Sunday, September 8, 2024
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पुरुषों की रचनाएं और स्त्रियों की दुनिया

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Ravivani 34


SUDHANSHU GUPTअनुवाद यादवेन्द्र का कर्मक्षेत्र है। विश्व साहित्य की अनेक रचनाएं उन्होंने हिंदी के पाठकों के लिए मुहैया कराई हैं। लेकिन वे केवल शाब्दिक अनुवाद ही नहीं करते। अनुवाद करते समय उनका लक्ष्य जहां दूसरे समाजों के साहित्य को जानना और समझना होता है, वहीं यह देखना भी होता है कि स्त्री विमर्श की दशा और दिशा इन समाजों में क्या है। साल 2019 में प्रकाशित उनकी किताब ‘स्याही की गमक’ (संभावना प्रकाशन) में उन्होंने औरतों की नजर से दुनिया देखने स्त्री की कोशिश की थी। इसमें ईरान, चिली, लेबनान, चीन, अर्जेंटीना, नाइजीरिया, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, वियतनाम, श्रीलंका, म्यांमार, कुवैत और कई अन्य देशों की स्त्रियों द्वारा लिखी गई कहानियां थीं। इसी की अगली कड़ी मान सकते हैं हाल ही में आई उनकी पुस्तक ‘जगमगाते जुगनुओं की जोत’ (संभावना प्रकाशन)। इस पुस्तक में भी स्त्रियों की ही दुनिया है, लेकिन पुरुष लेखकों के नजरिये से। यानी पुरुष, स्त्रियों की दुनिया और उनके संघर्षों को किस नजर से देखते हैं और स्त्री मनोविज्ञान को कितना समझते हैं, यह इन कहानियों से समझा जा सकता है। यादवेन्द्र कहानियों के चयन में भी पूरी सतर्कता बरतते हैं। उनके चयन का आधार रचनाएं हैं, लेखक नहीं। हालांकि इस संग्रह में आपको मार्खेज, ओरहान पामुक, जेएम कोएट्जी जैसे विश्व प्रसिद्ध लेखकों की कहानियां मिलेंगी, लेकिन साथ ही आपको फिलीस्तीन, सीरिया, सिंगापुर, ग्वाटेमाला, सर्बिया, ब्राजील, उरुग्वे, चीन और नाइजीरिया के लेखकों की कहानियां भी मिलेंगी। इस संग्रह में शामिल अधिकांश लेखक तुलनात्मक रूप से नए हैं लेकिन कथ्य की दृष्टि से आधुनिक भी हैं। यही इस संग्रह की खूबसूरती है।

लैटिन अमेरिका (उरुग्वे) के लेखक एदुआर्दो गेलियानो ने एक बार अपने बारे में कहा था, मैंने इतिहास को पाठकों के सामने इस तरह रखा कि उसे सब कुछ आंखों के सामने घटित होता दिखाई दे-यही इतिहास का सौंदर्य और असलियत है। एदुआर्दो की एक छोटी सी कहानी है-इंटेंसिव केयर यूनिट। एक बड़े अस्पताल के इंटेंसिव केयर यूनिट में डॉक्टर एक महिला मरीज की स्टडी कर रहा है। वह उसकी पल्स देखता है और यूं ही बोल देता कि, तुम्हारा पल्स 78 है, बिल्कुल सही है। मरीज यह भूल जाती है कि अभी-अभी उसका पल्स देखा है, वह फिर से अपना पल्स देखने का आग्रह करती है। सालों बाद अपने जीवन के तजुर्बे ने डॉक्टर को यह अहसास कराया कि मरीज वास्तव में कोई मानसिक रोगी नहीं थी, बल्कि उसको किसी की छुअन की ख्वाहिश और दरकार थी। इस छोटी सी कहानी में स्त्री की ख्वाहिशों का कितना खूबसूरत चित्रण हुआ है, इसे पढ़कर ही समझा जा सकता है। आमतौर पर हिन्दी में आपको इस तरह की कहानियों पढ़ने को नहीं मिलेंगी। यह कहानी स्त्री की इच्छाओं और आकांक्षाओं को भी बड़े सलीके से चित्रित करती है।

कहानी में सब कुछ स्पष्ट नहीं होना चाहिए। पाउलो कार्वाल्हो की एक कहानी है ‘सरलता’। किस तरह एक छोटी सी घटना प्रेम के रहस्यों को खोलती है, यह इस कहानी में दिखाया गया है। कहानी में प्रेम शब्द का इस्तेमाल भी नहीं किया गया है। इस संग्रह में प्रतिरोध के भी तीखे स्वर हैं। जकरिया तामेर सीरिया में जन्मे लेखक हैं। बाद में वह लंदन चले गए। उनकी एक कहानी है ‘नींद में औरत’। कहानी की नायिका सुआद अपने माता, पिता और तीन भाइयों के सामने यह स्वीकार करती है कि उसके साथ एक युवक सपने में आकर बार-बार दुष्कर्म करता है। यह एक फंतासी कथा है, जिसमें लड़की अपने साथ होने वाले दुष्कर्म से अनजान है। स्वयं निर्दोष होकर भी वह भयाक्रांत है। क्या यह भय उन सभी लड़कियों का भय नहीं है, जो दुष्कर्म न होने के बावजूद दुष्कर्म से आक्रांत रहती हैं? जकरिया तामेर ने स्त्री के मनोविज्ञान का चित्रण तो किया ही है, साथ ही उन्होंने अवचेतन में व्याप्त भय और अपराध भाव को भी सघन रूप में चित्रित किया है।

संग्रह में कई अन्य कहानियां हैं जो स्त्री के जीवन, उसके संघर्ष, अजनबीपन और प्रतिरोध को चित्रित करती हैं। इस तरह मैंने बचाई अपनी शादी, उसके पांव, चुंबन ऐसी ही कहानियां हैं। सेनेगल के उस्मान सेंबेने की कहानी ‘मां’ सत्ता के खिलाफ प्रतिरोध की कहानी है। इसमें एक मां रियाया के खिलाफ विरोध का बिगुल बजाती है। मिस्र के नगीब महफूज ‘जवाब तो ना ही है’ में स्त्री शोषण और प्रतिरोध का एक अलग स्वरूप दिखाई देता है। इन कहानियों में स्त्री विमर्श थोपा हुआ नहीं लगता बल्कि कथा में से ही ‘रिफ्लेक्ट’ होता है। स्त्री मनोविज्ञान को जिस तरह चीनी कथाकार बाई फेयु की कहानी ‘कच्चे दूध की गंध’ में दर्शाया गया है, वह किसी स्त्री लेखक से किसी भी तरह कमतर नहीं है। कहानी में लेखक ने एक सात साल के एक बच्चे वोंगवोंग और पड़ोसन मिसेज हुई के मनोविज्ञान को चित्रित किया है। महिला अपने बच्चे को दूध पिलाती है। वोंगवोंग को कभी मां का दूध नसीब नहीं हुआ। उसे कच्चे दूध की गंध से ज्यादा कुछ भी अच्छा नहीं लगता। यह कहानी एक स्त्री, जो सगी मां नहीं है, के अंतर्द्वन्द्व की मानवीय कथा है। यह स्त्री की भीतरी दुनिया को चित्रित करती है और क्योंकि यह पुरुष लेखक द्वारा लिखाई गई है, इसलिए महत्वपूर्ण है।

स्त्री जीवन को जानने-समझने की कई खिड़कियां यह संग्रह खोलता है। मार्खेज की कहानी ‘मुझे तो सिर्फ फोन करना था’ बहुचर्चित और बहुपठित कहानी है। मारिया नाम की एक सीधी और सरल स्त्री, जो गाड़ी खराब होने के कारण एक फोन करना चाहती है और विषम परिस्थितियों के चलते पागलखाने पहुंच जाती है। अनायास ही उसका जीवन दुखों, विपदाओं, अनाचारों और संघर्षों से घिर जाता है। पेशे से जादूगर उसका प्रेमी-पति पहले उसे वहां से बाहर निकालने में हार जाता है, फिर सायास दृश्य से अनुपस्थित हो जाता है। मारिया का जीवन अंधेरों की बलि चढ़ जाता है। इस तरह देखो तो यह एक स्त्री की त्रासद कथा है, लेकिन मार्खेज चीजों को इकहरा नहीं देखते। तो क्या इस कहानी का एक पाठ यह भी हो सकता है कि मार्खेज यह कहना चाहते हों कि अकेली स्त्री के लिए यह दुनिया पागलखाना है?

व्यभिचार पर पीड़ित स्त्री का आख्यान है दक्षिण अफ्रीका के विश्व प्रसिद्ध लेखक जेएम कोएट्जी के उपन्यास का अंश ‘गैर हाजिÞर की हाजिÞरी’। इस कथा में अनुपस्थित उस स्त्री की पीड़ा है, जिसके साथ व्यभिचार हुआ है। कथा में सिर्फ स्त्री की शिकायत दृश्य है, उसी के आधार पर दोष निर्धारण के लिए जांच चल रही है। लेखक ने स्त्री को दृश्य में लाए बिना उसकी उपस्थिति को केंद्रीय बनाकर एक चमत्कार पैदा किया है, लेकिन दरअसल यह चमत्कार इस बात का संकेत करता है कि पीड़िता को दृश्य में लाना कतई जरूरी नहीं है।

संग्रह में और भी बहुत सी कहानियां हैं। ये कहानियों स्त्री विमर्श की दशा और दिशा तो बताती ही हैं, सोच की नई खिड़कियां भी खोलती हैं। इन कहानियों में यथार्थ भी है और जादुई यथार्थ भी। भूमिका में लीलाधर मंडलोई ने लिखा है, भारतीय पाठकों की चेतना को वैश्विक धरातल पर ले जाने वाली ये कहानियां नये ढंग से उद्वेलित करने की क्षमता से लैस हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि भारतीय पाठक इन कहानियों को पढ़कर उद्वेलित होंगे। लेकिन मन में यह सवाल उठा कि दुनिया भर की इन कहानियों में क्या हिन्दी और प्रादेशिक भाषाओं की एक भी कहानी शामिल नहीं हो सकती थी?


 

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