जनवाणी ब्यूरो |
नई दिल्ली: आतंकी फंडिंग व अन्य अवैध गतिविधियों में शामिल पाए जाने के बाद कट्टरपंथी इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ( PFI) पर पांच साल का प्रतिबंध लगा दिया गया है। गृह मंत्रालय की ओर से इसके लिए अधिसूचना/नोटिफिकेशन भी जारी कर दी गई है। बता दें कि हाल ही में NIA और तमाम राज्यों की एजेंसियों ने PFI के कई ठिकानों पर छापेमारी कर 250 से अधिक सदस्यों को हिरासत में लिया था। आइए विस्तार से जानते हैं आखिर पीएफआई है क्या, किस तरह से करता है काम? इसपर क्यों लगाया गया प्रतिबंध?
सबसे पहले PFI है क्या?
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई का गठन 17 फरवरी 2007 को हुआ था। ये संगठन दक्षिण भारत के तीन मुस्लिम संगठनों का विलय करके बना था। इनमें केरल का नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु का मनिथा नीति पसराई शामिल थे। पीएफआई का दावा है कि इस वक्त देश के 23 राज्यों यह संगठन सक्रिय है। देश में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट यानी सिमी पर बैन लगने के बाद पीएफआई का विस्तार तेजी से हुआ है। कर्नाटक, केरल जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में इस संगठन की काफी पकड़ बताई जाती है। इसकी कई शाखाएं भी हैं। गठन के बाद से ही पीएफआई पर समाज विरोधी और देश विरोधी गतिविधियां करने के आरोप लगते रहते हैं।
PFI को फंड कैसे मिलता है?
पिछले साल फरवरी में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने PFI और इसकी स्टूडेंट विंग कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI) के पांच सदस्यों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में चार्जशीट दायर की थी। ED की जांच में पता चला था कि PFI का राष्ट्रीय महासचिव के ए रऊफ गल्फ देशों में बिजनेस डील की आड़ में पीएफआई के लिए फंड इकट्ठा करता था। ये पैसे अलग-अलग जरिए से पीएफआई और CFI से जुड़े लोगों तक पहुंचाए गए।
जांच एजेंसी के मुताबिक लगभग 1.36 करोड़ रुपये की रकम आपराधिक तरीकों से प्राप्त की गई। इसका एक हिस्सा भारत में पीएफआई और सीएफआई की अवैध गतिविधियों के संचालन में खर्च किया गया। सीएए के खिलाफ होने प्रदर्शन, दिल्ली में 2020 में हुए दंगों में भी इस पैसे के इस्तेमाल की बात सामने आई थी। पीएफआई द्वारा 2013 के बाद पैसे ट्रांसफर और कैश डिपॉजिट करने की गतिविधियां तेजी से बढ़ी हैं। जांच एजेंसी का कहना है कि भारत में पीएफआई तक हवाला के जरिए पैसा आता है।
इस संगठन पर क्या आरोप हैं?
PFI एक कट्टरपंथी संगठन है। 2017 में NIA ने गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर इस संगठन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। NIA जांच में इस संगठन के कथित रूप से हिंसक और आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने के बात आई थी। NIA के डोजियर के मुताबिक यह संगठन राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। यह संगठन मुस्लिमों पर धार्मिक कट्टरता थोपने और जबरन धर्मांतरण कराने का काम करता है। एनआईए ने पीएफआई पर हथियार चलाने के लिए ट्रेनिंग कैंप चलाने का आरोप लगाया है। इतना ही नहीं यह संगठन युवाओं को कट्टर बनाकर आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के लिए भी उकसाता है।
पीएम मोदी भी थे टारगेट पर
प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) को लेकर एक और सनसनीखेज खुलासा किया है। अधिकारियों ने दावा किया है कि ने इस साल जुलाई में बिहार की राजधानी पटना में पीएफआई(PFI)ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमले करने की खतरनाक योजना बनाई थी। इसके लिए संगठन ने पटना में ट्रैनिंग कैंप भी लगाया था और कई सदस्यों को ट्रेनिंग देने का काम किया। इतना ही नहीं वित्तपोषण के लिए कई विदेशी ताकतों के संपर्क में थे। पीएम मोदी के हर गतिविधियों पर नजर रखी जा रही थी। मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक केवल पीएम मोदी पर ही हमले नहीं बल्कि PFI अन्य हमलों के लिए भी टेरर मॉड्यूल तैयार कर रहा था।
क्या पीएफआई ने कभी चुनावी राजनीति में हिस्सा लिया है?
पीएफआई खुद को सामाजिक संगठन कहता है। इस संगठन ने कभी चुनाव नहीं लड़ा है। यहां तक कि इस संगठन के सदस्यों का रिकॉर्ड भी नहीं रखा जाता है। इस वजह से किसी अपराध में इस संगठन का नाम आता है, तो भी कानूनी एजेंसियों के लिए इस संगठन पर नकेल कसना मुश्किल होता है। 21 जून 2009 को सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के नाम से एक राजनीतिक संगठन बना। इस संगठन को पीएफआई से जुड़ा बताया गया है। कहा गया कि एसडीपीआई के लिए जमीन पर जो कार्यकर्ता काम करते थे वो पीएफआई से जुड़े लोग ही थे। 13 अप्रैल 2010 को चुनाव आयोग ने इसे रजिस्टर्ड पार्टी का दर्जा दिया।
राजनीति में कितनी सफल रही एसडीपीआई?
कर्नाटक के मुस्लिम बहुल इलाकों में ये एसडीपीआई सक्रिय रही। खास तौर पर दक्षिण तटीय कन्नड़ और उडुपी में इस पार्टी का प्रभाव देखा गया। इन इलाकों में इस संगठन ने स्थानीय निकाय चुनावों में सफलता भी हासिल की। 2013 तक एसडीपीआई ने कर्नाटक में कुछ स्थानीय निकाय के चुनाव लड़े। इनमें उसे करीब 21 सीटों पर जीत मिली। 2018 में उसे 121 स्थानीय निकाय की सीटों पर जीत मिली। 2021 में उसने उडुपी जिले के तीन स्थानीय निकायों पर कब्जा जमाया।
2013 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में पहली बार इस पार्टी ने अपने उम्मीदवार उतारे। कुल 23 सीटों पर पार्टी ने अपने उम्मीदवार उतारे। नरसिंहराज विधानसभा सीट पर एसडीपीआई उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहा था। बाकी सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। 2018 के विधानसभा चुनाव में एडीपीआई ने केवल तीन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। इस बार भी नरसिंहराज सीट को छोड़कर बाकी दोनों उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई।
2014 के लोकसभा चुनाव में एसडीपीआई ने कर्नाटक, केरल, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश की कुल 28 लोकसभा सीटों अपने उम्मीदवार उतारे। सभी सीटों पर इसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में एसडीपीआई ने 14 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। सभी सीटों पर उसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी।
क्या पीएफआई और सिमी में कोई संबंध है?
अक्सर पीएफआई को सिमी का ही बदला हुआ रूप कहा जाता है। दरअसल 1977 से देश में सक्रिय सिमी पर 2006 में प्रतिबंध लगा गया था। सिमी पर प्रतिबंध लगने के चंद महीनों बाद ही पीएफआई अस्तित्व में आया। कहा जाता है कि इस संगठन की कार्यप्रणाली भी सिमी जैसी ही है। 2012 से ही अलग-अलग मौकों पर इस संगठन पर कई तरह के आरोप लगते रहे हैं। कई बार इसे बैन करने की भी मांग हो चुकी है।