डॉ. मेजर हिमांशु |
शहर के प्रतिष्ठित ईसाई मिशनरी कॉन्वेंट स्कूल के गेट पर धरना था किसी ‘किसी जागरण मंच’ का। आरोप बच्चों को ईसायत पढ़ाने और धर्मांतरण का माहौल बनाने का था। शुरू में गिने-चुने लोग थे धरने पर। देश-प्रदेश के हालात इन दिनों हर वक्त नाजुक हैं, सो भारी पुलिस बंदोबस्त भी आ जमा। टीवी चैनल तो इतने तेज, मानो धरना उन्होंने ही अर्जी देकर करवाया हो या धरने वालों ने उन्हें न्यौत कर धरना दिया हो। चुनाव करीब है, कौन बात क्या रूप ले लें सोचना पड़ता है। शासन-प्रशासन को तो सौ बार, मीडिया की तो सिर्फ टीआरपी है। धरना बढ़ा तो असुविधा स्कूल प्रशासन को ही नहीं सबको हुई।
शहर में बहुतों के मोबाइल बजने लगे। प्रशासन की और हालत खराब। स्कूल के खिलाफ धरने पर सत्तारूढ़ दल की विचाराधारा के लोग और बच्चों को स्कूल लेने छोड़ने आने वाली गाड़ियों पर भी सत्तारूढ दल की ही झंडियां-स्टीकर। आखिर विचाराधारा अपनी जगह, बच्चों की पढ़ाई अपनी जगह। और हां, राज अपनी जगह। वैसे अंग्रेजी का सड़कों पर विरोध का नेतृत्व करने वालों के बच्चे पढ़ते हैं तो अंग्रेजी स्कूलों और विदेश में ही। खैर मुद्दा यह नहीं, धर्मांतरण था और मुद्दा नहीं भटकना चाहिए। देश तो कई सौ साल से भटक ही रहा है। अब सत्तारूढ़ दल के नेता ही धरना लगवा रहे थे और सत्ताधारी ही प्रशासन पर धरना हटाने को दबाव बना रहे थे। प्रशासन का काम सवाल करना नहीं, संतुलन और समाधान साधना है। यही उसकी साधना है। जांच कमेटी बनाकर शिकायती धरने वालों से वार्ता शुरू की गई। धरने वालों की इज्जत बचे बने और धरने की भी राड़ कटे।
जिलाधिकारी महोदय निष्पक्ष सुलझे हुए आदमी थे, पर झुंझला गए। नाराजगी में नाराज लोगों से नाराजगी पूछी तो वो फट पडे। ‘अंगे्रज चले गए, अंग्रेजी छोड़ गए’ किसी ने फब्ती कसी। किसी ने आक्रोश व्यक्त किया कि आजाद हिंदुस्तान में उनके बच्चे ईसाई परंपरा में शिक्षा क्यों लें? स्कूल प्रतिनिधि ने प्रतिरोध किया कि सिलेबस सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त बोर्ड का है, स्कूल का नहीं और किसी ने किसी को जबरदस्ती दाखिला नहीं दिया है। जिसका जहां मन हो, अपने बच्चों को पढ़ाए स्कूल को आपत्ति नहीं। धरना पक्ष फट पड़ा कि वो अपने बच्चों को क्यों हटाएं। इतनी मुश्किल से दाखिला मिलता है। अधिकारी ने स्कूल के नियम कानून का हवाला दिया तो उस पर तुरंत स्कूल वालों की तरफ लेने का आरोप जड़ा गया।
अधिकारी ने सपाट पूछा कि जब आपका स्कूल पर धर्मांतरण का इल्जाम है तो आपको अपने बच्चे को वहां क्यों पढ़ाना है? अब तो अधिकारी भी धरना टीम को खुद मिशनरी सा या मिशनरी स्कूल का पढ़ा सा लगने लगा था। जनता और नाराज। सभी दलों के नेता खासकर सत्तारूढ़ दल के नेता पहले ही स्कूल वालों, मंत्रियों तक को लिफ्ट न देने से नाराज थे।
जवाब आया कि स्कूल में पढ़ाई अच्छी है, अनुशासन भी। शहर के सब बडेÞ-बड़े लोगों के बच्चे वहीं पढ़ते हैं। दूसरे प्राइवेट स्कूल फीस मोटी वसूलते हैं। फिर सवाल आया कि क्या आम लोगों के बच्चों को अच्छी पढाई का अधिकार नहीं है, जिनके पास, मोटा पैसा, बडे मंत्री या अधिकारी की सिफारिश न हो। बात आई कि जिस पर पद सिफारिश कुछ न हो वो तो धरना ही दे सकता है प्रजातंत्र में। जिला शिक्षा अधिकारी मीटिंग में मौजूद थे और लपेटे गए। शिक्षा विभाग के ज्यादातर अधिकारियों के बच्चे इन्हीं स्कूलों में थे। यह तथ्य और तर्क अधिकारियों को जहां कटघरे में खड़ा करता था और शिक्षा विभाग की नाकामी का प्रमाण था, वहीं ईसाई मिशनरी स्कूलों की शिक्षा के प्रति निष्ठा, प्रतिबद्धता और गुणवत्ता का भी सुबूत था।
असली मसला सस्ती, सुलभ अच्छी शिक्षा का था, यह जिलाधिकारी समझ चुके थे। तत्काल समूची शिक्षा व्यवस्था में सुधार संभव नहीं था। जो हो सकता था या जरूरी था उस पर ध्यान देना ही ठीक लगा। आदर्श सिद्धांत पीछे रख घिसे मंजे संकट मोचकों की सेवा लेना तय हुआ। इंस्पेक्टर साहब खेले खाए आदमी थे और मंत्री जी का सर पर हाथ था। ईसाई फादर को आदत तो नहीं थी पर इतने सालों में तंत्र वो भी समझ चुके थे। उनके परिचित एक समाज सेवी को वार्ता और जांच में डाला गया। संकट निवारण टीम का सूत्र साफ था बखेडेÞ की जड़ समझो। उसे पकड़ो और कांटे से कांटा छुरा निकालो। बैक चैनल और डीप स्टेट एक्शन में आ गए।
राड़ की जड़ तीन आदमी निकले। भीड़ भेड़ को हांकने वाले गडरिए। एक, जिसके बच्चे का दाखिला नहीं हो पाया था। दूसरा, जिसका रिश्तेदार लड़कियों से छेडछाड़ के मसले में स्कूल से निकाला गया था। तीसरा, नेतागिरी का शौकीन। छपास का मरीज, जिसके पीछे एक प्राईवेट स्कूल का हाथ था। सबसे अलग-अलग डील करना तय हुआ। खोजी तंत्र हरकत में आया। सबकी कुंडली खंगाली गई। शिजरा निकाला तो सबसे खूंखार सबसे आसान शिकार निकला। मंत्री जी का बच्चा भी स्कूल में था और वो स्कूल प्रबंधन के संकट मोचक बनने को आतुर थे। थोड़ी छवि बदलने की भी इच्छा थी। इंस्पेक्टर साहब को मंत्री जी ने बताया कि विचारधारा व्यापक पर व्यक्तिगत विषय है उसे छोटे-मोटे रोज मर्रा के मामलों में क्यों घसीटना। सो काम और आसान हो गया। बहु कला अवतार इंस्पेक्टर ने प्यार से छेड़छाड़ का पुराना केस याद दिलाया और बच्चे के भविष्य पर चिंता व्यक्त की। बेरोजगार लडके का किसी ईसाई लड़की से एक तरफा इश्क उसे ‘घर वापसी’ आंदोलन का युद्ध सेनानी बनाए न बनाए जेल यात्री जरूर बना सकता था। एक प्लॉट का झगडा भी निकल आया और समझदार को तो इशारा काफी। बच्चा पढ़ाई में कमजोर था पर ‘अपना बच्चा सबसे अच्छा।’ दाखिला तो सिफारिश न होने के कारण ही रुका था, माना गया और जिलाधिाकरी जी ने सहानुभूति दिखाई। मंत्री, अधिकारी और स्कूल प्रबंधन जनतंत्र के मालिक की आक्रोश मिसाईल की मारक क्षमता और सीमा में रहने भी चाहिए।
तीसरे का निपटारा मंत्री जी ने राजनैतिक कौशल से किया। छपास के शौकीन की समाजसेवी जी के साथ बड़ी फोटो शहर के सभी प्रमुख अखबारों में मसले के कामयाबी से सुलटने की खबर के साथ थी। दोनों स्कूल की जन सुनवाई सेल में भी शामिल किए गए थे। किसी अन्य कार्यक्रम में मंत्री जी भी सुर्खियों में थे कि उनकी सरकार भेदभाव में विश्वास नहीं करती। उसी माह राजधानी में सर्व धर्म विश्व संसद का आयोजन था।
स्कूल प्रबंधन ने चैन की सांस ली। दंगों के लिए बदनाम शहर ने भी। धन्यवाद ज्ञापन को स्कूल प्रबंधन इंस्पेक्टर साहब के मार्फत समाज सेवी जी के साथ मंत्री जी से मिला। पत्रकार जी भी थे। मंत्री जी ने नम्रता और शिष्टता से बताया कि जनसेवा ही उनका धर्म कर्म है, अत: धन्यवाद की कोई जरूरत नहीं। बर्फी की प्लेट खुद सर्व की ‘फादर’ को और कहा कि इंसान ही इंसान के काम आता है। साथ ही आशा व्यक्त की कि वो जरूरतमंद बच्चों के दाखिले पर हमेशा सहानुभूति पूर्वक विचार करेंगे। पत्रकार महोदय ने स्कूल की बेहतरीन खबर की कतरन और एक नोट फॉदर को सौंप दिया प्रेम पूर्वक। मंत्री जी ने पत्रकार महोदय को सेवा भाव का गौ आदमी बताया और इंस्पेक्टर साहब ने उनकी प्रतिभावान बच्ची का जिक्र किया। धर्मांतरण पर गठित कमेटी की रिपोर्ट 15 दिन में आ गई। देश में सब कुशल मंगल है।