Thursday, March 28, 2024
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अब भी बेरौनक-सा है शहर का बैंड उद्योग

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  • नहीं लौट रही रौनक, क्रांतिधरा का बैंड उद्योग बेनूर
  • अब 2021 से ही लगी हैं बैंड उद्योग को उम्मीदें
  • सरकार की बंदिशों से बस रेंग ही रहा कारोबार

रामबोल तोमर |

मेरठ: बैंड उद्योग वेस्ट यूपी का बड़ा उद्योग माना जाता है। विदेशों में भी बैंड उपकरणों की आपूर्ति की जाती हैं, लेकिन लॉकडाउन के बाद से ही बैंड उद्योग की अर्थव्यवस्था की कमर टूट गई। जो कारीगर इस उद्योग से जुटे हैं, उनको वेतन भी नहीं मिल पा रहा है। अब कारीगरों व उद्यमियों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है।

उम्मीद थी कि लॉकडाउन के बाद बैंड उद्योग पटरी पर फिर से दौड़ने लगेगा, लेकिन सरकार की बंदिशों के चलते बैंड उद्योग किसी तरह से रेंग रहा है। खर्च तो ज्यो का त्यों हैं, मगर व्यापार डाउन है। बैंड उद्योग के लिए विदेशों में से तो अभी भी डिमांड आ रही है, मगर स्वदेश में बैंड उद्योग आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा है।

स्कूल में बड़े पैमाने पर बैंड के उपकरण खरीदे जाते हैं, जिनकी स्कूलों में बिक्री शून्य है। क्योंकि स्कूलों में भी कोई कार्यक्रम नहींं हो रहे हैं। स्थिति बेहद खराब है। विवाह समारोह भी बंदिशों के साथ होंगे। इनमें भी गिनती के लोग ही जा पाएंगे। ऐसे में बैंड उद्योग तभी चलेगा जब वैवाहिक कार्यक्रमों में भीड़ रहेगी।

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उद्योगपतियों का कहना है कि अब तो उन्हें 2021 से ही उम्मीदे लगी है। उम्मीद है कि 2021 उनके लिए नया सवेरा लेकर आने वाला है। क्योंकि 2020 एक तरह से दुर्गति के दौर से ही गुजरा है। व्यापार खत्म हो गया। व्यापरिक प्रतिष्ठान सुननान पड़े हैं। व्यापारियों की माने तो नवम्बर-दिसम्बर में बैंड उद्योग के उपकरणों की जबरदस्त मांग होती थी, मगर अब सब सुना पड़ा है। प्रतिष्ठान तो खुले हैं, लेकिन ग्राहक नहींं हैं।

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सुबह व्यापारी अपने-अपने प्रतिष्ठान को खोलते है कि ये दिन उनके लिए अच्छा कारोबार लेकर आयेगा, लेकिन फिर निराशा ही हाथ लगती है। व्यापारी इसी उम्मीद के साथ आगे बढ़ रहे है कि एक दिन बैंड उद्योग पर फिर से रौनक लौटेगी। वो दिन कम आयेगा, इसी उम्मीद के साथ व्यापारी बैंड उद्योग में जुटे हैं।

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बंद हो गई इकाइयां

बैंड उद्योग का कभी डंका बजता था, मगर कुछ समय से आयी मंदी ने बैंड उद्योग को बंदी के कगार पर लगाकर खड़ा कर दिया है। इसी मंदी के चलते करीब 80 से ज्यादा बैंड उद्योग इकाइयां बंद हो चुकी है। इस कारोबार से जुड़े लोग अन्य कारोबार कर रहे हैं। क्योंकि इसमें उद्यमियों को अब भविष्य ही नजर नहींं आ रहा है। एक तो टैक्स, दूसरे कारीगर महंगे हो गए हैं। फिर मार्केट में लगातार बैंड उपकरणों की मांग घटती जा रही है, जिसका प्रभाव ये है कि करीब 80 उद्योगिक इकाइयां उद्यमियों ने बंद कर दी है।

छलका दर्द, लॉकडाउन में घर से ही खाया
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बैंड उद्योग संचालित करने वाले हीरालाल का कहना है कि लॉकडाउन में घर से खाया है। अब भी गुजारा किसी तरह चल रहा है। बड़ी तादाद में कारखाने बंद हो गए हैं। लोग बर्बाद हो गए हैं। कारीगरों को वेतन घर से इस उम्मीद के साथ देना पड़ रहा है कि एक दिन बैंड उद्योग पर फिर बहार आयेगी, लेकिन इसकी उम्मीद कम ही नजर आ रही है।

कारोबार ठप, कमाई एक रुपये की भी नहीं
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बैंड उद्योगपति नाजिश का कहना है कि कारोबार ठप हो गए हैं। एक तो लॉकडाउन में बिजली का बिल बराबर गया है। कमाई एक रुपये की नहींं हुई। घर के भी खर्चे थे। कारीगरों को भी देना पड़ा। अब भी यह कारोबार पटरी पर नहींं आ पा रहा है। पूरा दिन प्रतिष्ठान पर बैठकर चले जाते हैं,बस हर रोज यहीं हो रहा है। काम नहीं चल रहा। बर्बाद हो गए। अब उम्मीद कम ही बची है।

कोरोना महामारी ने किया सबकुछ खत्म
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बैंड उद्योग संचालित करने वाले अब्दुल मनान का कहना है कि कोरोना से सब कुछ खत्म हो गया। जो व्यापार चल भी रहा था, वो कारोबार अभी पटरी पर नहींं आ पाया है। अब कुछ उम्मीद है 2021 पर लगी है। लगता है आगामी वर्ष में बैंड उद्योग कुछ स्पीड पकड़ेगा, तब जाकर व्यापार फिर से दौड़ने लगेंगे, जिसकी उम्मीद की जा रही है। इसकी आस में ही कारोबार चल रहा है।

बस रेंग रहा है कारोबार
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उद्यमी सलीम का कहना है कि कारोबार सिर्फ रेंग रहा है, दौड़ नहींं रहा। दौड़ता कभी पहले था, वो समय अब आएगा या फिर नहींं। इसकी उम्मीद कम ही है। क्योंकि इस पर जीएसटी लग गई है। जिसके चलते बैंड के उपकरण महंगे भी हो गए हैं। उम्मीद है कि 2021 में बैंड उद्योग फिर से रफ्तार पकड़ेगा, तभी उद्यमियों को राहत मिलेगी। कारोबारी इसी उम्मीद में है।

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