जो कई सालों से चल रही है। नई बसें नहीं आने के कारण इन्हें आज तक नहीं बदला जा सका। नई बसें मंगवाकर बसें बदली गई थी, लेकिन अब तो इन बसों की हालत भी ऐसी हो गई है कि इन्हें भी बदलना जरूरी हो गया है। आज भी ऐसी कई डीजल बसें चलाई जा रही हैं, जिनकी हालत बेहद खराब है।

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